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शिक्षा का हाल: कक्षा दो की किताब नहीं पढ़ पाते कक्षा आठ के बच्चे
नई दिल्ली: देश के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की क्वालिटी क्या है यह इसी से पता चलता है कि कक्षा ८ के २५ फीसदी बच्च्चों को पढऩा तक नहीं आता है। कक्षा ५ में पढऩे वाले आधे बच्चे कक्षा २ की किताब तक नहीं पढ़ सकते हैं। यही नहीं, कक्षा ५ के ७३ फीसदी बच्चे गणित का साधारण भाग नहीं कर सकते हैं। कक्षा ८ के ५६ फीसदी बच्चे सामान्य गुणा-भाग नहीं कर सकते हैं।
कहने को बच्चे स्कूल में साल दर साल पास हो कर अगली कक्षाओं में जाते हैं लेकिन जो चीजें शुरुआती कक्षा में सीख लेनी चाहिए थीं वह सीख नहीं पाते। शिक्षा की स्थिति पर वार्षिक स्टेटस रिपोर्ट (असर २०१८) बता रही है कि बच्चों की शिक्षा की हालत बदल तो रही है लेकिन बहुत ही धीमी रफ्तार से। अभी बहुत लंबा सफर बाकी है। कक्षा ५ में पढऩे वाले आधे से थोड़ा ज्यादा बच्चे (५०.५ फीसदी) कक्षा २ की किताब पढ़ सकते हैं। २०१२ में यह आंकड़ा ४६.९ फीसदी था। इसके अलावा गणित का साधारण भाग करने में सक्षम कक्षा ५ के बच्चों की संख्या २०१८ में २७.९ फीसदी रही जबकि २०१२ में यह २४.९ फीसदी थी। कक्षा ३ के बच्चों की बात करें तो उनमें कक्षा २ की किताब पढ़ सकने वाले बच्चों की संख्या २०१० के १९.५ फीसदी से बढ़ कर २७.२ फीसदी हो गई है।
‘असर’ सर्वे बताता है कि उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, ओडीशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ‘बेसिक रीडिंग लेवल’ २०१६ से अब तक ५ फीसदी अंक बढ़ा है। वहीं, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, केरल, नगालैंड, तमिलनाडु, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बेसिक गणित का स्तर ५ फीसदी अंक से भी ज्यादा बढ़ा है।
कक्षा ५ के ‘रीडिंग लेवल’ में केरल ७७.५ फीसदी के साथ टॉप पर है। २०१६ में यह आंकड़ा ६९.४ फीसदी था। यहां इस प्रदर्शन में सरकारी स्कूलों का सबसे बड़ा योगदान है। सरकारी स्कूलों के बच्चों में ‘रीडिंग लेवल’ जहां १० फीसदी बढ़ा है वहीं निजी स्कूलों में यह ७.३ फीसदी ही बढ़ा है। केरल में विगत वर्षों में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चला है।
छत्तीसगढ़ में कक्षा ५ के बच्चों में ‘रीडिंग लेवल’ २०१६ के ५६ फीसदी से बढ़ कर २०१८ में ५९.६ फीसदी तक पहुंच गया। इस वृद्धि में सरकारी स्कूलों का बड़ा योगदान है। राज्य के सरकारी स्कूलों में ६.१ फीसदी अंक की बढ़ोतरी हुई जबकिनिजी स्कूल नीचे खिसक कर ५.७ फीसदी अंक पर पहुंच गए।
असर सेनटर के निदेशक विलिमा वाधवा के अनुसार खास कर उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में जिस तरह प्रगति हुई है उसकी तो उम्मीद ही नहीं थी। यूपी में सरकारी स्कूलों के कक्षा ५ के बच्चों में ‘रीडिंग लेवल’ ११.९ फीसदी बढ़ कर २०१८ में ३६.२ फीसदी पहुंच गया। निजी स्कूलों में ये वृद्धि मात्र ७.६ फीसदी रही।
असर की रिपोर्ट बताती है कि देश के राज्यों में बच्चों के बीच सीखने के स्तर में बहुत अंतर है। मिसाल के तौर पर यूपी और हिमाचल प्रदेश में कक्षा ३ के बच्चों में रीडिंग लेवल २०१४ से २०१८ के बीच ५ फीसदी अंक बढ़ा है लेेकिन यूपी में कक्षा ३ के ६० फीसदी बच्चे अक्षर या शब्द नहीं पढ़ पाते हैं। इन बच्चों को तत्काल मदद की जरूरत है नहीन तो जब वह अगली कक्षा में जाएंगे तो यह नाकाबिलियत आगे और बढ़ती जाएगी। कक्षा ८ प्राथमिक स्कूल का अंतिम पड़ाव है। इस स्तर पर बच्चे से अपेक्षा की जाती है कि उसे न सिर्फ बुनियादी स्किल में महारत हो बल्कि वह प्राथमिक स्तर से आगे बढ़ चुका हो। २०१८ के सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि कक्षा ८ में पढ़ रहे ७३ फीसदी बच्चे कम से कम कक्षा २ के स्तर का पाठ पढ़ लेते हैं। यह आंकड़ा २०१६ से वैसे का वैसा है। बुनियादी गणित में भी वही हाल है। कक्षा ८ के सभी बच्चों में से ४४ फीसदी बच्चे तीन अंकों में एक अंक के भाग के सवालों को सही सही कर पाते हैं। कुछ राज्यों में इस स्थिति में उल्लेखनीय सुधार भी है। उत्तर प्रदेश में २५.५ से बढ़ कर ३२ फीसदी, पंजाब में ४८ फीसदी बढ़ कर ५८.४ फीसदी महाराष्ट्र में ३२.४ फीसदी से बढ़ कर ४१.४ फीसदी का सुधार हुआ है।
बच्चों का नामांकन
सर्वे के तहत पाया गया कि २०१८ में ४० फीसदी सरकारी स्कूलों में बच्चों की नामांकन संख्या ६० से कम थी। पिछले दशक में ऐसे स्कूलों का प्रतिशत लगातार बढ़ा है। २००९ में यह २६.१ था जो २०११ में बढ़ कर ३० फीसदी, २०१३ में ३३.१ फीसदी २०१६ में ३९.८ फीसदी और २०१८ में ४३.३ फीसदी हो गया।
बच्चों और टीचरों की उपस्थिति
जहां तक स्कूलों में बच्चों और टीचरों की उपस्थिति का सवाल है, इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। पिछले कई वर्षों के दौरान प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में टीचरों की उपस्थिति औसतन ८५ फीसदी रही जबकि बच्चों की उपस्थिति ७२ फीसदी के आसपास रही। उपस्थिति के मामले में राज्यों की स्थिति भी अलग-अलग रही है। २०१८ में प्राथमिक स्कूलों के मामले में कर्नाटक और तमिलनाडु में बच्चों की उपस्थिति ९० फीसदी या उससे ज्यादा रही। टीचरों की उपस्थिति के मामले में २०१८ में ९० फीसदी या उससे ज्यादा का आंकड़ा छूने वाले राज्य हैं झारखंड, ओडीशा, कर्नाटक और तमिलनाडु।