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भाजपा ने 'बड़े भाई' पर छोड़ा 'कुश' मैनेजमेंट
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना। यादव के दूध में कुशवाहा का चावल मिलाकर खीर बनाएंगे, कुशवाहा सूर्योपासना का महापर्व खत्म होते ही इस चर्चा में ताकत आ गई है, लेकिन इस बार मजबूरी में। कल तक रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मजबूत सदस्य होने का दंभ भरते हुए निकलने की बात कह रहे थे, लेकिन भाजपा ने चुपके से कुशवाहा को ऐसा 'नीतीश टैबलेट ' खिलाया कि अब खीर बनाने का रास्ता ढूंढना ही एकमात्र उपाय है। लेकिन, बात यहीं खत्म नहीं हो रही। कुशवाहा खीर बनाने के लिए जिस महागठबंधन का रास्ता ढूंढ रहे हैं, वहां भी अब एक तरह से 'नो रूम ' की स्थिति बन गई है। 10 दिन पहले जब कुशवाहा पर राष्ट्रीय जनता दल खुद डोरे डाल रहा था, तभी महागठबंधन के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कह दिया था कि कुशवाहा पहले आते तो ज्यादा सम्मानजनक सीट पाते। ऐसे में अब जबकि भाजपा के 'नीतीश टैबलेट ' से कुशवाहा की हालत पतली हो चुकी है, महागठबंधन में उन्हें शायद ही वह नसीब हो जिसके लिए इतने लंबे समय से वह हाय-तौबा मचाए हुए हैं।
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ना-ना करते भाजपा ने मान ही लिया नीतीश को बड़ा भाई
लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को जिस दिन से बिहार में राजग के अंदर कहासुनी का दौर शुरू हुआ, तभी से जनता दल (यूनाईटेड) ने बिहार में अपने को भाजपा का बड़ा भाई मानकर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला निकाले जाने की बात कह दी थी। भाजपा ने शुरुआत में ऐसा कुछ होने से साफ इनकार किया था, हालांकि बड़ा-छोटा भाई के विवाद पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के अलावा पार्टी से किसी ने मुंह नहीं खोला। सिर्फ 'सुमो ' ने ही नीतीश को बड़ा भाई माना था, जबकि पूरी भाजपा इसके खिलाफ स्टैंड कर रही थी। जदयू को समय का इंतजार था और यह मौका रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने दे दिया। कुशवाहा ने भाजपा पर दबाव बनाया तो अंदर ही अंदर पार्टी ने नया रास्ता निकाल लिया। सीट शेयरिंग पर भाजपा बैकफुट पर आकर जदयू को बड़ा भाई मानने के लिए तैयार हो गई। ताजा स्थिति यह है कि भाजपा ने बिहार में जदयू को लगभग बराबर सीटें देने की तैयारी कर ली है और दूसरी तरफ पार्टी ने कुशवाहा वोटरों के मैनेजमेंट का पूरा दारोमदार भी नीतीश के कंधे छोड़ दिया है।
नीतीश टैबलेट के कारण कुशवाहा पड़े कमजोर, अब लाचार
नहीं ऐसा नहीं है कुशवाहा राजग से अलग होने के नाम पर अब सीधे-सीधे यह नहीं दुहरा रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने में नाकामयाब होने के बाद कुशवाहा जदयू से बगावत कर महागठबंधन में गए राजग के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक शरद यादव से मिल आए हैं। असल में यह स्थिति भाजपा के 'नीतीश टैबलेटÓ के कारण हुई। विधानसभा में कमजोर प्रदर्शन को भुलाते हुए रालोसपा नेता कुशवाहा भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में पिछले लोस चुनाव से ज्यादा सीट मांग रहे थे। भाजपा ने इसपर चुप्पी साध रखी थी। छठ से पहले तक यह स्थिति थी, लेकिन जब कुशवाहा मुखर होने लगे तो भाजपा ने उपेंद्र कुशवाहा को जगह पर लाने के लिए नीतीश का सहारा लिया। सीधे-सीधे भाजपा कुशवाहा को परेशान करती तो उसे नुकसान हो सकता था, लेकिन इस महीने कुशवाहा के विधायक जदयू में चले गए और उनके जाते ही अब तक रालोसपा की सीटों को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर दिखा रही लोक जनशक्ति पार्टी ने भी उनका साथ छोड़ दिया है।
वैसे, अब भी शायद देर है कुशवाहा के बाहर जाने में
'अपना भारत' राजग में कुशवाहा की स्थिति पर कई बार स्टोरी सामने ला चुका है। कुशवाहा को करीबी अब भी यह मान रहे हैं कि इस साल उनके राजग से बाहर होने की उम्मीद नहीं के बराबर है, हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा रहा है कि वह अगले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन का हिस्सा बन जाएं। कुशवाहा अभी केंद्र में मंत्री हैं और पार्टी के एक तरह से अकेले बड़े नेता हैं। ऐसे में अभी राजग छोडऩे का मतलब केंद्रीय मंत्री का पद त्यागते हुए महागठबंधन में एक सामान्य सहयोगी के रूप में काम करना। शायद ही यह संभव हो कि कुशवाहा इसके लिए अभी तैयार हों।