Chandrayaan-3: अंतरिक्ष में जीत का चंद्रपथ

Chandrayaan-3: भारत अंतरिक्ष की दुनिया में भी एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। अगर हम पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी भूमिकाओं को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन किया है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में भारत अंतरिक्ष की दुनिया में अग्रणी देश बनकर उभरेगा।

Surya Prakash Agrahari
Published on: 23 Aug 2023 1:20 PM GMT
Chandrayaan-3: अंतरिक्ष में जीत का चंद्रपथ
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(Pic: Newstrack)

Chandrayaan-3: भारत, जिसे किसी जमाने में सपेरों का देश कहा जाता था लेकिन अब वही भारत अपनी क्षमता और प्रतिभा के आधार पर हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। भारत अंतरिक्ष की दुनिया में भी एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। अगर हम पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी भूमिकाओं को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन किया है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में भारत अंतरिक्ष की दुनिया में अग्रणी देश बनकर उभरेगा। अभी पूरी दुनिया की स्पेस इकोनामी लगभग तीस लाख करोड़ रुपये है। जिसमें भारत की भागीदारी 57,431 करोड़ रुपए की है। वर्तमान प्रगति को देखते हुए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आगामी 5 वर्षों में भारत की स्पेस इकोनॉमी में सालाना 48 फ़ीसदी वृद्धि संभव है।जिसके अंतर्गत आगामी 5 वर्षों में भारत की स्पेस इकोनामी चार लाख दस हज़ार करोड रुपए हो जाएगी। आज भारत चाँद के मुहाने पर खड़ा है, भारत की यह सफलता पिछले कई वर्षों की कोशिशों का परिणाम है।

चाँद पर पहुँचने के इतिहास के क्रम में साल 1969 के अपोलो-11 मिशन ने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद की सतह पर पहली बार उतारा था। सवाल यह है कि जब मानव पहले ही चांद की सतह पर जा चुके हैं। तो अब अचानक से दोबारा वहां जाने की होड़ क्यों मची है ? इसके कई कारण हो सकते हैं जिसमें प्रमुख कारण के तौर पर वैज्ञानिकों की रुचि जान पड़ती है। इसके साथ ही साथ चंद्रमा पर पानी की खोज, क्रेटर्स के माध्यम से सौरमंडल और उसके इतिहास के बारे में समझना यह भी एक कारण हो सकता है। यहां उपलब्ध संसाधनों का अध्ययन कर भविष्य में जीवन की संभावनाओं को ढूंढना भी एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। चंद्रमा के माध्यम से हम मंगल सहित अन्य ग्रहों और उसके आगे की खोज के लिए अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का उपयोग करने में सामर्थ्यवान बन सकते हैं।

2008 का मिशन चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक विमोचित किया गया था। यह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल रहा। इस मिशन का अंत संपर्क खो जाने से हुआ। चंद्रयान-1 के 10 साल बाद 2019 में चंद्रयान-2 के लैंडर की चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण यह मिशन असफल हो गया था। अभी हाल ही में रूस द्वारा चंद्रमा पर 1976 के बाद लूना-25 मिशन को भेजा गया था लेकिन यह भी सतह पर पहुँचते ही असफल हो गया। चंद्रयान-2 और लूना-25 के असफल होने के बाद चंद्रयान-3 के पास यह मौका था कि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला मिशन बने और इस मिशन ने यह कामयाबी हासिल कर ली है। 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-2 के असफल होने के बाद भारत का यह दूसरा प्रयास तमिलनाडु के पी. वीरमुथुवेल की अगुवाई में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 40 दिनों की यात्रा पर इसरो के बाहुबली कहे जाने वाले एलवीएम-3 रॉकेट, जिसका पुराना नाम जीएसएलवी मार्क-3, के माध्यम से चंद्रयान-3 को विमोचित किया गया था।

इस मिशन का पहला उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष एजेंसी की क्षमता का प्रदर्शन करना और सॉफ्ट लैंडिंग वाले उस विशेष समूह में शामिल होना जिसमें अमेरिका, यूएसएसआर, और चीन पहले से मौजूद है। चंद्रयान-3 में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल जिसका नाम 'विक्रम', एक प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर, जिसका नाम 'प्रज्ञान', शामिल है जिसका उद्देश्य एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) के लिए चंद्रमा पर कार्य करना और डाटा को एकत्र करना है। यह नाम चंद्रयान-2 में शामिल लैंडर और रोवर के नाम पर ही है। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में गोते लगा रहा है। इसलिए इस बार चंद्रयान-3 में आर्बिटर नहीं भेजा गया। इस मिशन में एक दिलचस्प बात यह है कि इसके सॉफ्ट लैंडिंग का परीक्षण तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 400 किलोमीटर दूर स्थित नामक्कल की मिट्टी में हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार नामक्कल की मिट्टी के गुण चंद्रमा के समान हैं।जिस कारण चंद्रयान-3 के सॉफ्ट लैंडिंग का परीक्षण यहां हुआ।

