Abhijit Gangopadhyay: न्यायपालिका से पॉलिटिक्स, लेकिन कई सवाल भी उठ रहे

Abhijit Gangopadhyay: हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद से गंगोपाध्याय के पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने की घोषणा के बाद से यह बहस छिड़ गई है ।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 7 March 2024 9:33 AM GMT
Abhijit Gangopadhyay
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Abhijit Gangopadhyay  (photo: social media )

Abhijit Gangopadhyay: कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय न्यायपालिका छोड़ कर पॉलिटिक्स में आ गए हैं। संभावना है कि उन्हें भाजपा बंगाल की ईस्ट मेदिनीपुर जिले की तमलुक सीट से मैदान में उतरेगी। यह इलाका विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है।

हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद से गंगोपाध्याय के पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने की घोषणा के बाद से यह बहस छिड़ गई है कि क्या ऐसे पद पर रहने वालों के लिए इस्तीफा देने या रिटायर होने के बाद दूसरा कोई काम करने से पहले कोई कूलिंग पीरियड होना चाहिए?

गंगोपाध्याय के आलोचक पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत अरुण जेटली की एक टिप्पणी का जिक्र कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि "रिटायरमेंट से पहले के फैसले रिटायरमेंट के बाद की नौकरियों से प्रभावित होते हैं।"

गंगोपाध्याय तो रिटायर भी नहीं हुए हैं बल्कि नौकरी छोड़ कर सार्वजनिक जीवन में उतरे हैं। उनके गंगोपाध्याय के इस्तीफे की टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं, खासकर तब जब भाजपा प्रत्याशी चयन में व्यस्त है।

वैसे 61 वर्षीय पूर्व न्यायाधीश को इन सब बातों से लगता है कोई खास फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने खुलकर कहा है कि - मैं भाजपा के संपर्क में था और भाजपा मेरे संपर्क में थी।

अपने रिटायरमेंट से पांच महीने पहले न्यायपालिका से नाता तोड़कर, गंगोपाध्याय अब अपने राजनीतिक विरोधियों के हमलों के शिकार हो रहे हैं जो न सिर्फ उनकी आलोचना करेंगे बल्कि उनके फैसलों पर सवाल उठाएंगे। इस घटनाक्रम का न्यायपालिका के कामकाज पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है और यह एक गलत मिसाल कायम करेगा क्योंकि न्यायाधीशों को सार्वजनिक आलोचना से प्रतिरक्षित यानी इम्यून माना गया है। न्यायाधीश सार्वजनिक जीवन से दूर रहते हैं, कोर्ट के बाहर किसी टिप्पणियों से बचते हैं। क्योंकि वे निष्पक्ष माने जाते हैं।

कोई पहला मामला नहीं

जस्टिस गंगोपाध्याय राजनीति में आने वाले पहले जज नहीं हैं, इस लिस्ट में कई बड़े नाम शामिल हैं।

केएस हेगड़े का ही उदाहरण लें। हेगड़े एक सरकारी वकील थे और 1952 में कांग्रेस से राज्य सभा के लिए चुने गए। 1957 में हेगड़े ने राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया जब उन्हें मैसूर उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया। 30 अप्रैल 1973 को हेगड़े ने इस्तीफा दे दिया। 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट पर बेंगलुरु दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से छठी लोकसभा के लिए चुने गए।

बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश थे जिन्होंने रिटायरमेंट से छह सप्ताह पहले इस्तीफा देकर 1983 में राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया और असम के बारपेटा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा।

जस्टिस रंगनाथ मिश्र भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश बने। रिटायरमेंट के बाद, वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष बने। फिर वह 1998 से 2004 के बीच कांग्रेस से राज्यसभा में संसद सदस्य बने।

जस्टिस राजन गोगोई भारत के मुख्य न्यायाधीश थे। रिटायर होने के बाद उन्हें 16 मार्च 2020 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया।

2017 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति अभय थिप्से ने कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की थी। इसी प्रकार बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस विजय बहुगुणा जो बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बने।

क्या कहा गंगोपाध्याय ने

अभिजीत गंगोपाध्याय का कहना है कि एक जस्टिस के तौर पर उनका काम पूरा हो गया है। उनके मुताबिक, भारत और खासकर पश्चिम बंगाल में अब भी अनगिनत ऐसे लोग हैं, जो अदालतों तक नहीं पहुंच पाते। ऐसे में अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हुए अब अपनी नई भूमिका में वह ऐसे लोगों के साथ खड़े होने का प्रयास करेंगे।

टीएमसी पर हमलावर

अभिजीत गंगोपाध्याय ने 5 मार्च को इस्तीफा देने के फौरन बाद अपने आवास पर की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस की औरबंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे, सांसद अभिषेक बनर्जी की जमकर आलोचना की और तृणमूल को एक भ्रष्ट पार्टी बताया।

अभिजीत गंगोपाध्याय का सफर

अभिजीत गंगोपाध्याय ने वेस्ट बंगाल सिविल सर्विस के ए-ग्रेड ऑफिसर के तौर अपना करियर शुरू किया था। उनकी पोस्टिंग नार्थ दिनाजपुर में थी, कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर सरकारी वकील के तौर पर कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। वे मई 2018 में कलकत्ता हाई कोर्ट में एडिशनल जज बने और जुलाई 2020 में वह स्थायी जज बन गए।

बड़े फैसले

अभिजीत गंगोपाध्याय ने जस्टिस रहते हुए कई अहम फैसले सुनाए हैं। सितंबर 2023 में छपी कलकत्ता हाईकोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट में उनके एक फैसले को सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया था। यह निर्णय था, स्कूल में भर्ती घोटाले की केंद्रीय एजेंसी से जांच का निर्देश। इस घोटाले से संबंधित एक दर्जन से ज्यादा मामलों में जस्टिस गंगोपाध्याय के फैसलों के कारण ममता बनर्जी सरकार में नंबर दो माने जाने वाले तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के अलावा पार्टी के तीन विधायकों और एक दर्जन से ज्यादा नेताओं को जेल जाना पड़ा था।

विवादित इंटरव्यू

जज रहते हुए जब अभिजीत गंगोपाध्याय शिक्षक भर्ती घोटाले से संबंधित एक अहम मामले की सुनवाई कर रहे थे उसी दौरान सितंबर 2022 में एक लोकल टीवी चैनल पर इंटरव्यू देकर उन्होंने एक बड़ा विवाद पैदा कर दिया था। अपने इंटरव्यू के दौरान उन्होंने भर्ती घोटाले में सांसद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की कथित भूमिका पर भी सवाल उठाया था। इसके बाद एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान भी उन्होंने मौखिक रूप से अभिषेक बनर्जी की संपत्ति के स्रोत पर सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस इंटरव्यू का संज्ञान लेते हुए उनकी आलोचना की थी। उच्चतम न्यायालय ने उनके इंटरव्यू की समीक्षा के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट को शिक्षक भर्ती घोटाले के तमाम मामले दूसरे जज की पीठ को भेजने का निर्देश दिया था।

बहरहाल, अब देखना रोचक होगा कि इस प्रकरण में आगे क्या होता है।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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