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CJI डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल का आज आखिरी दिन, AMU मामले में दे सकते हैं ऐतिहासिक फैसला

CJI DY Chandrachud: आज अपने वर्किंग डे के आखिरी दिन चंद्रचूड़ अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुना सकते हैं।

Sonali kesarwani
Published on: 8 Nov 2024 8:15 AM IST (Updated on: 8 Nov 2024 11:52 AM IST)
CJI DY Chandrachud
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CJI DY Chandrachud: आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का अपने कामकाज को लेकर आखिरी दिन है। ऐसे में माना जा रहा है कि आज सुप्रीम कोर्ट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर ऐतिहासिक फैसला सुना सकती है। एएमयू पर आज कोर्ट में सात जजों की बैठक के साथ सुनवाई होगी जिसमें सीजेआई चंद्रचूड़ भी शामिल है। बता दें कि एएमयू को लेकर फैसला इस बात पर आएगा कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एक अल्पसंख्यक संस्थान माना जा सकता है या नहीं? सात जजों वाली बेंच की अध्यक्षता सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ करेंगे।

क्या है एएमयू का मामला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय का यह मामला साल 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले से आया जिसमे अदालत ने कहा था कि AMU को ल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है। अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिलता, तो उसे बाकी सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की तरह शिक्षकों और छात्रों के लिए आरक्षण नीतियों को लागू करना पड़ेगा। वहीं अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलता है, तो यह विश्वविद्यालय मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण दे सकेगा।

AMU की आरक्षण नीति

अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में आरक्षण नीति की अगर बात करे तो वर्तमान समय में AMU में राज्य सरकार की आरक्षण नीति लागू नहीं है। बल्कि इस समय विश्विद्यालय में अपनी आंतरिक आरक्षण नीति लागू है। जिसके चलते वहां 50% आरक्षण उन छात्रों को मिल हुआ है जो इसके संबंधित स्कूलों और कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त की है। बता दें कि 1967 में एस अजीज भाषा वर्सेस भारत संघ मामले में पांच जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। समय जज ने फैसला सुनाते हुए यह भी कहा था कि AMU न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही इसे मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित किया जाता था, जो कि अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद 30 (1) के तहत आवश्यक है।

AMU 1981 अधिनियम में संसोधन

बता दे कि जज के फैसले के बाद 1981 में AMU अधिनियम में संसोधन किया गया था। जिसमें यह बताया गया कि अलीगढ यूनिवर्सिटी ‘भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था’, लेकिन 2005 में जब विश्वविद्यालय ने अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित कीं, तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस आरक्षण नीति और 1981 के संशोधन को खारिज कर दिया था। जिसके बाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। और 2019 में यह मामला सात जजों की बेंच को सौंपा गया था ताकि यह तय किया जा सके कि क्या एस. अजीज बाशा मामले में दिया गया फैसला फिर से समीक्षा करने योग्य है या नहीं?

अल्पसंख्यक दर्जे का केंद्र ने किया विरोध

बता दें की 2016 में केंद्र सरकार ने अपनी ओर से हटते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया है। केंद्र का इस मामले को लेकर कहना है कि AMU कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था. केंद्र का कहना है कि 1920 में जब AMU को स्थापित किया गया था, तो यह एक साम्राज्यवादी कानून के तहत किया गया था, और तब से यह मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित नहीं किया गया। जिसके बाद अपना पक्ष रखते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि विश्वविद्यालय का प्रशासन कौन करता है। उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 30 (1) अल्पसंख्यकों को प्रशासन के मामले में स्वतंत्रता देता है और यह संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता।

बता दें कि दोनों की बातों को ध्यान में रखते हुए आज AMU को लेकर बड़ा फैसला आ सकता है। अगर AMU को अल्पसंख्यक संस्थान माना जाता है, तो यह एक बड़ा बदलाव होगा, क्योंकि इससे विश्वविद्यालय में आरक्षण नीतियों का पालन करना होगा।



Sonali kesarwani

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Content Writer

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