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बौद्ध धर्म का सेंटर था संघोल, 2500 साल पहले का इतिहास सुरक्षित
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: तथागत भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े लुंबिनी, राजगीर, बोधगया, सारनाथ, वैशाली, श्रावस्ती, कौशाम्बी, नालंदा, चंपा, पाटलीपुत्र व कुशीनगर बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं क्योंकि इनका तथागत से सीधा संबंध रहा है। लेकिन इससे अलग एक बौद्ध स्थल और भी है जो भगवान बुद्ध की चरण धुलि न पाकर भी उनके प्रकाश से प्रकाशित है। वह है संघोल का बौद्ध विहार।
चंडीगढ़-लुधियाना मार्ग पर जिला फतेहगढ़ साहिब में स्थित उच्चा पिंड में 2500 साल पहले का इतिहास सुरक्षित है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध की मृत्यु के लगभग सौ साल बाद मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उनकी चिता भस्म पर स्तूप बनवाए थे। ये स्तूप सारनाथ, सांची, नालंदा, तक्षशिला सहित देश के विभिन्न भागों सहित अफगान व ईरान में स्थित थे। कुछ जानकारों के मुताबिक स्तूपों में से पांच स्तूप संघल अर्थात संघोल नगर में बने थे। हालांकि इसका कोई प्रमाणिक तथ्य या ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यह मात्र जनश्रुतियां हैं।
कहा जाता है कि इन पांच स्तूपों में से तीन स्तूपों को ग्रामीणों ने अनजाने में नष्ट कर दिया। इस गांव के ऐतिहासिक महत्व को पहचाना पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक आर के विष्ट ने। उन्होंने इस गांव को ऐतिहासिक दृष्टि से चार भागों में बांट कर 1964 से 1969 तक विभिन्न चरणों में खुदाई करवाई। इसके बाद यहां से हड़प्पा युग से मौर्येत्तर काल तक के महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने आए। यहां से हिंद, पहलो, गोंदों कंफिसियस, कुषाण व अर्ध जनजातीय लोगों से संबंधित मुद्राएं भी मिलीं। इन साक्ष्यों के आधार पर कहा जाता है कि यहां पर टकसाल भी रहा होगा।
ह्वेनसांग ने भी किया है उल्लेख
केंद्रीय पुरातत्व विभाग चंडीगढ़ के असिस्टेंट निदेशक डॉ. अक्षित कौशिक के अनुसार इस स्थल का उल्?लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में भी किया गया है। इसके अनुसार संघोल से मिले बौद्ध स्तूप के अवशेषों का संबंध ईसा पूर्व सातवीं सदी से हो सकता है। डॉ.कौशिक के मुताबिक उस समय पंजाब में विशिष्ट कला शैली का विकास हुआ था। यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र भी था। इसकी पुष्टि संघोल से मिली पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं, एक वृहद स्तूप के भग्नावशेष व बौद्ध विहारों के खंडहरों से होती है।
जहांगीर ने बसाया जैसलमेर के राजपूतों को
संघोल की खुदाई से जुड़े डॉ.विष्णु शर्मा व डॉ. मनमोहन शर्मा के अनुसार कई चरणों में हुई संघोल के पुरातात्विक स्थलों की खुदाई से जो बात सामने आई है उसके मुताबिक जहांगीर के शासनकाल में जैसलमेर से राजपूतों को लाकर यहां बसाया गया था। हूणों के हमलों के बाद बेशक बौद्ध स्तूप जमींदोज हो गए व बौद्ध विहार व नगर उजड़ गए, लेकिन बाद में यह नगर फिर आबाद हो गया। अब इस ऐतिहासिक महत्व के बौद्ध स्थल को पर्यटन के नक्शे पर लाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि चीन, जापान श्रीलंका सहित अन्य देशों के बौद्ध अनुयायी आसानी से इस स्थल तक पहुंच सकें।
हर्षवर्धन के काल में हुआ था स्तूपों का निर्माण
इतिहासकारों का मानना है कि संघोल की खुदाई से मिली वस्तुओं के आधार पर माना जा सकता है कि इस स्तूप का निर्माण संभवत: हर्षवर्धन के काल में बौद्ध भिक्षु भद्रक द्वारा करवाया गया होगा। वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पाकालीन संस्कृति से जुड़े इस गांव का पुराना नाम संगल था, जो कालांतर में संघोल हो गया। डॉ.सुभाष परिहार की मानें तो बौद्ध स्तूप, बौद्ध विहार व यहां पर विकसित नगर सभ्यता के नष्ट होने का मुख्य कारण हूणों का हमला रहा होगा यानी संघोल का संबंध स्कंदगुप्त के शासनकाल से भी रहा है।