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कीटनाशकों के नियंत्रित उपयोग में मददगार हो सकते हैं सेल्यूलोज नैनो फाइबर

Anoop Ojha
Published on: 1 Dec 2018 12:59 PM GMT
कीटनाशकों के नियंत्रित उपयोग में मददगार हो सकते हैं सेल्यूलोज नैनो फाइबर
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डॉ वैशाली लावेकर

पुणे: फसलों में रसायनों के सही मात्रा में उपयोग और उनकी बर्बादी को रोकने के लिए छिड़काव की नियंत्रित विधियों की जरूरत होती है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसा ईको-फ्रेंडली फॉर्मूला तैयार किया है, जिसकी मदद से खेतों में रसायनों का छिड़काव नियंत्रित

तरीके से किया जा सकता है।

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वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की पुणे स्थित नेशनल केमिकल लैबोरेटरी (एनसीएल) के शोधकर्ताओं ने गन्ने की पेराई के बाद बचे अपशिष्ट, मक्का स्टार्च और यूरिया फॉर्मेल्डहाइड को मिलाकर खास नैनो-कम्पोजिट दाने (ग्रैन्यूल्स) बनाए हैं। ग्रेन्यूल्स के भीतर एक कीट प्रतिरोधी रसायन डिमेथिल फाथेलेट (डीएमपी) और परजीवी रोधी दवा एक्टो-पैरासिटाइडिस को

समाहित किया गया है। इस नये नियंत्रित रिलीज फॉर्मूलेशन सिस्टम की मदद से वांछित समय में कीटनाशकों को रिलीज किया

जा सकता है और उन्हें जरूरत के अनुसार सही जगह तक पहुंचाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फसल पैदावार बढ़ाने और पर्यावरण प्रदूषण कम करने में भी इससे मदद मिल सकती है। स्टार्च, जिलेटिन, प्राकृतिक रबड़ और पॉलियूरिया, पॉलीयूरेथेन, पॉली विनाइल अल्कोहल एवं इपोक्सी रेजिन जैसे सिंथेटिक पॉलिमर आदि इन प्रणालियों को तैयार करने के लिए उपयोग किए जाते

हैं।

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शोधकर्ताओं के अनुसार, सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की बढ़ती समस्या की वजह से रसायनों के छिड़काव के लिए जैविक रूप से अपघटित होने लायक माइक्रो-कैप्सूल आधारित नियंत्रित रिलीज प्रणालियों का निर्माण जरूरी है। एनसीएल के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह प्रणाली इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। प्रमुख शोधकर्ता डॉ काधिरवन शन्मुग्नाथन ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “जब इन गेन्यूल्स का उपयोग खेतों में किया जाता है तो इसमें मौजूद स्टार्च पानी को सोखकर फूल जाता है और इस तरह रसायनों का रिसाव नियंत्रित ढंग से होता है। इस प्रणाली में उपयोग किए गए गन्ने के अपशिष्टों के सूक्ष्म रेशों (सेल्युलोज नैनो-फाइबर्स) की वजह से इसकी क्षमता काफी बढ़ जाती है।”

सिर्फ स्टार्च का उपयोग करने पर डीएमपी के रिलीज होने की शुरुआती दर अधिक होती है और करीब आधी डीएमपी रिलीज हो जाने के बाद यह दर धीरे-धीरे कम होने लगती है। शन्मुग्नाथन ने बताया कि “सेल्यूलोज नैनो-फाइबर युक्त इस नयी प्रणाली में डीएमपी के रिलीज होने की दर शुरू में कम होती है और 90 प्रतिशत तक डीएमपी रिलीज हो जाती है। सेलुलोज फाइबर्स के जल को सोखने की प्रकृति के

कारण ऐसा होता है। नैनो फाइबर स्टार्च ग्रेनेयूल्स के छिद्रों के आकार और डीएमपी रिलीज को नियंत्रित करते हैं।”

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इस प्रणाली में सक्रिय एजेंट के रिलीज होने की दर जल अवशोषण के स्तर पर निर्भर करती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्टी के प्रकार, सिंचाई पैटर्न और मिट्टी में मौजूद नमी के आधार पर विभिन्न प्रकार के रिलीज फॉर्मूलेशन सिस्टम विकसित किए जा सकते हैं। शोधकर्ताओं में डॉ शन्मुग्नाथन के अलावा मयूर पाटिल, विशाल पाटिल, आदित्य सापरे, तुषार एस. अम्बोने, अरुण टॉरिस ए.टी. और डॉ परशुराम शुक्ला शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री ऐंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया है।

परशुराम शुक्ला ने बताया कि “एनसीएल ने पिछले करीब तीन दशक में कई तरह के नियंत्रित रिलीज फार्मूलेशन विकसित किए हैं। इनका मूल्यांकन तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयम्बटूर, निम्बकर एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीयूट, फालटन, एग्रीकल्चरल राइस स्टेशन, कर्जत और एग्रीकल्चरलरिसर्च स्टेशन, जयपुर में किया गया है।” शोधकर्ताओं का कहना है कि वे गन्ने में खरपतवार के नियंत्रण के लिए नियंत्रित रिलीज फार्मूलेशन विकसित करने के लिए अनुसंधान को आगे बढ़ाना चाहते हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने इससे संबंधित प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।

(इंडिया साइंस वायर)

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Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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