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Supreme Court: जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को दी गई चुनौती, जिससे राहुल की छिनी संसद सदस्यता
Supreme Court: आपको बता दें कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 में व्यवस्था की गई है कि यदि किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को किसी मामले में दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा सजा पूरी होने तक वह 6 साल तक चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकेगा।
Supreme Court: जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8(3) को लेकर इन दिनों देश में बवाल मचा हुआ है। ये वही धारा है जिसने देश के दर्जनों माननीयों की सदस्यता को न केवल छिना है बल्कि उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस कानून के सबसे ताजा शिकार कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी हुए हैं। अब इस कानून के संवैधानिकता को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया कि जनप्रतिनिधि को सजा का ऐलान होते ही उनका सदन के लिए अयोग्य हो जाना असंवैधानिक है।
मुरलीधरन की ओर से ये दायर याचिका
सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि अयोग्यता के लिए विचार करते समय आरोपी के नेचर, भूमिका और मामले की गंभीरता जैसे कारकों की जांच होनी चाहिए। पीआईएल में कहा गया है कि धारा 8(3) का इस्तेमाल झूठे राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। इसलिए यह धारा राजनीतिक हित के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधि के लोकतांत्रिक ढ़ांचे पर सीधे प्रहार कर रही है। याचिका में कहा गया कि इससे देश की चुनावी व्यवस्था में अशांति पैदा हो सकती है।
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8
आपको बता दें कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 में व्यवस्था की गई है कि यदि किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को किसी मामले में दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी। इसके अलावा सजा पूरी होने तक वह 6 साल तक चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकेगा। इस कानून की जद में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, दिवगंत तमिलनाडु सीएम जयललिता और आजम खान समेत दर्जनों विधायक अब तक आ चुके हैं।
राहुल ने इस प्रावधान का किया था समर्थन
सूरत कोर्ट द्वारा मानहानि के केस में दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भी सदस्यता चली गई है। दिलचस्प बात ये है कि साल 2013 में कांग्रेस की अगुवाई वाली तत्कालीन यूपीए सरकार इस प्रावधान को खत्म करने के लिए अध्यादेश लाकर निरस्त करना चाहती थी। राहुल गांधी के तीखे विरोध के बाद सरकार को इससे पीछे हटना पड़ा था और चारा घोटाले में दोषी करार दिए गए पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव इसका पहला शिकार हुए थे।