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सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी की फीस एक होनी चाहिए?

aman
By aman
Published on: 5 Feb 2018 11:56 AM IST
सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी की फीस एक होनी चाहिए?
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सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी की फीस एक होनी चाहिए?

संजीव स्नेही/जितेंद्र गुप्ता

नई दिल्ली: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की हाल में जारी चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन (ऑपरेशन) के जरिए होने वालों बच्चों का प्रतिशत 17.2 दर्शाया गया, जबकि तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में यह आंकड़ा 8.5 प्रतिशत था। करीब एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में हुई दोगुना वृद्धि चौंका देने वाली है। इसके पीछे का कारण सिजेरियन में आने वाला मोटा खर्च है, जिसे बताकर निजी अस्पताल मरीजों से लंबी चौड़ी रकम वसूलते हैं।

बेंगलुरु में निजी अस्पतालों द्वारा नॉर्मल डिलीवरी के लिए 8,000 रुपए से लेकर 50,000 रुपए तक लिए जाते हैं, वहीं सिजेरियन के लिए यह राशि 45,000 से लेकर 1.56 लाख रुपए तक मरीजों से वसूली जाती है।

मरीजों से वसूली जाती है मोटी रकम

दिल्ली में नॉर्मल डिलीवरी के लिए जहां 15,000 रुपए से लेकर 48,000 तक लिए जाते हैं। वहीं, सिजेरियन डिलीवरी के लिए 50,000 रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक लिए जाते हैं। इसके अलावा मुंबई में नार्मल डिलीवरी के लिए 8,000 से लेकर 45,000 रुपए तक मरीज अदा करते हैं, जबकि सिजेरियन डिलीवरी के लिए 1.60 लाख रुपए तक वसूले जाते हैं।

ज्यादा मुनाफा का खेल

नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी के बिलों में भारी अंतर के कारण पिछले एक दशक में सिजेरियन में दोगुनी वृद्धि दर्शाती है कि प्रत्येक राज्य में अब पहले की तुलना में सिजेरियन को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है।

सुवर्णा घोष ने शुरू किया अभियान

एक साल पहले मुंबई में सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर एक शुल्क लगाने के लिए अभियान शुरू करने वाली सुवर्णा घोष ने अपने इस अभियान को देशभर में फैलाने का फैसला किया। सुवर्णा ने अभियान के तहत एक पीटीशन दायर की, जिसमें अस्पतालों से पूछा गया कि उनके यहां कितने सिजेरियन कराए गए। उनकी इस पीटीशन पर उन्हें अब तक 1.5 लाख लोगों का समर्थन मिल चुका है।

सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर हो एक शुल्क

सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर एक शुल्क लगाने के कदम को क्या अस्पताल स्वीकार करेंगे? इस सवाल पर सुवर्णा ने कहा, 'जी बिल्कुल, मुझे लगता है कि निजी अस्पताल इस कदम पर जरूर सहमत होंगे और वह स्वीकार भी कर रहे हैं, क्योंकि कुछ अस्पताल हैं जो अपने यहां सही तरीके से काम कर रहे हैं तो वह अपना काम आगे बढ़ाने के लिए अगर यह घोषित करते हैं, तो इसमें सबका फायदा है।' उन्होंने कहा, 'इससे उन्हें ही ज्यादा फायदा है, क्योंकि वह दिखा सकते हैं कि उनके यहां पूर्ण पारदर्शिता अपनाई जाती है। मेरा मानना है कि वह जरूर मानेंगे, क्योंकि इसमें न मानने वाली कोई बात ही नहीं है और मुझे नहीं लगता है हर कोई आदमी मेडिकल पेशे में पैसों के लिए काम कर रहा है, कुछ लोग ऐसे भी है जो अच्छा काम करना चाहते हैं।'

'वैल्यू फॉर मनी मार्केट' के तौर से उभरना होगा

निजी अस्पतालों में अनाप-शनाप बिल बनाने का मुद्दा उठाने वाले मोटिवेशनल स्पीकर और बिजनेस गुरु डॉ. विवेक बिंद्रा ने कहा, 'भारत घनी आबादी वाला मूल्य संवेदनशील बाजार है। इसलिए सस्ती स्वास्थ्य सेवा हमारे देश में एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है। स्वास्थ्य संस्थानों को अपनी नीति में बदलाव लाने की जरूरत है। उन्हें 'वैल्यू फॉर मनी मार्केट' के तौर से उभरना होगा। उन्होंने कहा, 'इसलिए सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर एक ही शुल्क लेना एक क्रांतिकारी विचार है।'

एक शुल्क लगाने का कदम सही नहीं

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष व प्रख्यात डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कहा, 'देश में सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर एक शुल्क लगाने का कदम सही नहीं है। हर डॉक्टर को अपने हिसाब से रेट रखने का अधिकार है। इसमें कोई दखलअंदाजी नहीं कर सकता। और जहां तक बात दोनों प्रसव के बिलों में अंतर की तो चिकित्सकों को बच्चों को भी बचाना होता है और देखना होता है कि सामान्य और सिजेरियन में कितनी जटिलताएं हैं।' उन्होंने कहा, 'सिजेरियन में जहां कुछ घंटों बाद माताओं को घर ले जानी की इजाजत होती है। वहीं सामान्य प्रसव में मां को करीब दो दिनों तक अस्पताल में रखना होता है। सामान्य प्रसव में स्थिति के अनुसार बच्चे को जोखिम होता है, जबकि सिजेरियन में बच्चे को कोई जोखिम नहीं होता।'

सुवर्णा के अभियान को IMA का समर्थन नहीं

सुवर्णा के अभियान को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के समर्थन के सवाल पर अग्रवाल ने कहा, कि 'संस्था ऐसे किसी भी अभियान को समर्थन नहीं देती और संस्था का सिजेरियन और सामान्य प्रसव पर समान शुल्क लगाने के मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।'

संसद में उठ चुका है ये मुद्दा

देशभर में बढ़ रहे सिजेरियन के मामलों से चिंतित होकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने भी राज्यसभा में मामला उठाया था। इस बाबत स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी किया था। रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में सिजेरियन के जरिए 40.1 फीसदी, लक्षद्वीप में 37.1, केरल 35.8, तमिलनाडु 34.1, पुदुच्चेरी 33.6, जम्मू एवं कश्मीर 33.1 और गोवा में 31.4 फीसदी बच्चे ऑपरेशन के जरिए पैदा हुए हैं। वहीं दिल्ली में सिजेरियन के जरिए पैदा होने वाले बच्चों का प्रतिशत 23.7 है।

आईएएनएस

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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