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अंग्रेजों को डराने लगी थी 'खूनी बैसाखी'

जलियांवाला बाग हत्याकांड के सौ बरस पूरे होने पर नानक सिंह की पुस्तक 'खूनी बैसाखीÓ का विमोचन किया जाएगा। यह जहां एक तरफ शहीदों को श्रद्धांजलि होगी, वहीं दूसरी ओर इस पुस्तक के भी 99 वर्ष पूरे होंगे।

Shivakant Shukla
Published on: 12 April 2019 3:23 PM GMT
अंग्रेजों को डराने लगी थी खूनी बैसाखी
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दुर्गेश पार्थसारथी अमृतसर

'सोलह सौ पचास गोलिया, चली हमारे सीने पर।

पैरों में बेड़ी डाल, बंदिशें लगी हमारे जीने पर।

रक्तपात करुणाग्रंदन, बस चारों होर यही था।

पत्नी के कंधे लाश पति की, जड़ चेतन में मातम था।

इंकलाब का ऊंचा स्वर, इस पर भी यारों दबा नहीं।

भारत कां का जयकारा, बंदूकों से डरा नहीं।

ये चंद पंक्तियां जलियांवाले बाग की हत्याकांड की बर्बता बताने के लिए काफी हैं।

बेशक जलियांवाले बाग हत्याकांड को आज सौ साल हो चुके हैं। लेकिन इसकी यादें आज भी ताजा है। देश के सपूतों रक्त सिंचित जलियांवाले बाग की दीवरों पर लगी गोलियों के निशान देखने वालों के मन में सिहरन सी पैदा करते हैं। ये दकती हुई दीवारों के सीने में धंसी गोलियां सौ साल बाद भी ब्रिटिश हुक्मरानों की दमनकारी शासन की याद दिलाती हैं।

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जलियांवाला बाग हत्या कांड में कितने लोग मारे गए। इसका सही आंकड़ा आज भी नहीं मिलता। अलग-अलग अभिलेखों अलग-अलग संख्या दर्ज हैं। लेकिन इस घटना ने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर को भी हिला कर रख दिया था। यही नहीं जनरल डायर की इस क्रूरता को करीब महसू करने वाले दो लोग ऐसे थे जो लाशों की ढेर में जिंदा बच गए थे। उनमें से एक थे उधम सिंह और दूसरा नानक सिंह। इन दोनों ही लोगों ने अपने-अपने ढंग से आजादी की जंग लड़ी।

कहा जाता है कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन रॉलेट ऐक्ट के विरोध में स्थानीय नेता जलियां वाले बाग में अपनी-अपनी तकरीर दे रहे थे उस समय किशोर उम्र के उधम सिंह मजलिश में बैठे लोगों को पानी पिला रहे थे। जबकि 22 वर्ष के युवा नानक सिंह लोगों की तकरीर सुन रहे थे। जबकि सआदत हसन अपने अब्बू के गोद में बैठे जलूस देख रहे थे। उस समय उनकी उम्र 7 वर्ष थी।

नानक सिंह ने लिखी 'खूनी बैसाखी'

जलियांवाला हत्याकांड के करीब एक वर्ष बाद नानक सिंह ने खूनी बैसाखी नाम से 1920 में एक लंबी कविता लिखी। यह कविता उन्होंने पंजाबी में लिखी थी। यह कविता क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में बल दे रही थी। इस कविता के प्रकाशन के कुछ समय बाद अंग्रेजों इसे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मानते हुए 'खूनी बैसाखीÓ पर पाबंदी लगाते हुए इसकी मूल प्रति जब्त कर ली थी।

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मंटो ने लिखा 'तमाशा

इस घटना के करीब 20-25 वर्ष बाद ऊर्दू कहानियों के प्रसिद्ध लेखक शआदत हसन मंटों ने जलियांवाला बाग हत्या कांड पर आधारित 'तमाशाÓ की एक कहानी लिखी। जब यह घटना हुई थी उस समय मंटो की उम्र महज सात वर्ष थी। शायद कि कहानी में मंटो ने अपनी मनो दशा को व्यक्त किया है। जो अंग्रेजों के उड़ते हुए जहाज और बाग में डायर द्वारा चलवाई गई गोलियों की आवाज सुन कर अपने वालिद से सवाल करता है।

कई लेखकों ने लिखी किताबें

बहरहाल काल के कपाल पर कभी न भरने वाले इस जख्म के बारे में शहादत के इन सौ सालों में नानक सिंह से लेकर सल्मान रुसदी से होते हुए अभी तक कई उपन्यासों ने किताबें लिखी हैं। यहीं नहीं इस घटना पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं।

नानक सिंह पर जारी हो चुका डाक टिकट

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खूनी बैसाखी में खुल कर लिखने वाले नानक सिंह के सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1998 में दो रुपये का डाक टिकट भी जारी किया था। यही नहीं उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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फिर रीलिज होगी खूनी बैसाखी

जलियांवाला बाग हत्याकांड के सौ बरस पूरे होने पर नानक सिंह की पुस्तक 'खूनी बैसाखीÓ का विमोचन किया जाएगा। यह जहां एक तरफ शहीदों को श्रद्धांजलि होगी, वहीं दूसरी ओर इस पुस्तक के भी 99 वर्ष पूरे होंगे।

बताया जा रहा है खूनी बैसाखी का विमोचन 15 अप्रैल को अमृतसर के गुरुनानक ऑडिटोरियम में नानक सिंह के पोते राजनयीक नवदीप सूरी करेंगे। बताया जा रहा है कि देश विभाजन के दौरान इसकी मूल प्रति कहीं खो गई थी, जिसे अब ढूंढ लिया गया है। गुरुमुखी में लिखी इस कविता का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। इस कविता में जस्टिन रॉलेक्ट के लेख भी शामिल होंगे। जस्टिन रॉलेक्ट के पड़दादा सर ऑर्थर रॉलेक्ट ने ही रॉलेक्ट कमेटी का नेतृत्व कर रॉलेक्ट एक्ट ड्राप्ट किया था। जिसके विरोध में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था।

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Shivakant Shukla

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