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त्रिपुरा : इन कारणों से 'लाल किला' ढहाने में कामयाब रही बीजेपी
अगरतला : त्रिपुरा जो कुछ घंटों पहले तक लेफ्ट का मजबूत किला हुआ करता था। उसे मोदी लहर ने पत्ते की तरह हवा में उड़ा दिया है। सूबे में 1993 के बाद से ही सीपीएम सत्ता में थी। 2013 में हुए चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 1.5 फीसदी वोट मिले थे। पार्टी अपना खाता भी न खोल सकी थी। पूर्वोत्तर में बीजेपी को जो बढ़त मिली है वो कांग्रेस व अन्य दलों के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है।
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जानिए बीजेपी की जीत के कारण
त्रिपुरा में 25 सालों से सीपीएम की है। सीएम माणिक सरकार ईमानदारी की अपनी छवि के लिए देश भर में जाने जाते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर राज्य भ्रष्टाचार से जूझ रहा है। बीजेपी ने इसे अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया।
बीजेपी और संघ ने राज्य में अपने बड़े नेताओं को पिछले 2 वर्षों से झोंक रखा था। पार्टी अध्यक्ष विप्लव कुमार देव सूबे की सभी सीटों पर बूथ स्तर के जुझारू कार्यकर्ताओं की टीम बनाने में सफल रहे। जिन्होंने जमीनी स्तर पर पार्टी की नीतियों का जमकर प्रचार किया।
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इस जीत के बड़े नायक बनकर उभरे हैं। योगी ने राज्य में 7 सीटों पर जन सभाओं को संबोधित किया, उनमें से 5 सीटों पर पार्टी को जीत मिली। आपको बता दें, त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय को मानने वालों की अच्छी आबादी है। उनके लिए योगी का आग्रह आदेश की तरह काम किया।
कांग्रेस के कई जनाधार वाले नेताओं ने भी बीजेपी का दामन थामा और उन्होंने पार्टी की जीत में अहम भूमिका अदा की है।