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'बिहार में कुछ बड़ा होने वाला है...' ऐलान के बाद 22 कमांडो के बीच श्रीप्रकाश शुक्ला ने कैसे की बृजबिहारी की हत्या
Brij Bihari Prasad Murder Case: 1990 के दशक में बिहार में बाहुबलियों का आतंक आज फिर याद आया। बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में आज दो आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
Brij Bihari Prasad Murder Case: 90 के दशक में बिहार बाहुबलियों का गढ़ रहा है। हत्या जैसे जघन्य अपराध भी प्रदेश के लिए आम बात थी। प्रदेश में माफियाओं और गुंडों का आतंक था। सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी। लचर कानून व्यवस्था से सरकार और प्रदेश का काफी नुकसान हुआ। इस गैंगवार के चलते बिहार सरकार अपने ही मंत्री को नहीं बचा पाई। राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री रहे बृजबिहारी प्रसाद की पुलिस की सुरक्षा होते हुए भी हत्या कर दी गई। बेखौफ बदमाशों ने हत्या से पहले ऐलान भी कर दिया। इनमें उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रीप्रकाश शुक्ला, देवेन्द्र दूबे और अनुज प्रताप सिंह सहित दर्जनों गुंडों के नाम शामिल हैं। बृज बिहारी प्रसाद भी इसी गैंगवार का शिकार हुए।
बदला लेने के लिए शुरु हुआ खेल
1990 के दशक में बिहार में बाहुबलियों का आतंक आज फिर याद आया। बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में आज दो आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुना दी गई। इस कांड के पीछे गैंगवार और वर्चस्व की लड़ाई थी। 90 के दशक में देवेंद्र दुबे, मुन्ना शुक्ला, बृजबिहारी प्रसाद, राजन तिवारी और सूरजभान सिंह जैसे बाहुबली नेता राजनीति में सक्रिय थे। इसी बीच असम से इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए हुए एक युवा ने जरायम की दुनिया में कदम रखा। नाम था देवेंद्र दुबे। चंपारण के गोविंदगंज के रहने वाले देवेंद्र की बहन से बिहार में छेड़छाड़ हुई। देवेंद्र को प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। बदला लेने के लिए उसने हथियार उठा लिया। बहुत जल्द 35 हत्या के मुकदमों के साथ देवेंद्र ने रॉबिनहुड की छवि बना ली। 1995 के विधानसभा चुनाव में वह जेल में रहते हुए ही गोविंदगंज से विधायक बन गया।
गैंगवार की शुरुआत
देवेंद्र दुबे के विधायक बनने के बाद मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह, राजन तिवारी जैसे लोग उसकी छत्रछाया में बाहुबली बने। रेलवे के ठेकों में हिस्सेदारी के चलते देवेंद्र की दोस्ती उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला से हुई। दोनों का अपने इलाके में जबरदस्त वर्चस्व था। कहा जाता है कि देवेंद्र के विधायक बनने में श्रीप्रकाश शुक्ला और राजन तिवारी की अहम भूमिका थी। मगर इस गुट के मजबूत होने से राजद के बाहुबलियों को नुकसान हो रहा था। देवेंद्र को दबाने के लिए राजद समर्थकों का दूसरा गुट बना। कहा जाता है कि इसकी नींव पूर्णिया के मौजूदा सांसद पप्पू यादव ने रखी। हालांकि न्यूजट्रैक इस बात की पुष्टि नहीं करता। इस गुट की कमान बहुत जल्द पप्पू यादव के हाथ से बृजबिहारी प्रसाद के पास आ गई।
देवेंद्र दुबे का खात्मा
बृजबिहारी प्रसाद लालू यादव के करीबी थे। लालू ने उन्हें चुनाव लड़वाया। जीतने पर उन्हें सरकार में मंत्री पद दिया। मगर बृजबिहारी प्रसाद को टक्कर देने के लिए देवेंद्र फिर सामने आया। देवेंद्र ने संसदीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। बृजबिहारी प्रसाद भी यह चुनाव लड़ना चाहते थे। देवेंद्र उनकी राह में सबसे बड़ा कांटा था। यहीं से दोनों की हत्या की जड़ें निकली। बृजबिहारी प्रसाद सरकार में मंत्री थे। देवेंद्र से ज्यादा मजबूत थे। इससे पहले की चुनाव होता 25 फरवरी 1998 को देवेंद्र दुबे की बृजबिहारी प्रसाद के इलाके में हत्या कर दी गई। बृजबिहारी प्रसाद पर हत्या का आरोप लगा। यहीं एक माफिया के खात्मे के साथ दूसरे ने जन्म लिया। देवेंद्र दुबे के भतीजे मंटू तिवारी ने बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में कदम रखा।
