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ब्रिटिश राज की यादगार इमारतें, करेंसी बिल्डिंग, मेटकाफ हॉल और बेलवर्डे हाउस

raghvendra
Published on: 17 Jan 2020 7:05 AM GMT
ब्रिटिश राज की यादगार इमारतें, करेंसी बिल्डिंग, मेटकाफ हॉल और बेलवर्डे हाउस
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कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में कोलकाता में तीन इमारतों का लोकापर्ण किया। ब्रिटिश काल में निर्मित ये तीनों प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व की इमारतें हैं। ऐसे में इनका जीर्णोद्घार किया जाना जरूरी था। अब इन्हें नया रंग रूप दिया गया है। जानते हैं इनके बारे में।

बेलवर्डे हाउस

कोलकाता की तीसरी इमारत है बेलवर्डे हाउस जो ३० एकड़ में बने बेलवर्डे इस्टेट का हिस्सा है। बेलवर्डे इस्टेट में भारत के वायसरॉय का महल हुआ करता था। माना जाता है कि जब मीर जाफर अली खान कलकत्ता में था तब उसने इस इलाके में कई इमारतें बनवाईं और इसे वारेन हेस्टिंग्स को उपहार स्वरूप दे दिया। बंगाल के पहले गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (१७७३-१७८५) यहीं पर निवास करते थे। बेलवर्डे हाउस का स्थापत्य इटैलियन रेनेसां स्टाइल का है।

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जब १९१२ में भारत की राजधानी दिल्ली हो गई तो वायसरॉय वहां चले गए लेकिन बेलवर्डे हाउस को उनके कलकत्ता निवास के रूप में ही रहने दिया गया। बाद में इसे बंगाल के गर्वनर का आवास बना दिया गया। १९४८ से यहां नेशनल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया स्थित है जहां सवा दो करोड़ पुस्तकें संग्रहीत हैं। इसके वाचनालय में ५०० लोग एकसाथ बैठ सकते हैं। जब कोलकाता में ब्रिटिश राज की बात की जाती है बेलवर्डे इस्टेट को उस युग के सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में माना जाता है। ये इमारत अलीपुर जू के ठीक सामने स्थित है।

मेटकाफ हॉल

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘मेटकाफ हॉल’ का भी लोकार्पण किया गया है। ये भी एक हेरीटेज बिल्ंिडग है जो कोलकाता शहर के बीच में स्ट्रैंड रोड पर स्थित है। ये इमारत १८४०-४४ के बीच बनी थी और इसका नाम भारत के गवर्नर जनरल सर चाल्र्स टी. मैटकाफ द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए किए गए काम के सम्मान में उनके नाम पर रखा गया। शुरुआत में इस इमारत में कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी हुआ करती थी जिसके पहले मालिक थे द्वारकानाथ टैगोर। लाइब्रेरी की स्थापना के लिए लार्ड मैटकाफ ने फोर्ट विलियम कॉलेज से ४६७५ पुस्तकें यहां भिजवाईं थीं। आज इस इमारत में एशियाटिक सोसाइटी की लाइब्रेरी है तथा पहली मंजिल पर प्रदर्शनी की गैलरियां व एएसआई का सेल्स काउंटर है। सफेद रंग की इस दो मंजिली इमारत में ३० विशालकाय स्तंभ हैं जो १९वीं सदी के ब्रिटिश स्थापत्य का बेहतरीन नमूना हैं।

करेंसी बिल्डिंग

१५० वर्ष पुरानी ये इमारत कोलकाता के डलहौजी स्कवायर में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की वेबसाइट के अनुसार करेंसी बिल्डिंग १८३३ में बनी थी और इसमें ‘आगरा बैंक’ का था। इसका नाम करेंसी बिल्डिंग उस समय पड़ा जब तत्कालीन सरकार ने १८६६ में आगरा बैंक लिमिटेड से काफी जगह लेकर अपना करेंसी डिपार्टमेंट यहां स्थापित कर दिया। आजादी के बाद करेंसी बिल्डिंग केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत आ गई और १९९४ तक इसमें रिजर्व बैंक का दफ्तर चलता रहा। १९९६ में सीपीडब्लूडी ने इस बिल्डिंग को ढहाना शुरू कर दिया। ढहाने का कम तब रुका जब कलकत्ता म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ने और इंटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज) ने इस पर आपत्ति जताई।

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२००२ में एएसआई ने इस इमारत को ‘संरक्षित’ घोषित कर दिया और उसके बाद २००५ में इस इमारत की कस्टडी एएसआई को मिली लेकिन तब तक तीन विशालकाय केंद्रीय गुम्बद ढहाए जा चुके थे। एएसआई ने मोदी सरकार के दौरान इस इमारत के पुनरुद्धार का काम किया है। अब इस इमारत में प्रदर्शनी जैसे इवेंट आयोजित किये जाएंगे। इस कड़ी में सबसे पहला इवेंट है जूट व सिल्क प्रदर्शनी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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