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Cabinet: कैबिनेट और राज्य मंत्री... किसमें है कितना अंतर?, जानिए मंत्री पद मिलते ही कैसे बढ़ जाती है सैलरी
Cabinet: नरेंद्र मोदी के साथ 71 सांसदों ने रविवार को मंत्री पद की शपथ ली। एनडीए की इस सरकार में 30 कैबिनेट, 5 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्य मंत्री बनाए गए हैं।
Cabinet: देश में तीसरी बार एनडीए की सरकार बन गई है। इस सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं। रविवार को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले नरेंद्र मोदी के साथ 71 सांसदों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। मोदी सरकार में ये सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है। 2014 में जब मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उस समय 46 सांसदभी मंत्री बने थे। 2019 में उनके मंत्रिमंडल में 59 मंत्री शामिल थे।
कुल 81 मंत्री ही हो सकते हैं
2024 में एनडीए की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर 72 मंत्री शामिल हैं। मोदी 3.0 सरकार में 30 कैबिनेट, 5 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्य मंत्री बनाए गए हैं। अभी मोदी की कैबिनेट में 9 सांसद और मंत्री बन सकते हैं, क्योंकि संविधान में 81 मंत्रियों की सीमा तय है। संविधान के 91वें संशोधन के मुताबिक, लोकसभा के कुल सदस्यों में से 15 प्रतिशत सदस्यों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है यानी मंत्री बनाया जा सकता है। लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं, इसलिए कैबिनेट में कुल 81 मंत्री ही हो सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत, प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिमंडल का गठन करते हैं। मंत्रिमंडल में तीन तरह के मंत्री होते हैं, जिनमें कैबिनेट, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्य मंत्री होता है। मंत्रिमंडल में सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री, उसके बाद राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और फिर राज्य मंत्री होता है। जिन्हें भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है, उन्हें बाकी सांसदों की तुलना में हर महीने अलग से भत्ता भी मिलता है।
आइए जानते हैं तीनों में क्या होता है अंतर?
-कैबिनेट मंत्री
ऐसे मंत्री जो डायरेक्ट प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इन्हें जो भी मंत्रालय दिया जाता है, उसकी पूरी जिम्मेदारी उनकी ही होती है। कैबिनेट मंत्री को एक से अधिक मंत्रालय भी दिए जा सकते हैं। कैबिनेट मंत्री का बैठकों में शामिल होना जरूरी होता है। सरकार अपने सभी फैसले कैबिनेट बैठक में ही लेती है।
-राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
कैबिनेट मंत्री के बाद स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री होते हैं। ये भी अपनी सीधी रिपोर्टिंग प्रधानमंत्री को ही करते हैं। इनके पास अपना मंत्रालय होता है। ये कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट नहीं करते। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री कैबिनेट बैठक में शामिल नहीं होते हैं।
- राज्य मंत्री
राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्री की मदद के लिए बनाए जाते हैं। इनकी रिपोर्टिंग कैबिनेट मंत्री को होती है। एक मंत्रालय में एक से ज्यादा भी राज्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। कैबिनेट मंत्री की गैरमौजूदगी में मंत्रालय की सारी जिम्मेदारी राज्य मंत्री की होती है। राज्य मंत्री भी कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं होते।
मंत्री पद मिलते ही बढ़ जाती है सुविधाएं
वैसे तो लोकसभा के हर सदस्य की सैलरी और भत्ते तय हैं। लेकिन जो सांसद प्रराज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)हैं, उन्हें हर माह बाकी सांसदों की तुलना में एक अलग से भत्ता भी मिलता है।सांसदों को मिलने वाली सैलरी और भत्ते सैलरी एक्ट के तहत तय होती है। इसके मुताबिक, लोकसभा के हर सदस्य को हर महीने 1 लाख रुपये की बेसिक सैलरी मिलती है। इसके साथ ही 70 हजार रुपये निर्वाचन भत्ता और 60 हजार रुपये ऑफिस खर्च के लिए अलग से मिलते हैं। इसके अलावा जब संसद का सत्र चलता है तो दो हजार रुपये का डेली अलाउंस भी मिलता है। प्रधानमंत्री और मंत्रियों को हर महीने सत्कार भत्ता भी मिलता है। प्रधानमंत्री को 3 हजार, कैबिनेट मंत्री को 2 हजार, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 1 हजार और राज्य मंत्री को 600 रुपये का सत्कार भत्ता हर महीने मिलता है। असल में ये भत्ता हॉस्पिटैलिटी के लिए रहता है और मंत्रियों से मिलने आने वाले लोगों की आवभगत पर खर्चा होता है।
सांसद को हर माह मिलते हैं 2.30 लाख
इसे ऐसे समझिए कि एक लोकसभा सांसद को सैलरी और भत्ते मिलाकर हर महीने कुल 2.30 लाख रुपये मिलते हैं। जबकि, प्रधानमंत्री को 2.33 लाख, कैबिनेट मंत्री को 2.32 लाख, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 2.31 लाख और राज्य मंत्री को 2,30,600 रुपये मिलते हैं।
क्या सांसदों को टैक्स भी देना पड़ता है?
बता दें चाहे सांसद हो या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति, सभी को इनकम टैक्स देना पड़ता है। हालांकि, इन्हें केवल सैलरी पर ही टैक्स देना होता है।नियमों के मुताबिक, लोकसभा-राज्यसभा के सांसद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति केवल सैलरी पर ही टैक्स भरते हैं। बाकी जो अलग से भत्ते मिलते हैं उन पर कोई टैक्स नहीं लगता। मतलब, सांसदों की हर महीने की सैलरी एक लाख रुपये है। इस हिसाब से सालाना सैलरी 12 लाख रुपये होती है। इस पर ही उन्हें टैक्स देना पढ़ता है। सांसदों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की सैलरी पर अन्य स्रोतों से प्राप्त आय के अंतर्गत टैक्स लगाया जाता है।