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Chandra Shekhar Azad Jayanti 2024: पं.चंद्रशेखर आजाद /जन्मदिवस पर विशेष

Chandra Shekhar Azad Jayanti: क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था।चंद्रशेखर आजाद का वास्तविक नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था।

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Published on: 24 July 2024 6:28 PM IST (Updated on: 24 July 2024 11:12 PM IST)
Chandra Shekhar Azad Jayanti 2024:
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Chandra Shekhar Azad Jayanti 2024:

Chandra Shekhar Azad Jayanti 2024: काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में शामिल निर्भय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। चंद्रशेखर आजाद का वास्तविक नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था। चंद्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भावरा गांव में व्यतीत हुआ। भील बालकों के साथ रहते-रहते चंद्रशेखर आजाद ने बचपन में ही धनुष बाण चलाना सीख लिया था। चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी देवी उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं, इसीलिए उन्हें संस्कृत सीखने लिए काशी विद्यापीठ, बनारस भेजा गया। दिसंबर 1921 में जब गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरूआत की गई उस समय मात्र चौदह वर्ष की उम्र में चंद्रशेखर आजाद ने इस आंदोलन में भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया। जब चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ गया था। चंद्रशेखर को पंद्रह दिनों के कड़े कारावास की सजा प्रदान की गई।

क्रांतिकारी जीवन 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया। इस घटना ने चंद्रशेखर आजाद को बहुत आहत किया। उन्होंने ठान लिया कि किसी भी तरह देश को स्वतंत्रता दिलवानी ही ह। एक युवा क्रांतिकारी प्रनवेश चैटर्जी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन जैसे क्रांतिकारी दल के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाय।आजाद इस दल और बिस्मिल के समान स्वतंत्रता और बिना किसी भेद-भाव के सभी को अधिकार जैसे विचारों से बहुत प्रभावित हुए। चंद्रशेखर आजाद के समर्पण और निष्ठा की पहचान करने के बाद बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद को अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना दिया। अंग्रेजी सरकार के धन की चोरी और डकैती जैसे कार्यों को अंजाम दे कर चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ संस्था के लिए धन एकत्र करते थे। लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर सॉण्डर्स की हत्या भी की थी। आजाद का यह मानना था कि संघर्ष की राह में हिंसा होना कोई बड़ी बात नहीं है. इसके विपरीत हिंसा बेहद जरूरी है। जलियांवाला बाग जैसे अमानवीय घटनाक्रम जिसमें हजारों निहत्थे और बेगुनाहों पर गोलियां बरसाई गईं, ने चंद्रशेखर आजाद को बहुत आहत किया जिसके बाद उन्होंने हिंसा को ही अपना मार्ग बना लिया।

झांसी में क्रांतिकारी गतिविधियों का चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।

चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने 1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। 1925 में काकोरी कांड हुआ, जिसके आरोप में अशफाक उल्ला खां, बिस्मिल समेत अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई। उसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया.भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के बाद चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए थे। इसके बाद भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को डराने और भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया.चंद्रशेखर आजाद का निधन 1931 में फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा

चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इंकार कर दिया. गुस्से में वहां से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव, राजगुरु के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए. वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय में बात ही कर रहे थे कि पुलिस ने उन्हे घेर लिया। लेकिन उन्होंने बिना सोचे अपने जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर द। दोनों ओर से गोलीबारी हुई। लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा। चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली।पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के पास जाने तक की हिम्मत नहीं हुई। उनके शरीर पर गोली चला और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि हुई। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जिस पार्क में उनका निधन हुआ था उसका नाम परिवर्तित कर चंद्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे उसका धिमारपुरा नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया।

जगत नरायण दुबे ( लेखक )



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Shalini Rai

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