बड़ा फैसला : सुप्रीम कोर्ट में 'न्याय की देवी' की आंखों से उतरी काली पट्टी', CJI बोले, कानून अंधा नहीं है

Nyay ki Devi : सुप्रीम कोर्ट में बुधवार में 'न्याय की देवी' की एक ऐसी मूर्ति स्थापित की गई है, जिसकी आंखों पर कोई भी पट्टी नहीं बंधी है। जजों के पुस्तकालय में स्थापित की गई इस मूर्ति के हाथ में संविधान की किताब है।

Network
Newstrack Network
Published on: 16 Oct 2024 1:47 PM GMT (Updated on: 16 Oct 2024 2:41 PM GMT)
बड़ा फैसला : सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की आंखों से उतरी काली पट्टी, CJI बोले, कानून अंधा नहीं है
X

Nyay ki Devi : अक्सर हम लोगों ने फिल्मों में देखा और सुना होगा कि अदालतों में 'न्याय की देवी' की मूर्ति की आंखों में काली पट्टी बंधी है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में नए भारत की न्याय की देवी की आंखें खुल गई हैं। इसके साथ ही पहले न्याय की देवी के हाथों में तलवार होती थी, लेकिन अब उसकी जगह संविधान की किताब है। 'न्याय की देवी' की यह नई प्रतिमा सुप्रीम कोर्ट में जजों के पुस्कालय में स्थापित की गई है, इस प्रतिमा से सुप्रीम कोर्ट ने संदेश देने की कोशिश की है कि कानून अंधा नहीं है।

21वीं सदी के नए भारत में नए कानून बन रहे हैं, अंग्रेजों के कानून बदले जा रहे हैं। बीते दिनों ने सरकार ने कई पुराने को कानूनों या तो बदल दिया है या उन्हें समाप्त कर दिया है। अब भारतीय न्याय पालिका ने भी ब्रिटिश काल की परम्परा को पीछे छोड़ते हुए नए रंगरूप में अपनाना शुरू कर दिया है।

'न्याय की देवी' के आंखों से उतरी पट्टी

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देशों पर जजों की लाइब्रेरी में एक ऐसी प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसने अंग्रेजी परम्परा को बदल कर दिया है। पहले 'न्याय की देवी' की जो प्रतिमा होती थी, उसकी आंखों पर पट्टी और एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में तराजू होता था। हालांकि अब 'न्याय की देवी' की आंखों से पट्टी उतर गई है और हाथ में तलवार की जगह संविधान है।

इसलिए हुआ बदलाव

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के निर्देश पर ही नई मूर्ति बनवाया गया है। उनका मानना है कि कानून अंधा नहीं है, हमें अंग्रेजों की विरासत से आगे बढ़ना चाहिए। अब समय आ गया है कि हमें 'न्याय की देवी' के स्वरूप को बदलना चाहिए। 'न्याय की देवी' के आंखों पर पट्टी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि कानून अंधा नहीं है। इसके साथ ही हाथों में तलवार भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये हिंसा का प्रतीक है। न्याय पालिका संविधान के अनुसार न्याय करती है, इसलिए 'न्याय की देवी' के हाथ में संविधान होना चाहिए। दूसरे हाथ में जो तराजू है, वह सही है, क्योंकि न्याय पालिका समान रूप से न्याय करती है।

कहां से लाई गई थी प्रतिमा

बता दें कि जिस प्रतिमा को हम न्याय की देवी के रूप में देखते थे, उसे यूनान से एक अंग्रेज अफसर 18वीं शताब्दी में लेकर आया था। यह न्याय की देवी यूनान की प्राचीन देवी हैं, इनका नाम जस्टिया है। वहां इन्हें न्याय के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इनकी आंखों पर बंधी पट्टी का मतलब यह निकाला जाता था कि निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी, क्योंकि यदि आंखें खुली होंगी तो न्याय में पक्षपात हो सकता है। हालांकि आजादी के बाद हमने इसी प्रतिमा को 'न्याय की देवी' मान लिया था।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

Next Story