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Chaudhary Charan Singh Birthday: जब किसान बनकर थाने पहुंचे चौधरी चरण सिंह, PM से घूस मांगने पर नप गया था पूरा थाना
Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary 2024: चौधरी चरण सिंह ने जीवन भर सादगी के सिद्धांतों का पालन किया। उन्हें दिखावा करने और फिजूलखर्ची से सख्त नफरत थी।
Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary 2024: देश की सियासत में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाता है। अपने लंबे सियासी जीवन के दौरान उन्होंने हमेशा किसानों के हितों की लड़ाई लड़ी। यही कारण है कि उनकी जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वैसे चौधरी साहब ने किसानों ही नहीं बल्कि गरीबों और समाज के कमजोर वर्गों की लड़ाई लड़ने में भी कभी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। सादगी पसंद जीवन जीने वाले चौधरी चरण सिंह का जन्म 1902 में आज ही के दिन मेरठ के नूरपुर गांव में हुआ था।
देश के प्रति उनकी सेवाओं के कारण ही इस साल की शुरुआत में उन्हें मोदी सरकार की ओर से भारत रत्न का देने का ऐलान भी किया गया था। किसानों की शिकायत का निस्तारण करने के लिए उनका एक किस्सा काफी मशहूर रहा है। इस दौरान चौधरी चरण सिंह मैला-कुचला कपड़ा पहने हुए किसान की वेशभूषा में इटावा के ऊसराहार थाने में रपट लिखाने के लिए पहुंच गए थे। चौधरी चरण सिंह को पहचान न पाने के कारण थाने पर उनसे रिश्वत की मांग कर दी गई। बाद में असलियत पता चलने पर हड़कंप मच गया और रिश्वत मांगने के मामले में पूरे ऊसराहार थाने को सस्पेंड कर दिया गया था।
किसानों ने की थी चौधरी साहब से शिकायत
चौधरी चरण सिंह ने जीवन भर सादगी के सिद्धांतों का पालन किया। उन्हें दिखावा करने और फिजूलखर्ची से सख्त नफरत थी। 1979 में देश के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर पहुंचने वाले चौधरी चरण सिंह हमेशा आम लोगों की बात सुनने को तत्पर रहते थे। यही कारण था कि कई मौकों पर वे सुरक्षा का तामझाम छोड़कर आम लोगों के बीच पहुंच जाया करते थे। उनकी यह सादगी लोगों को काफी पसंद आया करती थी।
1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद चरण चौधरी चरण सिंह के पास किसानों की कई शिकायतें पहुंचीं। किसानों की शिकायत थी कि पुलिस और ठेकेदारों की ओर से घूस लेकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। किसानों की शिकायत ने चौधरी साहब को परेशान कर दिया और वे इस शिकायत की सच्चाई जानने और इसका समाधान करने में जुट गए।
रिपोर्ट लिखाने के लिए देनी पड़ी रिश्वत
1979 के अगस्त महीने के दौरान शाम के वक्त मैली-कुचली धोती पहनकर एक बुजुर्ग किसान उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के ऊसराहार थाने में अपनी शिकायत लेकर पहुंचा। किसान ने थाने में अपने बैल के चोरी हो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की। थाने में मौजूद दरोगा रुआबी भरे अंदाज में किसान से उल्टे-सीधे सवाल पूछने लगा।
दरोगा ने बिना रिपोर्ट लिखे किसान को उल्टे पांव लौटा दिया। बुजुर्ग किसान के लौटते समय पीछे से एक सिपाही बोला कि थोड़ा खर्चा पानी देने पर रिपोर्ट दर्ज कर ली जाएगी। आखिरकार 35 रुपये की रिश्वत पर रिपोर्ट लिखे जाने की बात तय हुई। बुजुर्ग किसान की ओर से पैसा दिए जाने के बाद रिपोर्ट लिख ली गई।
पीएम की मुहर देखकर मच गया हड़कंप
रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थाने के मुंशी ने बुजुर्ग किसान से सवाल पूछा कि वे हस्ताक्षर करेंगे या अंगूठा लगाएंगे। किसान ने हस्ताक्षर करने की बात कही तो मुंशी ने हस्ताक्षर के लिए कागज बढ़ा दिया। बुजुर्ग किसान ने हस्ताक्षर के लिए पेन निकालने के साथ स्याही वाला पैड उठाया तो मुंशी भी हैरान रह गया। बुजुर्ग किसान ने हस्ताक्षर करने के साथ कुर्ते की जेब से मुहर निकालकर थाने के कागज पर ठोक दी।
मुहर पर लिखा हुआ था प्रधानमंत्री भारत सरकार। कागज पर प्रधानमंत्री की मुहर देखकर पूरे थाने में हड़कंप मच गया। वह बुजुर्ग किसान और कोई नहीं बल्कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। इस बात का खुलासा होते ही पूरे थाने में हड़कंप मच गया। थाने के दरोगा को रिश्वत मांगना काफी महंगा पड़ गया और पूरे ऊसराहार थाने को इस मामले में सस्पेंड कर दिया गया।
किसानों की शिकायत में मिली सच्चाई
दरअसल चौधरी चरण सिंह किसानों की ओर से मिल रही शिकायतों की सच्चाई जानने के लिए खुद थाने पर पहुंचे थे। अपनी पहचान छिपाने के लिए उन्होंने अपने गाड़ियों के काफिले को थाने से कुछ दूरी पर खड़ा कर दिया था। अपने कपड़ों पर मिट्टी लगाने के बाद वे अकेले ही थाने पर शिकायत दर्ज कराने के लिए पहुंचे थे। इस घटनाक्रम के दौरान उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि किसानों की शिकायत में पूरी तरह सच्चाई है।
पीएम के रूप में संसद का सामना नहीं
चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बनने में तो कामयाब रहे मगर पीएम के रूप में उनकी पारी लंबी नहीं चल सकी। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने थे। वे राजनीति के उस शिखर पर पहुंच चुके थे जो किसी भी राजनेता का सपना हुआ करता है।
चौधरी साहब को 20 अगस्त तक अपना बहुमत साबित करना था मगर एक दिन पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। इस कारण चौधरी साहब इस्तीफा देने पर मजबूर हो गए और उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में संसद का एक दिन भी सामना नहीं किया।
इंदिरा की वापसी के बाद कमजोर हुए चौधरी साहब
इसके बाद 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव कराया गया जिसमें इंदिरा गांधी बहुमत हासिल करते हुए सत्ता में वापसी करने में कामयाब हुईं। बाद में 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में सहानुभूति लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस 400 से अधिक सीटें हासिल करने में कामयाब रही।
इस तरह सत्ता से हटने के बाद चौधरी साहब की सियासत कभी बुलंदी पर नहीं पहुंच सकी और 19 मई 1987 को चौधरी साहब का निधन हो गया। किसानों,गरीबों और समाज के कमजोर वर्गों की लड़ाई लड़ने के लिए चौधरी साहब को आज भी काफी आदर के साथ याद किया जाता है।