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नये युग की शुरुआत, योगी की ताजपोशी से लखनऊ ही नहीं दिल्ली के सत्ता समीकरण भी बदलेंगे
ढाई दशक से यूपी में राम मन्दिर आयोजन के दौर की सरकार के प्रमुख चेहरों मसलन कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, लालजी टंडन और पुराने फायर ब्रांड नेता विनय कटियार की राजनीति और उनकी विरासत हाशिए पर जा चुकी है।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: यूपी की सत्ता में भाजपा की वापसी और फायर ब्रांड हिन्दुत्ववादी नेता योगी आदित्यनाथ की सीएम के पद पर ताजपोशी से अब न केवल दिल्ली में भाजपा व संघ परिवार के सत्ता समीकरण सीधे तौर पर प्रभावित होंगे बल्कि मोदी दरबार के आंतरिक सत्ता संतुलन पर इस बदलाव का सीधा असर पड़ेगा।
हाशिये पर कई नेता
भाजपा व संघ के भीतर भी इस बदलाव का सीधा असर महसूस किया जा रहा है। राजनाथ सिंह हाल तक यूपी सीएम की गद्दी के लिए संघ की पहली पसंद बने हुए थे। लेकिन अब योगी आदित्यनाथ की सीएम की ताजपोशी के बाद राजनाथ का यूपी की राजनीति में रुतबा पहले जैसा नहीं रहने वाला है।
सबसे अहम मुद्दा यह है कि योगी और उनके साथ केशव मौर्या व दिनेश शर्मा के तौर पर दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से युवा चेहरों के हाथ में सत्ता की बागडोर जा चुकी है। इससे ढाई दशक से यूपी में राम मन्दिर आयोजन के दौर की सरकार के प्रमुख चेहरों मसलन कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, लालजी टंडन और पुराने फायर ब्रांड नेता विनय कटियार की राजनीति और उनकी विरासत हाशिए पर जा चुकी है।
राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह जोकि नोएडा सीट से शानदार वोटों से हाल में चुनाव जीते हैं, उनको योगी की टीम में जगह नहीं मिली है। भाजपा के हल्कों में इससे यह स्पष्ट संकेत माना जा रहा है कि यूपी में एक बड़े ठाकुर नेता के तौर पर राजनाथ का वजूद अब धीरे-धीरे कम होता चला जाएगा।
बता दें कि योगी आदित्यनाथ मूल तौर पर उत्तराखंड में जन्मे पूर्वी यूपी के एक ठाकुर नेता हैं और उनकी मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी से पूर्वांचल ही नहीं यूपी के बाकी अंचलों की ठाकुर राजनीति के आंतरिक समीकरणों में बदलाव का असर मोदी दरबार में भी पड़ना तय है।
हालांकि केंद्रीय कैबिनेट में पीएम मोदी के बाद नंबर दो के स्थान पर राजनाथ सिंह ही बने रहेंगे. लेकिन यह बात छिपी हुई नहीं है कि राजनाथ सिंह के संबंध मोदी कैबिनेट के कुछ सदस्यों जिनमें वित्तमंत्री अरुण जेटली भी शामिल हैं, उनसे कतई मधुर नहीं हैं।
शाह की पसंद
बता दें कि राजनाथ सिंह को संघ की पसंद के हिसाब से विधानसभा नतीजों के बाद यूपी का मुख्यमंत्री बनाकर भेजे जाने की चर्चा थी, लेकिन भाजपा व संघ के सूत्रों के मुताबिक यूपी में चुनावी वायदों को 2019 के आम चुनावों के पहले पूरा करना राजनाथ को बहुत असंभव काम लगा।
सूत्र बताते हैं कि राजनाथ ने इसलिए भी यूपी का मुख्यमंत्री बनना पसन्द नहीं किया क्योंकि उन्हें बात-बात पर हर तरह की मदद व दिशा-निर्देशों के लिए दिल्ली में मोदी सरकार के दखल का सामना करना पड़ता, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के खुद यूपी से सांसद होने की वजह से हर छोटी-बड़ी योजनाओं और नीतियों में उनका प्रत्यक्ष दखल हर वक्त बना रहता है.
बता दें कि महंत आदित्यनाथ का संघ परिवार से कभी ताल्लुक नहीं रहा, जबकि राजनाथ संघ से निकले हुए हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि यूपी में एक सप्ताह से चल रहे राजनीतिक असमंजस से संघ चिंतित था। उसके नेताओं की राय थी कि मोदी व अमित शाह को राजनाथ सिंह की ना नुकुर के बाद हिन्दुत्ववादी मज्बूत चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने में कतई देर नहीं करनी चाहिए।
सूत्र बताते हैं कि अमित शाह काफी पहले से ही योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी चाहते थे इसलिए संघ परिवार से हरी झंडी मिलने के बाद उन्होंने योगी के नाम पर हरी झंडी देने में कोई देर नहीं की।