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शराब पिला-पिलाकर फायदा कमाने की जगह हो गया भारी नुकसान, CAG रिपोर्ट में हुआ खुलासा
Delhi CAG Report: दिल्ली विधानसभा में आज मुख्यमंत्री रेखा ने CAG रिपोर्ट को पेश किया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दिल्ली सरकार को नई शराब नीति की वजह से बंपर चपत लगी। चपत का कारण नई नीति में कई तरह की छूट और नियमों की अनदेखी होना बताया गया। इस वजह से सरकार को 2002 करोड़ की चपत लगी।
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Delhi CAG Report: दिल्ली विधानसभा में आज मुख्यमंत्री रेखा ने CAG रिपोर्ट को पेश किया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दिल्ली सरकार को नई शराब नीति की वजह से बंपर चपत लगी। चपत का कारण नई नीति में कई तरह की छूट और नियमों की अनदेखी होना बताया गया। इस वजह से सरकार को 2002 करोड़ की चपत लगी।
नुकसान होने के क्या रहे कारण
सबसे पहले, गैर-अनुरूप क्षेत्रों में शराब के ठेके न खोलने का कारण सरकार को 941.53 करोड़ की चपत लगी। इसके अलावा छोड़े गये लाइसेंस का फिर से न टेंडर करने से 890 करोड़ का नुकसान है। साथ ही कोरोना के कारण लाइसेंस फीस में छूट देने का फैसला भी गले की फांस बन गया। जिसके चलते 144 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा।
साथ ही नियम 35 (दिल्ली अबाकारी नीति, 2010) को भी सही रूप में लागू न करने का भी खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ा। वहीं, सिक्योरिटी डिपोजिट का सही तरीके से कलेक्शन न होने के कारण ₹27 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
नियम 35 (दिल्ली आबकारी नीति, 2010) को सही से लागू न किए जाने का भी बड़ा असर पड़ा। साथ ही, सिक्योरिटी डिपोजिट का सही तरीके से कलेक्शन न होने के कारण ₹27 करोड़ का नुकसान हुआ। नई नीति में जिन लोगों को न्युफैक्चरिंग और रिटेल के लिये होलसेल लाइसेंस दिये गये। उन्होंने जमकर फायदा कमाया, उनके मार्जिन को 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी किया गया। लेकिन फायदा केवल एकतरफा ही रहा सरकार को इससे कोई फायदा नहीं मिला।
नीति में क्वालिची चेक के लिये गोदामों में वेयरहाउस में लैब्स बनाने को कहा गया था। लेकिन इनमें से कोई भी लैब नहीं बनी। जिससे सरकार को राजस्व में नुकसान हुआ। स्क्रीनिंग की कमी और अपफ्रंट कॉस्ट को नजरअंदाज करने से भी कई समस्याएं पैदा हुईं।
क्वालिटी चेक के लिए वेयरहाउस में लैब्स बनाने का वादा किया गया था, लेकिन इनमें से कोई भी लैब नहीं बनी, जिससे सरकार को राजस्व में नुकसान हुआ। स्क्रीनिंग की कमी और अपफ्रंट कॉस्ट को नजरअंदाज करने से भी कई समस्याएं पैदा हुईं। शराब जोन को चलाने के लिए ₹100 करोड़ की आवश्यकता थी, लेकिन सरकार ने कोई उचित वित्तीय जांच नहीं की। इसके अलावा, कई बिडर्स की पिछले तीन वर्षों में आय बहुत कम या बिल्कुल शून्य थी, जिससे प्रॉक्सी ऑनरशिप और राजनीतिक पक्षपाती की संभावना बढ़ गई।
इसके अलावा, सरकार ने अपनी एक्सपर्ट कमेटी की सलाह की अनदेखी करते हुए नीति में मनमाने बदलाव किए। पहले एक व्यक्ति को केवल दो शराब की दुकानें रखने की अनुमति थी, लेकिन नई नीति में यह संख्या बढ़ाकर 54 कर दी गई। इससे मोनोपोली का खतरा और बढ़ा, क्योंकि बड़ी संख्या में शराब वेंडर्स ने सरकार की दुकानें लीं और प्राइवेट प्लेयरों को केवल 22 लाइसेंस मिले।
सबसे बड़ी चिंता यह रही कि शराब के 367 रजिस्टर ब्रांड्स में से 25 ब्रांड्स ने 70% बिक्री को कवर किया, और तीन होलसेलर्स (Indospirit, Mahadev Liquors, और Brindco) ने 71% सप्लाई पर कब्जा कर लिया। इससे शराब की कीमतों में मैनिपुलेशन हुआ और उपभोक्ताओं के पास विकल्प कम हो गए। इस नई शराब नीति के कारण न केवल सरकार को वित्तीय नुकसान हुआ, बल्कि बाजार में प्रतिस्पर्धा भी प्रभावित हुई और उपभोक्ताओं के लिए विकल्प सीमित हो गए।
शराब घोटाले का दावा राजनीतिक साजिश
आप नेताओं का हमेशा से कहना है कि दिल्ली में शराब नीति को लेकर घोटालों का दावा किया गया है, वे सिर्फ उन्हें फंसाने के लिए एक राजनीतिक खेल का हिस्सा हैं। पार्टी के नेताओं का कहना है कि विपक्ष और केंद्र सरकार ने जानबूझकर शराब नीति को गलत तरीके से पेश किया और इसे घोटाले के रूप में प्रचारित किया। आप के नेताओं का मानना है कि इस तरह के आरोप सिर्फ उनकी सरकार की छवि को खराब करने और उनकी लोकप्रियता को चोट पहुंचाने के लिए लगाए गए थे।
आप के अनुसार, दिल्ली सरकार की नई शराब नीति ने पारदर्शिता और सरकारी राजस्व में सुधार की दिशा में कई अहम कदम उठाए थे। हालांकि, जब विवाद बढ़ा और विरोध हुआ, तो नीति को वापस ले लिया गया। पार्टी का कहना है कि विपक्षी पार्टियां इस मामले का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए झूठे आरोप लगाये। सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उन्हें जांच के नाम पर कोई ठोस प्रमाण आजतक नहीं मिले।