×

BJP से जुड़े संगठनों के गले नहीं उतर रहा नोटों की किल्लत दूर करने का सरकारी आश्वासन

aman
By aman
Published on: 9 Dec 2016 3:05 PM GMT
BJP से जुड़े संगठनों के गले नहीं उतर रहा नोटों की किल्लत दूर करने का सरकारी आश्वासन
X

नई दिल्ली: नोटबंदी के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसदों के फीडबैक के बाद अब भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने जब 500 और 1000 के नोट बंद करने की मोदी सरकार के फैसले की सार्वजनिक आलोचना की, तो सरकार के सियासी प्रबंधक हरकत में आ गए। बीएमएस अध्यक्ष बैजनाथ सिंह ने नोटबंदी के एक माह बाद यह आरोप लगाकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया कि इससे असंगठित क्षेत्र में बड़ी तादाद में लोगों का रोजगार छिन गया है।

बीएमएस ने दी कड़ी प्रतिक्रिया

बीएमएस के इस बयान से बाकी श्रम संगठन आश्चर्यचकित हैं। क्योंकि ढाई साल में पहली बार बीएमएस ने मोदी सरकार के किसी कदम पर इतनी कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। बीएमएस से जुड़े कई प्रमुख लोगों ने बातचीत में कहा है कि 'कैशलेस सोसायटी के नारे से सबसे अधिक क्षति अनौपारिक क्षेत्र को हो रही है, क्योंकि इससे दिहाड़ी मजदूर और रोज कमाकर खाने वालों की रोजी-रोटी छिन रही है।

छिन रही नौकरियां

बीएमएस के अन्य पदाधिकारी ने बातचीत में स्वीकार किया है कि संघ से सहानुभूति रखने वाले सभी श्रमिक संगठनों ने अपने-अपने संपर्कों से मोदी सरकार के प्रबंधकों को ये बातें पहुंचा दी हैं। उन्होंने बताया है कि देश की दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि देश के प्रमुख शहरों में औद्योगिक गतिविधियां ठप होने से लोगों की नौकरियां छिन रही हैं।

नकदी की हुई है जमाखोरी

बीएमएस से संबंधित ऑल इंडिया बैंक इंपलाईज ऐसोसिएशन के उपाध्यक्ष अश्वनी राना मानते हैं कि 'पीएम ने कालेधन के खिलाफ जो मुहिम शुरू की है उससे तकलीफ इसलिए हो रही है क्योंकि लोगों ने संगठित तरीके से बाजार भेजी गई नकदी की अपने घरों में जमाखोरी कर ली है।'

हालात की करेंगे समीक्षा

इस बीच बीएमएम को छोड़कर बाकी श्रम संगठनों की आने वाले कुछ दिनों में बैठक होने की संभावना है। सीटू महासचिव और सांसद तपन सेन ने कहा है कि 'निश्चित ही हम आगामी कुछ दिनों में बैठक कर हालात की समीक्षा करने वाले हैं।' उनका कहना था कि नोटबंदी के बाद पिछली बैठक में हमने सरकार को आगाह कर दिया था कि इससे रोजगार के क्षेत्र व असंगठित क्षेत्र पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी।

बकौल तपन सेन, हुआ भी यही। नोटबंदी की अचानक घोषणा से जो भयावह हालात पैदा हुए उसके चलते अब सरकार खुद भी स्वीकार कर रही है कि जॉब क्षेत्र को सबसे ज्यादा क्षति पहुंच रही है।

मुद्राविहीन बाजार की कल्पना सही नहीं

संघ परिवार से संबद्ध एक अन्य संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि 'कालेधन और देश विरोधी ताकतें जो देश में आतंकवाद फैलाने के लिए नकली और अंडरवर्ल्ड के धन इस्तेमाल करती रही हैं उन्हें अब निश्चित ही करारा झटका लगा है। लेकिन भारत जैसे देश में जहां बड़ी तादाद में कम आय वर्ग, निरक्षर, किसान और ग्रामीण आबादी रहती है, वहां मुद्राविहीन बाजार की कल्पना करना कतई सही नहीं है।'

कैशलेस इकॉनॉमी मतलब 'खयाली पुलाव'

व्यापारी वर्ग जो कि संघ परिवार का परंपरागत समर्थक रहा है। नोटबंदी के बाद कारोबार ठप होने से गंभीर आर्थिक जंजाल में फंसा हुआ है। संघ के एक उच्च सूत्र ने स्वीकार किया कि कई व्यापारी संगठनों ने सामूहिक और निजी तौर पर नोटबंदी के बाद कैशलेस इकॉनॉमी के दावों को पूरी तरह 'अव्यावहारिक' और 'खयाली पुलाव' की संज्ञा दी है।

aman

aman

Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

Next Story