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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- 'अधिकारियों पर बेवजह न चले अवमानना का मुकदमा, वेशभूषा पर बेवजह टिप्पणी...'
Centre proposes SOP In SC: केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि सरकारी अधिकारियों पर बेवजह अवमानना का मुकदमा नहीं चलना चाहिए। केंद्र ने कोर्ट से टिप्पणियों और अनुपालन संबंधी भी कई सुझाव दिए।
Centre proposes SOP In SC: देश की अदालतों में सरकारी अधिकारियों को तलब किए जाने या उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही (Contempt Proceedings) शुरू करने को लेकर केंद्र सरकार ने शीर्ष न्यायालय से एक मानक प्रक्रिया तैयार करने की गुजारिश की है। केंद्र ने अपनी तरफ से एक 'स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर' यानी SOP भी सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया है।
बता देंम ये Standard Operating Procedure (एसओपी) केंद्र और राज्य सरकारों से जुड़े मामलों के लिए है। केंद्र सरकार ने सुझाव दिया है कि बेहद जरूरी होने पर ही अदालत को किसी अधिकारी को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने को कहना चाहिए। इस दौरान उसकी वेशभूषा पर बेवजह टिप्पणी आदि नहीं करनी चाहिए। दरअसल, कई मामलों में सुनवाई के दौरान इस तरह टिप्पणी कोर्ट की तरफ से हुई है।
अवमानना केस पर केंद्र ने ये कहा
केंद्र सरकार ये भी चाहती है कि किसी अधिकारी के खिलाफ अवमानना का केस उन्हीं आदेशों का पालन न करने पर होना चाहिए, जिनका पालन कर पाना उसके लिए संभव था। अवमानना का मुकदमा (Contempt Case) उस जज को नहीं सुनना चाहिए, जिसके आदेश का पालन न होने की वजह से यह कार्यवाही शुरू हुई है।
मानक संचालन प्रक्रिया का प्रस्ताव
केंद्र सरकार की तरफ से अवमानना सहित अन्य अदालती कार्यवाही (Court Proceedings) में अधिकारियों की उपस्थिति के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया का प्रस्ताव दिया है। जिसके तहत कहा गया है कि अदालतों को केवल 'असाधारण परिस्थितियों' में ही सरकारी अधिकारियों को अग्रिम सूचना के साथ बुलाना चाहिए।
आखिर क्यों पड़ी आवश्यकता?
दरअसल, कुछ महीने पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक आदेश का पालन न करने के लिए यूपी के दो सीनियर आईएएस ऑफिसर्स को हिरासत में भेज दिया था। उच्च न्यायालय ने रिटायर्ड जजों के सेवानिवृत्ति लाभ से जुड़े आदेश का पालन न होने की वजह से ये सख्त आदेश दिया था। जिसके बाद यह जरूरत महसूस की गई थी कि, इस तरह के मामलों के लिए कोई मानक प्रक्रिया होनी चाहिए।
सरकारी अधिकारी की पोशाक पर न हो टिप्पणी
कई बार यह देखने को मिला है कि अदालत में पेश होने वाले अधिकारियों की वेशभूषा पर भी जज टिप्पणी करते हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि, 'अधिकारी वकील नहीं होते हैं, जिनके अदालत में पेश होने का 'ड्रेस कोड' (Dress Code) तय है। अगर, सरकारी ऑफिसर अपने पद के अनुरूप गरिमापूर्ण पोशाक में कोर्ट आया है, तो उसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए।'
केंद्र की तरफ से ये भी सुझाव दिए गए
केंद्र ने सुझाव ने ये भी सुझाव दिया है कि, जो विषय कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction of the Executive) में आते हैं, उस पर यदि अदालत आदेश देता है तो किसी अधिकारी पर अवमानना की कार्यवाही नहीं होनी चाहिए। केंद्र के अनुसार, इस तरह के आदेश के पालन में अधिकारी समर्थ नहीं होता। अवमानना की कार्यवाही का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए नहीं होना चाहिए कि उसके जरिए किसी विशेष आदेश का पालन सुनिश्चित किया जा सके। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ये भी कहा है कि अवमानना के मामलों में दंड देने वाले आदेश के अमल पर तब तक रोक लगनी चाहिए, जब तक ऊपरी अदालत अपील नहीं सुन लेती है।
नीतिगत विषयों पर मिले उचित समय
अदालत में पेश SOP में केंद्र सरकार ने आगे सुझाव दिया है कि 'नीतिगत विषयों (Policy Issues) पर यदि कोर्ट कोई आदेश देता है, तो उसके पालन के लिए सरकार को उचित समय दिया जाना चाहिए। सरकार ने ये भी कहा है कि, इस तरह के आदेश पर अमल की प्रक्रिया काफी लंबी होती है। इस वजह से इसे कई स्तरों से गुजरना होता है। इसलिए, सरकार की तरफ से समय मांगते हुए किए गए अनुरोध पर विचार होना चाहिए।'
कमिटी की जरूरत तभी बनाएं, नाम तय सरकार करेगी
इस मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) में केंद्र की ओर से इस बात का भी जिक्र है कि अगर अदालत किसी मामले पर कमिटी का गठन करना चाहता है, तो उसे सिर्फ यह कहना चाहिए कि कमिटी कितने सदस्यों की होगी। कमिटी के अध्यक्ष तथा सदस्यों की योग्यता क्या होगी? अदालत को अपनी तरफ से सदस्यों के नाम तय नहीं करने चाहिए। नाम तय करने की जिम्मेदारी सरकार को दिया जाए।
CJI 21 अगस्त को करेंगे सुनवाई
आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने इस मामले पर 21 अगस्त को सुनवाई की बात कही है। उन्होंने ये भी कहा है कि मामला पूरे देश से जुड़ा है। इसलिए सभी हाई कोर्ट से भी सुझाव लिए जाएंगे।