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चीन से व्यापार में मुकाबले के लिए जरूरी है नीति में बदलाव
1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद से 56 साल बीत जाने के बावजूद भारत आज तक चीन से सीधा लड़ने में सक्षम नहीं हो पाया है। परिस्थितियों के चलते चीन भी भारत के साथ सीधा युद्ध तो नहीं लड़ रहा है, लेकिन ट्रेड वार के रूप में उसने जो अघोषित जंग छेड़ा है उसे भारत बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। नतीजतन भारत ने हाल ही में चीन से आयात होने वाले स्टील की कुछ किस्मों पर पर डम्पिंग ड्यूटी बढ़ा दी है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद से 56 साल बीत जाने के बावजूद भारत आज तक चीन से सीधा लड़ने में सक्षम नहीं हो पाया है। परिस्थितियों के चलते चीन भी भारत के साथ सीधा युद्ध तो नहीं लड़ रहा है, लेकिन ट्रेड वार के रूप में उसने जो अघोषित जंग छेड़ा है उसे भारत बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। नतीजतन भारत ने हाल ही में चीन से आयात होने वाले स्टील की कुछ किस्मों पर पर डम्पिंग ड्यूटी बढ़ा दी है। 2017 में भी मोदी सरकार ने चीन के 93 प्रोडक्ट्स पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई थी, जिसके बाद चीन की बौखलाहट दिखाई पड़ी थी। चीन इस बात को झेल नहीं पा रहा है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इससे भारत चीन व्यापार युद्ध में तेजी आ सकती है।
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चीनी मीडिया में मोदी सरकार के इस कदम को काफी गलत बताया गया था और इसे चीन के हितों के विपरीत कहा गया था। चीनी मीडिया का कहना है कि एंटी डंपिंग ड्यूटी से पहले भी भारत की तरफ से चीन के करीब 12 प्रोडक्ट्स के खिलाफ जांच शुरू की गई थी। चीन में भारतीय दूतावास के आंकड़ों के मुताबिक भारत से चीन को होने वाला निर्यात साल-दर-साल 12.3 फीसदी गिरकर 11.75 अरब डॉलर हो गया है, वहीं दूसरी ओर भारत का चीन से होने वाला आयात 2 फीसदी बढ़कर 59.43 अरब डॉलर हो गया है।
भारत सरकार ने चीनी स्टील की कुछ किस्मों पर पांच साल के लिए प्रति वर्ष 185.51 डॉलर प्रति टन की डंपिंग ड्यूटी को लगाया गया है। सरकारी अधिसूचना के मुताबिक राजस्व विभाग ने डीजीटीआर) की सिफारिशों के आधार पर यह ड्यूटी लगाई है। जेएसडब्लू स्टील लिमिटेड, सनफ्लैग आयरन एंड स्टील कंपनी, उषा मार्टिन, गेरदाउ स्टील इंडिया, वर्धमान स्पेशल स्टील्स और जायसवाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने संयुक्त रूप से डीजीटीआर से पहले कुछ स्टील उत्पादों पर ड्यूटी के लिए डीजीटीआर से आवेदन किया था. अपनी एंटी-डंपिंग जांच में डीजीटीआर ने कहा कि चीन से सीधे लंबाई वाली सलाखों और मिश्र धातु इस्पात की छड़ के आयात की जांच (2016-17) के दौरान पूर्ण शर्तों में बढ़ी है।
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चीन से मिश्र धातु इस्पात की सीधी लंबाई सलाखों और छड़ों का आयात 2016-17 में 56,690 टन से बढ़कर 1,80,959 टन हो गया है। 2016-17 में भारत का कुल आयात 2,56,004 टन बढ़कर 2013-14 में 1,32, 9 33 टन हो गया। 2016-17 में भारत में इस स्टील की मांग भी 16,69,653 टन हो गई, जो 2013-14 में 15,14,795 टन थी।
ऐसे में एक सवाल मौजूं है कि क्या चीन से व्यापार युद्ध लड़ने का यह तरीका कारगर है शायद नहीं क्योंकि वैश्विक व्यापार के माहौल में आप किसी को भी रोक नहीं सकते अलबत्ता अपनी गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं। हाल के आंकड़े बताते हैं भारत चीन को कच्चा माल कम निर्यात करता है जबकि उससे अधिक आयात करता है। मुख्य रूप से इलेक्ट्रानिक्स और अन्य निर्मित सामान की माग भारत में बहुत ज्यादा है। भारत के फार्मा सेक्टर की चीनी आयात पर बहुत अधिक निर्भरता है। अब भले ही आप चीनी सामान का बहिष्कार करें। स्वदेशी का नारा दें। लेकिन यह हथियार कारगर इसलिए नहीं है क्योंकि इलक्ट्रानिक सामान में खासकर स्मार्ट मोबाइल के क्षेत्र में आपके पास कोई विकल्प ही नहीं बड़ी से बड़ी कंपनी का मोबाइल भी चीनी कलपुर्जों को जोड़कर बना होता है।
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इन हालात में चीन का एकाधिकार तोड़ने के लिए या चीन से अपने बाजार बचाने के लिए आपको सुविधायुक्त उससे सस्ता अपना बाजार खड़ा करना होगा और यह काम एक दिन में नहीं हो सकता है। आपको अपने आईटीआई पालिटेक्निक से प्रशिक्षित युवाओं की एक बड़ी ताकत निकालनी होगी। जो ऐसे उत्पाद तैयार कर सकें जिनकी स्वदेशी बाजार में खपत हो सके। चाहे फर्नीचर हों या खिलौने आपको प्रशिक्षित युवाओं की फौज को इसमें झोंक देना होगा। कृषि उपज का अधिकतम मूल्य देना होगा ताकि किसान अधिक से अधिक फसल प्राप्त करने के प्रति उत्साहित हो सकें। अतः प्रतिस्पर्धी बाजार खड़ा करके ही चीन या किसी अन्य देश के उत्पादों का मुकाबला किया जा सकता है।