चंद्रयान-3 ने 5 अगस्त को चंद्रमा की ऑर्बिट में प्रवेश किया था। जैसे-जैसे अंतरिक्षयान चांद की ओर बढ़ता गया वैसे ही यह क्षैतिज से लंबवत दिशा में मुड़ना शुरू हो गया। चंद्रयान-2 को भी यही समस्या का सामना करना था जिसमें वह असफल हो गया था। चंद्रयान-3 का लैंडर आज 23 अगस्त शाम 6:04 बजे पर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल रहा। अंतरिक्ष एजेंसी के टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड सेंटर ने शाम 5:47 बजे एक कमांड भेजा था जो अंतरिक्ष यान को लैंडिंग शुरू करने का संकेत दे रहा था। 5:47 से 6:04 के बीच का 17 मिनट का समय पृथ्वी पर रहने वाली टीम के लिए तनावपूर्ण था क्योंकि अंतिम चरण के दौरान चंद्रयान-3 अंतरिक्षयान को अपने सेंसर से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर अपने रास्ते को परिवर्तित करना था। जिसमें यह सफल साबित हुआ।

भारत ने चंद्रयान-3 के माध्यम से चंद्रमा के उस हिस्से को चुना है जहाँ चुनौतियां तो बहुत हैं मगर वहाँ संभावनाओं का आकाश बड़ा है। चंद्रयान-3 का उद्देश्य चंद्रमा के उस अंधकारमय क्षेत्र को रोशन करने की कोशिश है जिसे डार्क साइड ऑफ़ मून कहा जाता है। यह क्षेत्र चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। असल में चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव कई मायनों में भविष्य में होने वाले चंद्र मिशनों के मार्ग को प्रशस्त करने वाला साबित होगा। यही कारण है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की होड़ लगी हुई है। चंद्रमा के इस मानव की पहुँच से दूर वाली जमीन पर अन्वेषण के लिए तत्पर देश के पास कई वजह हैं। पहली वजह है कि यह क्षेत्र हमेशा ही छाया में रहता है, इसके हिस्से के बेहद ठंडे क्रेटर्स में जमी हुई बर्फ के भंडार जो पानी के स्रोत हो सकते हैं।

दूसरें कारणों में यहां जीवाश्मों का भंडार होना भी हो सकता है। इसके साथ ही साथ हीलियम-3 जैसा बहुमूल्य खनिज के प्राप्त होने की भी इस क्षेत्र में संभावना है। इसके अलावा यहां की चट्टानों में लौह, मैग्निशियम, कैलशियम आदि मौजूदगी हो सकती है। मंगल ग्रह के बाद इंसानों को बसाने के लिए चंद्रमा को सर्वाधिक संभावना वाले अंतरिक्ष पिंड के रूप में देखा जा रहा है इसलिए भारत भी चंद्रयान-3 के माध्यम से पानी की मौजूदगी वाले इस इलाके पर लगातार अपने प्रयासों को जारी रख रहा है। चंद्रयान की खासियत यह भी है कि यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार किया गया है।

चंद्रयान की सफलता और भारत के वर्तमान अंतरिक्ष उद्देश्यों को देखकर हम कह सकते हैं कि भारत जिस तरह चंद्रयान, गगनयान और सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य मिशन आदि योजनाओं पर काम कर रहा है, उससे हमारा देश अंतरिक्ष में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। देशों की ताकत केवल अर्थव्यवस्था, व्यापार और सामरिक शक्ति से नहीं आंकी जाती, उसकी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां भी इसका मानक होती हैं। आने वाले समय में अंतरिक्ष और चंद्रमा पर कोई भी वैज्ञानिक चर्चा भारत के बिना अधूरी रहेगी। इस तरह भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में इन महाशक्तियों से कंधे से कंधा मिला कर खड़ा हो सकेगा। भारत अपने तकनीक और वैज्ञानिक ज्ञान के बल पर दुनिया के अंतरिक्ष में अग्रणी देशों को टक्कर दे रहा है और अंतरिक्ष क्षेत्र में सस्ती सेवाएं उपलब्ध करा रहा है। भारत के सभी चंद्रयान मिशन अंतरिक्ष अध्ययन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखें जाएंगे और ये मिशन एक नया कीर्तिमान रचेंगे।
(लेखक अंतरिक्ष विज्ञान के अध्येता हैं।)

Surya Prakash Agrahari

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