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SC का फैसला, आलोक वर्मा CBI प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे, जानिए पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई मामले में केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सीवीसी के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमिटी से सहमति लेनी चाहिए थी। जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है।
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई मामले में केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के सीवीसी के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमिटी से सहमति लेनी चाहिए थी। जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है। वर्मा अब सीबीआई प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे। लेकिन उन्हें बड़े पॉलिसी वाले फैसले लेने का अधिकार नहीं होगा। चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के चलते फैसले को जस्टिस केएन जोसेफ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने पढ़ा है।
आपको बता दें, ऐसा नहीं है कि कोर्ट के फैसले के बाद वर्मा चुप बैठने वाले हैं। दो महीने की छुट्टी पर भेजे गए वर्मा एक बार फिर कोर्ट का रुख करेंगे। इसबार उनकी मांग होगी कि उनकी जबरन छुट्टी के एवज में उनका कार्यकाल बढाया जाए।
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ऐसे हुई शुरुआत
अप्रैल 2016: गुजरात कैडर के आई पी एस अधिकारी राकेश अस्थाना को सीबीआई का अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया गया।
3 दिसंबर: एजेंसी के तत्कालीन प्रमुख अनिल सिन्हा की सेवानिवृत्ति के बाद अस्थाना को अंतरिम निदेशक बनाया गया।
19 जनवरी 2017: आलोक कुमार वर्मा को दो साल के कार्यकाल के लिए सीबीआई प्रमुख बनाया गया।
22 अक्टूबर 2017: सीबीआई ने अस्थाना को विशेष निदेशक नियुक्त किया।
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2 नवंबर: अधिवक्ता प्रशांत भूषण एनजीओ कॉन कॉज की ओर से उच्चतम न्यायालय पहुंचे और अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती दी।
28 नवंबर: उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज की।
12 जुलाई 2018: वर्मा जब विदेश में थे तो सीवीसी ने पदोन्नति पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई, जानना चाहा कि इसमें कौन शामिल होगा। सीबीआई ने जवाब दिया कि वर्मा का प्रतिनिधित्व करने का अस्थाना के पास कोई अधिकार नहीं है।
24 अगस्त: अस्थाना ने कैबिनेट सचिव से शिकायत कर वर्मा पर कदाचार का आरोप लगाया. मामला सी वी सी को भेजा गया।
21 सितंबर: सीबीआई ने सीवीसी को बताया कि अस्थाना भ्रष्टाचार के छह मामलों में जांच का सामना कर रहे हैं।
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15 अक्टूबर: सीबीआई ने अस्थाना, पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र कुमार, दुबई आधारित निवेश बैंकर मनोज प्रसाद और उसके भाई सोमेश प्रसाद के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई।
20 अक्टूबर: सीबीआई ने कुमार के आवास और अपने मुख्यालय में उनके कार्यालय पर छापा मारा, उनके मोबाइल फोन और आईपैड जब्त करने का दावा किया।
22 अक्टूबर: सीबीआई ने कुमार को मांस निर्यातक मोइन कुरैशी से जुड़े मामले में कारोबारी सतीश सना का ‘मनगढ़ंत बयान’ तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया।
23 अक्टूबर: कुमार अपने खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने का आग्रह लेकर उच्च न्यायालय पहुंचे। कुछ घंटे बाद अस्थाना भी उच्च न्यायालय पहुंचे और अपने खिलाफ प्राथमिकी रद्द किए जाने तथा सीबीआई को कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अस्थाना के मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, सीबीआई और वर्मा से दोनों याचिकाओं पर जवाब मांगा।
दिल्ली की निचली अदालत ने कुमार को सात दिन की सीबीआई हिरासत में भेज दिया—देर रात कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने वर्मा से सभी शक्तियां छीनीं, एम नागेश्वर राव को सी बी आई का अंतरिम प्रमुख नियुक्त किया।
24 अक्टूबर: वर्मा सरकार के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे। न्यायालय ने सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर की तारीख निर्धारित की।
25 अक्टूबर: एनजीओ कॉमन कॉज ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर अस्थाना सहित सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच एसआईटी से कराने की मांग की। न्यायालय ने कहा कि वह तदनुसार तत्काल सुनवाई पर विचार करेगा-दिल्ली की अदालत ने मनोज प्रसाद की सीबीआई हिरासत पांच दिन बढ़ाई। यहां वर्मा के आधिकारिक आवास के बाहर गुप्तचर ब्यूरो के चार लोग पकड़े गए. गृह मंत्रालय ने कहा कि वे नियमित ड्यूटी पर थे, न कि जासूसी कर रहे थे।
26 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने सीवीसी को निर्देश दिया कि वह वर्मा के खिलाफ शिकायत पर दो सप्ताह में जांच पूरी करे, सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली वर्मा की याचिका पर सीवीसी और केंद्र से जवाब मांगा। राव को बड़े और नीतिगत फैसले न लेने, अब तक किए गए अपने फैसले सीलबंद लिफाफे में दायर करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने एन जी ओ की याचिका पर केंद्र, सीबीआई, सीवीसी, अस्थाना, वर्मा और राव को नोटिस जारी किया। मामला 12 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया-मनोज प्रसाद ने प्राथमिकी रद्द किए जाने का आग्रह लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय से संपर्क किया