'गुरु दक्षिणा का वक्त आ गया है'
बृजबिहारी प्रसाद ने अपनी राह से देवेंद्र को तो हटा दिया मगर मोकामा गैंग उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रहा था। मोकामा गैंग के मुखिया थे सूरजभान सिंह। बृजबिहारी प्रसाद मंत्री थे। उन्होंने सूरजभान को जेल भिजवा दिया। मगर अब तक सूरजभान ने अपराध के सारे गुण सीख लिए थे। उसका संपर्क गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी गैंग के शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला से था। शुक्ला भी अपराध की दुनिया में उड़ान भरना चाहता था। श्रीप्रकाश शुक्ला की अपारध की धार सूरजभान के साथ रहते हुए ही तेज हुई थी। एक तरह से वह श्रीप्रकाश शुक्ला का गुरु था। कहा जाता है कि जब सूरजभान को पता चला कि अब बृजबिहारी उसकी हत्या करा सकते हैं तब उसने श्रीप्रकाश शुक्ला को बिहार बुलाया।
सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला को थमाई AK-47
संदेश दिया गया कि गुरु दक्षिणा देने का वक्त आ गया है। उस वक्त शुक्ला के पास AK-47 नहीं, देशी पिस्टल होती थी। शुक्ला को बृजबिहारी की हत्या करने को कहा गया। उसने सूरजभान से सवाल किया। देशी पिस्टल से काम कैसे होगा? सूरजभान ने जवाब में कहा कि पटना पहुंचते ही इतने हथियार मिलेंगे जितना कभी देखा भी नहीं होगा। शुक्ला को बिहार जाना था। मगर सीधा-सीधा नहीं। श्रीप्रकाश शुक्ला को ट्रेन से दिल्ली भेजा गया और दिल्ली से पटना प्लेन से।
'बिहार में कुछ बड़ा होने वाला है'
11 जून यानी हत्या के दो दिन पहले श्रीप्रकाश शुक्ला बिहार पहुंचा। 11 जून की दोपहर को आज अखबार के ऑफिस पहुंच कर उसने ऐलान किया- अखबार में छाप दो, बिहार में कुछ बड़ा होने वाला है। पटना पहुंचते ही सूरजभान सिंह के लोगों ने उसे AK-47 थमाई। 11 और 12 जून को उस अस्पताल की रैकी की गई जहां बृजबिहारी भर्ती थे। श्रीप्रकाश शुक्ला, अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी खुद अस्पताल गए थे। बृजबिहारी बिहार गैंगस्टर छोटन शुक्ला, भुटकुन शुक्ला और देवेन्द्र दूबे की हत्या में नामजद थे। उन्हें हमले की आशंका थी। इस दौरान वह पटना में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे। सुरक्षा के लिए अस्पताल में 22 कमांडो तैनात किए गए थे। साथ ही भारी संख्या में पुलिस बल।
बृजबिहारी की हत्या
13 जून 1998 की शाम पांच बजे एक एंबेसडर कार और बुलेट अस्पताल के सामने रुकी। पांच लोग असलहों के साथ अस्पताल में घुस गए। सबसे आगे श्रीप्रकाश शुक्ला। पीछे सुधीर त्रिपाठी और अनुज सिंह। सबसे पीछे मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी। बृजबिहारी प्रसाद पर गोलियों की बौछार कर दी गई। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। हत्या के तुरंत बाद आज अखबार के दफ्तर में एक फोन आया। कहा जाता है वह फोन श्रीप्रकाश शुक्ला ने किया था। दफ्तर में बताया गया कि, ‘मै अशोक सिंह बोल रहा हूं और बृजबिहारी को इतनी गोलियां मारी है कि पूरे शरीर में छेद ही छेद हो गया है’।
26 साल बाद आया फैसला
हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। मास्टरमाइंड मोकामा गैंग के सरगना सूरजभान सिंह समेत आधा दर्जन लोग नामजद थे। बाद में जोड़े गए नामों को हाईकोर्ट ने हटा दिया। श्रीप्रकाश शुक्ला, अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी एनकाउंटर में मारे गए। आज करीब 26 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है। मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा दी गई है।