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340 साल पहले की सोच, लागत 13 करोड़ से 828.80 करोड़
शिशिर कुमार सिन्हा की रिपोर्ट
पटना: 40 साल पहले महज 13 करोड़ की एक योजना बनी थी। लक्ष्य था कहलगांव के आसपास के इलाकों में नहर से पानी उपलब्ध कराते हुए किसानों को सिंचाई की समस्या का समाधान देना। तत्कालीन कांग्रेसी सरकार में जल संसाधन मंत्री सदानंद सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र कहलगांव के लिए यह योजना बनायी थी, लेकिन आज 40 साल बीतने पर भी वह इसे अपने क्षेत्र को सौंप नहीं सके हैं।
जब योजना शुरू हुई थी तो कांग्रेस की सत्ता थी। बाद में कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल के कर्ताधर्ता लालू प्रसाद यादव के साथ भी आई और पहले उन्हें और फिर राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया। 40 साल में बटेश्वरस्थान गंगा पंप नहर परियोजना ने कांग्रेस, कांग्रेस-राजद, जदयू-भाजपा, जदयू-राजद को देखा और अब एक बार फिर जदयू-भाजपा सरकार को देख रही है।
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महज 13 करोड़ से शुरू हुई परियोजना की लागत आज की तारीख में 828.80 करोड़ पहुंच चुकी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या 40 साल में सिंचाई की परिस्थितियां नहीं बदलीं और बदलीं तो परियोजना का सिर्फ आकार बढ़ाने की जगह उसे नया रूप क्यों नहीं दिया गया। अगर परियोजना इतनी अहम थी तो 40 साल तक राजनीतिक दलों ने पूरी इच्छाशक्ति के साथ इसपर ध्यान क्यों नही दिया। और, अगर यह जरूरी नहीं लगा तो लागत 63 गुणा बढऩे के बावजूद इसे दोबारा गति देने से पहले समीक्षा क्यों नहीं की गई।
गलती-दर-गलती, अब खुल रही पोल
बाढ़ और वर्षा की स्थितियों के कारण अगले दो-तीन महीने तक बटेश्वरस्थान गंगा पंप नहर से नियंत्रित पानी छोडऩे की जरूरत नहीं थी, लेकिन 20 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों इसका फीता कटवाने की तैयारी शुरू हो गई। इस परियोजना की लागत राशि 828.80 में से 389 करोड़ ही स्वीकृत थी। इसका मतलब साफ है कि यह निर्माणाधीन योजना थी।
ऐसे में मुख्यमंत्री के हाथों उद्घाटन की जल्दबाजी के साथ ही यह भी बड़ा सवाल है कि आखिर जब पंप से अगले दो-तीन महीने तक पानी की जरूरत नहीं थी तो 630 एचपी के दो और 450 एचपी के तीन मोटर पंप को एक साथ स्टार्ट कर ट्रायल ही क्यों किया गया। अब जल संसाधन विभाग के एक अधिकारी सामने आकर यह बता नहीं कर रहे हैं कि परियोजना को ट्रायल के लिए अनुमति किसने और किसे दी।
मुख्यमंत्री के हाथों उद्घाटन से एक दिन पहले शाम में चार बजे पांच मोटर पंप एक साथ चलाकर ट्रायल किए जाने पर नहर का एक हिस्सा जिस तरह ढहा और पानी से एनटीपीसी की अस्थायी आवासीय कॉलोनी समेत ओगरी और श्यामपुर पंचायत के कुछ हिस्सों को डुबोया, वह इसलिए भी बड़ा सवाल खड़े करता है क्योंकि नहर की दीवार में कई दिनों से रिसाव की जानकारी सामने आ रही है।
महज एक घंटे के ट्रायल में नहर के एक हिस्से के इस तरह तहसनहस होने के बाद जब जल संसाधन विभाग के उच्चाधिकारियों ने जिलाधिकारी के साथ स्थल निरीक्षण किया तो निर्माण की क्वालिटी पर सबसे ज्यादा सवाल उठे। बड़ा सवाल यह था कि पांच मोटर चलाने पर तो यह हालत हुई, सभी 12 मोटर एक साथ चलाए जाने पर क्या होता।
अभियंताओं के मुताबिक अगर परियोजना के सभी 12 मोटर पंप एक साथ चालू हो जाएं तो प्रति सेकंड 1260 क्यूसेक पानी निकलेगा। इसके साथ ही, नहर पर बनाए अंडरपास को लेकर भी सवाल उठे। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं मिला कि नहर से लगाकर यह अंडरपास किसकी अनुमति या किसके आदेश से बनाया गया।
अंतिम स्थिति यह रही कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थगन के बाद आए जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव ने बटेश्वर स्थान पंप नहर परियोजना में बीच में वॢटकल गार्डवाल के बिना अंडरपास को सीधे तौर पर गलत बताया। इसी अंडरपास के पास पहले रिसाव की सूचना थी और बाद में कई मीटर लंबाई का हिस्सा के तेज धार में गायब हो गया। यह धार इतनी तेज थी कि रानीपुर लधरिया के पास सडक़ कट गई और कहलगांव क्षेत्र के बड़े हिस्से में लगी धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई।
कब मिलेगा फायदा, अब भी पता नहीं
भले ही 20 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसका उद्घाटन करने वाले थे, लेकिन बटेश्वर नहर गंगा परियोजना का पूरा फायदा आम किसानों को मिलने की तारीख तय नहीं है। परियोजना के मुख्य कैनाल से सहायक कैनाल बनाने के लिए अभी अंतीचक, वंशीपुर और नारायणपुर में भू-अधिग्रहण बाकी है।
सहायक पैनाल बनने से कहलगांव के किसानों को लाभ मिलना है। 19 सितंबर को बहे नहर की दीवार की मरम्मत करा दी गई है और अब जल संसाधन विभाग के तमाम आला अधिकारी पुरानी फाइलों को भी खंगालने में जुटे हैं। इन स्थितियों में अधिग्रहण का मामला भी एक बार खुलने की उम्मीद है।
15 साल तक लालू प्रसाद यादव की सरकार रही, लेकिन परियोजना को एक पैसा नहीं दिया। मैं खुद भी सत्ता में रहा, लेकिन राशि नहीं ला सका। पिछले सवा साल में तेजी से काम हुआ, इसके लिए नीतीश कुमार बधाई के पात्र हैं। अब इसपर राजनीति नहीं होनी चाहिए। विभाग के अभियंताओं को पहले ही पानी छोडक़र जांचना चाहिए था।
सदानंद सिंह, कांग्रेस विधायक, कहलगांव
बटेश्वर स्थान पंप नहर परियोजना में बीच में वॢटकल गार्ड वाल के बिना अंडरपास बनाना गलत निर्णय था। गार्ड वाल होता तो शायद नहर की दीवार नहीं टूटती। इसके लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जाएगी।
अरुण कुमार सिंह, प्रधान सचिव, जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार