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हिमाचल चुनाव : बीजेपी की मजबूरी है, धूमल बहुत जरुरी है !
शिमला : हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जो किया उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। वोटिंग से दस दिन पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री के रूप में प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर दिया।
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प्रेम कुमार धूमल पहले भी सूबे के सीएम रहे हैं। बीजेपी के इस वार से जहां विरोधी सकते में हैं। वहीं उसके अपने बुजुर्ग नेता भी समझ नहीं पा रहे कि क्या प्रतिक्रिया दें। पीएम नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही 75 पार के नेताओं पर लगाम कस दी थी। ऐसे में लगता है कि धूमल का नाम सामने रख उसने अपने इस फार्मूले से हाथ जोड़ लिया है। लेकिन अब इससे बड़ा सवाल पैदा हुआ कि क्या पार्टी को लगने लगा है की मोदी के जादू में कमी आई है? इसके साथ ही सवाल ये भी है कि बीजेपी ने क्या धूमल को सिर्फ 2 वर्ष के सीएम के तौर पर ही चुना है।
बीजेपी की मजबूरी है, धूमल बहुत जरुरी है
प्रेम कुमार धूमल 73 साल के हैं। यदि हिमाचल में बीजेपी को जीत मिलती है और धूमल सीएम बनते हैं। तो मोदी फार्मूले के तहत वो सिर्फ 2 वर्ष तक ही गद्दी पर बैठ सकते हैं। मोदी के इसी फार्मूले के चलते पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उनके हमउम्र नेता वनवास काट रहे हैं। पार्टी ने उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए बैठा दिया। जबकि धूमल फिर से सीएम बनने की राह पर चल पड़े हैं।
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राज्य में 37 प्रतिशत राजपूत हैं। ये राजनैतिक रूप से भी जागरूक हैं। इस जाति का वोटिंग प्रतिशत काफी अच्छा रहता है ऐसे में इन्हें साधने के लिए धूमल को मैदान में उतारा गया है। सूबे के सीएम वीरभद्र सिंह भी राजपूत हैं और राजपरिवार से आते हैं। ऐसे में धूमल बीजेपी के लिए संकटमोचन बन सकते हैं।
नड्डा थे शाह और पीएम की पहली पसंद
सीएम कैंडिडेट के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पहली पसंद जेपी नड्डा थे। लेकिन जातिगत समीकरण नड्डा के पक्ष में फिट नहीं बैठे।क्योंकि राज्य में सिर्फ 18 प्रतिशत ही ब्राह्मणों की हिस्सेदारी है।
जीत के लिए पार्टी ने बदल दी परंपरा
चुनाव से पहले सीएम चेहरा घोषित करना बीजेपी की परंपरा नहीं रही है। यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव के बाद ही सीएम का चेहरा सामने लाया गया। यूपी में योगी आदित्यनाथ, गोवा में मनोहर पर्रिकर उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत इसके नए उदहारण हैं।
सूत्रों के मुताबिक पार्टी ये मान रही है कि सूबे में धूमल नड्डा से अधिक कारगर साबित होंगे। क्योंकि उनके समर्थन में ना सिर्फ राजपूत बल्कि ब्राहमण और ओबीसी भी शामिल हैं। इसके साथ ही पिछले 5 वर्षों में धूमल किसी अन्य नेता की अपेक्षा राज्य में अधिक सक्रिय रहे। जबकि नड्डा आते जाते रहे। इसके साथ ही यदि बीजेपी किंही कारणों से हारती है या उसे उम्मीद से कम सीट मिलती हैं तो जवाबदेही धूमल की होगी मोदी की नहीं। वैसे भी देश में 2019 में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी नहीं चाहेगी की मोदी पर कोई दाग लगे।