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Chandrashekhar: देश के पहले नेता जो सीधे बने प्रधानमंत्री,कांग्रेस के विरोध में सत्ता में आई पार्टी और उसी की मदद से बने PM
Chandrashekhar: बलिया के इब्राहिम पट्टी में 17 अप्रैल, 1927 को पैदा होने वाले चंद्रशेखर देश के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
Chandrashekhar: उत्तर प्रदेश के जिन नेताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरीं,उनमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। बलिया लोकसभा सीट से कई बार चुनाव जीतने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की आज पुण्यतिथि है। बलिया के इब्राहिम पट्टी में 17 अप्रैल, 1927 को पैदा होने वाले चंद्रशेखर देश के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
1977 में जनता पार्टी के चुनाव जीतने के समय वे पार्टी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे और मंत्री नहीं बने थे। बाद में वे कांग्रेस के समर्थन से सीधे देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा
पढ़ाई के दौरान ही राजनीति की शुरुआत
चंद्रशेखर के बचपन के दिन काफी मुश्किलों वाले रहे। मुफलिसी के बावजूद वे अपने विचारों से प्रखर तो थे ही, स्वभाव से भी क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरूआत पढ़ाई के दौरान ही कर दी थी। साल 1950 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए किया और फिर समाजवादी आंदोलन में कूद पड़े। 1977 से 1988 तक उन्होंने जनता पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। वे आचार्य नरेंद्र देव और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के काफी करीबी थे।
कन्याकुमारी से नई दिल्ली तक पदयात्रा
चूंकि वे चेहरे से तो संयत नजर आते, लेकिन मिजाज से काफी गर्म थे। धारा के खिलाफ चलने की आदत की वजह से ही उन्हें एक नया नाम युवा तुर्क मिला था। 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और अपने जेल के दिनों में उन्होंने कई किताबें लिखीं
इसमें मेरी जेल डायरी और सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता अहम है। देश की जनता का दुख दर्द समझने के लिए उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से नई दिल्ली तक लगभग 4260 किलोमीटर की पदयात्रा की। इस दौरान देश के विभिन्न राज्यों में उन्होंने भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना भी की थी।
किस तरह बदले देश के सियासी हालात
वैसे यह भी जानना जरूरी है कि किन सियासी हालातो में चंद्रशेखर सीधे प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सहानुभूति लहर का फायदा उठाते हुए बड़ी जीत हासिल की थी। पार्टी 400 से अधिक सीटें जीतने में कामयाब हुई थी और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि बोफोर्स घोटाले को लेकर आरोपों के बाद 1989 के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी
वीपी सिंह को भाजपा और वाम दलों का समर्थन हासिल था। वीपी सिंह के कार्यकाल के दौरान राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया और लालकृष्ण आडवाणी दबाव बनाने के लिए रथयात्रा पर निकल पड़े। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने राज्य में आडवाणी को गिरफ्तार करवा दिया। इससे नाराज होकर भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। अल्पमत में आ जाने के कारण वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
कांग्रेस के समर्थन से पीएम बने चंद्रशेखर
इसके बाद चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया। कांग्रेस नेता राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। जिस कांग्रेस का विरोध करके जनता दल ने सत्ता हासिल की थी, उसी के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए। चंद्रशेखर के साथ उल्लेखनीय बात यह रही कि उन्होंने सीधे देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के तीन महीने बाद ही कांग्रेस ने बड़ा खेल कर दिया। कांग्रेस ने राजीव गांधी की जासूसी करने का आरोप लगाते हुए चंद्रशेखर की सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। अल्पमत में आ जाने के कारण चंद्रशेखर को 6 जून 1991 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
कांग्रेस की फिर सत्ता में वापसी
इसके बाद देश में नई सिरे से लोकसभा चुनाव कराए गए। इसी चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राजीव गांधी की तमिलनाडु में हत्या कर दी गई थी। जून 1991 में कांग्रेस की फिर सत्ता में वापसी हो गई और पीवी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री बने। राव के शपथ लेने से पहले 21 जून 1991 तक चंद्रशेखर ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।
बलिया लोकसभा सीट से कई बार जीता चुनाव
चंद्रशेखर को युवा तुर्क के नाम से जाना जाता था और उन्होंने बलिया लोकसभा सीट से कई बार जीत हासिल की। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 1977 में पहली बार इस सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर 2004 के चुनाव तक वे लगातार इस सीट पर जीत हासिल करते रहे।
8 जुलाई 2007 को चंद्रशेखर ने आखिरी सांसें ली थीं और उनके निधन के बाद इस लोकसभा सीट पर 2007 में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने नीरज शेखर को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्होंने जीत हासिल की थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में नीरज शेखर को सपा के सनातन पांडेय के सामने हार का सामना करना पड़ा है।