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India-China Dispute: पूरे तवांग पर कब्जा करना चाहता है चीन, नजरों में खटक रहा बौद्ध मठ

India-China Border Dispute: हर साल ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जहां चीनी सैनिक भारतीय भूमि में प्रवेश करते हैं, संरचनाओं का निर्माण करते हैं या चट्टानों और पेड़ों पर कुछ लिख जाते हैं, यह दिखाने के लिए कि ये जमीन उनकी है।

Neel Mani Lal
Published on: 14 Dec 2022 6:14 PM IST
India-China border dispute
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India-China border dispute (Social Media)

India-China Border Dispute: अरुणाचल प्रदेश के लिए चीनी घुसपैठ कोई नई बात नहीं है। हर साल ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जहां चीनी सैनिक भारतीय भूमि में प्रवेश करते हैं, संरचनाओं का निर्माण करते हैं या चट्टानों और पेड़ों पर कुछ लिख जाते हैं, यह दिखाने के लिए कि ये जमीन उनकी है। अरुणाचल प्रदेश, चीन के साथ 1,129 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। भारत और चीन की सीमाओं को बाँटने वाली रेखा को मैकमोहन लाइन कहा जाता है। इस सीमांकन को भारत को स्वीकार है लेकिन चीन इसे अस्वीकार करता है। चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा को पहचानता है जो मैकमोहन रेखा के बिल्कुल करीब है और जो भारत – चीन युद्ध के बाद की यथास्थिति दर्शाती है।

मैकमोहन रेखा 1914 के शिमला सम्मेलन में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन द्वारा तिब्बत और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बीच प्रस्तावित सीमांकन रेखा है। 1912 तक तिब्बत और भारत के बीच स्पष्ट रूप से कोई सीमा रेखा नहीं खींची गई थी।

भारत और तिब्बत के लोगों को भी सीमा रेखा की जानकारी नहीं थी। तवांग में बौद्ध मंदिर होने की पुष्टि हुई तो सीमा रेखा का आकलन शुरू हुआ। 1914 में शिमला में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों की बैठक में सीमा रेखा तय की गई थी।

1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र देश था, लेकिन ब्रिटिश शासकों ने तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को भारत का अभिन्न अंग माना। इस पर तिब्बतियों ने भी सहमति जताई। चीन इस बात से इतना नाराज हुआ कि उसके प्रतिनिधि बैठक छोड़कर चले गए।

1935 के बाद यह पूरा क्षेत्र भारत के मानचित्र में आ गया। हालांकि चीन ने कभी भी तिब्बत को एक स्वतंत्र देश नहीं माना। अब चीन तवांग के जरिए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए अरुणाचल के कुछ हिस्सों पर कब्जा करना चाहता है।

'ईस्ट मोजो' की २०२१ की एक रिपोर्ट में पूर्वी अरुणाचल के सांसद तपीर गाओ ने कहा था कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, अरुणाचल प्रदेश के वर्तमान ऊपरी सुबनसिरी जिले में अशफिला, लोंगज़ू, बीसा और माज़ा शामिल क्षेत्र भारतीय क्षेत्र में थे, लेकिन अब यह चीन के पास हैं।

गाओ के अनुसार, भारत का आखिरी सैन्य शिविर न्यू माजा में है। गाओ के अनुसार, पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह ने एक बार उन्हें बताया था कि अरुणाचल में भारतीय सेना के अशफिला पोस्ट से आगे 8 शिविर थे और प्रत्येक शिविर में कम से कम 5 से 8 किमी की दूरी थी। लेकिन अब हम अशफिला का दावा भी नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा, तवांग जिले की सुमदोरोंग चू घाटी पर भी चीनी पीएलए ने जून 1986 में कब्जा कर लिया था। सुमदोरोंग चू घाटी पश्चिम में भूटान और उत्तर में थग ला रिज से घिरा हुआ है।

26 जून 1986 को भारत सरकार ने चीनी सैनिकों द्वारा इस क्षेत्र में घुसपैठ के खिलाफ बीजिंग के साथ औपचारिक विरोध दर्ज कराया था। सांसद ने कहा कि घुसपैठ और आमने-सामने टकराव के लिए उचित सीमा सीमांकन ही एकमात्र समाधान है। तपीर गाओ ने कहा है कि वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) के बजाय हमें केवल मैकमोहन रेखा को पहचानना चाहिए।

चीन वैसे तो पूरे अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है, लेकिन तवांग का सामरिक रूप से खासा महत्व है। राजधानी ईटानगर से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित तवांग अरुणाचल प्रदेश का सबसे पश्चिमी जिला है। इसकी सीमा तिब्बत के साथ भूटान से भी लगी है। तवांग में तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ है।

तिब्बती बौद्ध केंद्र के इस आखिरी सबसे बड़े केंद्र को चीन लंबे अरसे से नष्ट करना चाहता है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी तवांग ही लड़ाई का केंद्र था। पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने अपनी किताब चॉइस इनसाइड द मेकिंग ऑफ़ इंडियाज फॉरन पॉलिसी में बताया है कि बीजिंग ने लंबे समय से यह साफ कर दिया है कि वह तवांग को चाहता है।

यही वजह है कि वह बार बार कोशिशें करता रहता है। सीमा पर चीन की बढ़ती सक्रियता से निपटने के लिए भारत सरकार भी अरुणाचल प्रदेश में अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटी है। इसमें हर मौसम में सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही आसान बनाने वाली नई सुरंगों के अलावा नई सड़कों का निर्माण, पुल, हेलीकॉप्टर बेस और गोला-बारूद के लिए भूमिगत भंडारण वाले ठिकाने तैयार करना शामिल है।



Durgesh Sharma

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