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2018 के चुनाव : अब नहीं चल रहा चाउर वाले बाबा का जादू

raghvendra
Published on: 22 Dec 2017 5:04 PM IST
2018 के चुनाव : अब नहीं चल रहा चाउर वाले बाबा का जादू
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आरबी त्रिपाठी

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में पिछले 14 सालों से मुख्यमंत्री रमन सिंह का राज है। एक रुपये किलो चावल बांटकर गरीब छत्तीसगढिय़ों के बीच चाउर वाले बाबा के रूप में पहचान बनाने वाले रमन सिंह का जादू उनकी बढ़ती उम्र के साथ कमजोर होता जा रहा है। उनकी नीतियों में जनता को खुश रखने की ताकत नहीं बची है।

कांग्रेस भले कुछ ज्यादा चमत्कार करती नहीं दिख रही है लेकिन एंटीइंकम्बैंसी का फायदा उठाने की कोशिश में जरूर है। यहां कांग्रेस की राह का सबसे बड़े रोड़ा हैं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी जो छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनाकर पूरे सूबे में महफिल लूटने की तैयारी में हैं। वैसे इस राज्य में चुनाव अगले साल नवंबर महीने में होने हैं लेकिन सारी पार्टियों ने माहौल अभी से बनाना शुरू कर दिया है। चुनावी साल मानकर जुमलेबाजी का दौर चल पड़ा है।

90 विधानसभा सीटों वाले इस सूबे में भारतीय जनता पार्टी के पास इस समय 51 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास 38 हैं। अब अजीत जोगी ने सूबे के हर इलाके में अपनी पकड़ बना ली है और एक एफिडेविट के जरिए जनता के बीच अपनी साख बनाई है कि अगर हम अपने इन इन वादों पर खरे नहीं उतरेंगे तो हम पर सजा मुकर्रर की जा सकती है।

यह नए किस्म की राजनीति साबित हो रही है। इससे जनता को लगने लगा है कि जोगी ही हमारे लिए फिट होंगे। जोगी ने मुद्दे वह उठाए हैं जो जनता के हैं और जनता के मन में भरोसा जगाते हैं। हां, छत्तीसगढ़ में मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस है इसलिए कांग्रेस को अपनी मजबूती के लिए अजीत जोगी को साथ लाना होगा। भाजपा का मुकाबला करने का आसान तरीका संभवत: यही हो सकता है।

रमन सिंह की कमजोरी

पिछले 14 साल से एकछत्र राज कर रहे रमन सिंह को उनके समर्थक सीधा और सज्जन तो कहते हैं लेकिन उनका यही व्यक्तित्व उनके लिए खतरा बनता जा रहा है। सूबे में अफसरशाही बेलगाम और भ्रष्ट है। अफसर मंत्रियों की नहीं सुनते। कई बार मुख्यमंत्री के आदेश तक के आदेश दरकिनार किए जाते हैं। कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे। इस वजह से उनमें भी असंतोष बढ़ रहा है।

वादाखिलाफी के आरोप

मुख्यमंत्री रमन सिंह ने 2007 में शिक्षाकर्मियों के मानदेय में हर साल 20-20 फीसदी बढ़ाने और उन्हें शिक्षा विभाग समेत दूसरे विभागों में शामिल कर लिए जाने की घोषणा की थी लेकिन तीसरी बार सरकार बनने के जब उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया तो शिक्षाकर्मियों ने 17 दिनों तक आंदोलन किया। सरकार ने किसी तरह 15 फीसदी अंतरिम राहत देकर नया वेतनमान देने की घोषणा कर उनका आंदोलन खत्म कराया।

शिक्षाकर्मियों ने 2011 में सरकारी घोषणा पर अमल कराने के लिए सात दिन तक आंदोलन किया था लेकिन मामला अटका रहा। इस साल राज्य के शिक्षाकर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल की और सडक़ पर उतरे। यह सबसे बड़ा प्रदर्शन था।

38 दिन तक चले प्रदर्शन और भूख हड़ताल के दौरान आधा दर्जन से अधिक शिक्षाकर्मियों की मौत हो गई। मानदेय के अभाव में कई लोगों ने आत्महत्या कर ली लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। ऐसे ही कई और पुराने मामले भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक जमाने में छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे। वह पूरे सूबे के अच्छी तरह से जानते हैं। यहां की जनता का रुख गुजरात की जनता जैसा नहीं है। अबकी बार वह रमन सिंह से नाराज चल रही है। हालांकि रमन सिंह नाराजगी दूर करने के उपाय करते दिखते जरूर हैं लेकिन उनका जादू चल नहीं पा रहा है।

सतनामियों का भ्रम टूटा

सूबे के कुछ इलाकों बिलासपुर, जांजगीर, महासमुंद, रायगढ़, दुर्ग, कवर्धा आदि में सतनामी संप्रदाय के साधुओं का प्रभाव काफी पहले से रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए सतनामी गुरू बालकदास को पैसा और हेलीकाप्टर उपलब्ध कराया। उनके निर्दलीय उम्मीदवार खड़े कराए। नतीजा यह हुआ कि दस सीटों पर जहां कांग्रेस मजबूत थी और भाजपा कमजोर थी, सतनामी उम्मीदवारों ने वोट काट लिये।

हालात का फायदा उठाकर भाजपा ने ऐसी दस सीटों पर कब्जा जमा लिया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने अबकी बार इसकी काट सोच रखी है। हालांकि सूबे के पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत के सीडी वाले मामले में विवादों से घिरे बघेल वह काम नहीं कर पाए जिससे उनकी छवि बहुत प्रभावी बन सके। ऐसे में कांग्रेस को अपनी रणनीति कामयाब करने के लिए कोई और चेहरा खोजना पड़ सकता है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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