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Common Civil Code: जमीयत उलेमा-ए-हिंद को कॉमन सिविल कोड कतई मंजूर नहीं, विरोध का ऐलान

Common Civil Code:जमीयत ने कहा है कि वह समान नागरिक संहिता के खिलाफ सड़कों पर नहीं उतरेगा बल्कि कानून के दायरे के तहत सभी संभव कदम उठाकर इसका विरोध करेगा।

Neel Mani Lal
Published on: 19 Jun 2023 4:10 PM IST
Common Civil Code: जमीयत उलेमा-ए-हिंद को कॉमन सिविल कोड कतई मंजूर नहीं, विरोध का ऐलान
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(Pic Credit - Social Media )

Common Civil Code: देश में सामान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की चर्चा तेज होने के साथ प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि समान नागरिक संहिता संविधान के तहत गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। जमीयत ने कहा है कि वह समान नागरिक संहिता के खिलाफ सड़कों पर नहीं उतरेगा बल्कि कानून के दायरे के तहत सभी संभव कदम उठाकर इसका विरोध करेगा।

मुस्लिम संगठन का यह बयान विधि आयोग द्वारा राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर एक नई परामर्श प्रक्रिया शुरू करने के कुछ दिनों बाद आया है।

संविधान का दिया हवाला

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक बयान में कहा कि यह यूसीसी का विरोध करता है क्योंकि यह "संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में नागरिकों को दी गई धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के पूरी तरह से खिलाफ है। हमारा संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है, जिसमें प्रत्येक नागरिक को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म चुनने का अधिकार भी दिया गया है, क्योंकि भारतीय राज्य के लिए कोई आधिकारिक धर्म नहीं है, और यह अपने सभी नागरिकों को पूर्ण स्वतंत्रता देता है।

जमीयत (अरशद मदनी गुट) की कार्यकारी समिति ने १८ जून को अपनी कार्यकारी बैठक में सामान नागरिक संहिता के विरोध में एक प्रस्ताव भी पारित किया। जमीयत ने आरोप लगाया कि संहिता की मांग और कुछ नहीं बल्कि नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को कम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है। जमीयत का कहना है कि वह पहले दिन से इस प्रयास का विरोध कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि समान नागरिक संहिता की मांग नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान की मूल भावना को नष्ट करने के प्रयास का हिस्सा है।

सख्त विरोध

जमीयत ने कहा है कि समान संहिता संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, यह मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है। पारित प्रस्ताव पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह मामला केवल मुसलमानों का नहीं बल्कि सभी भारतीयों का है। उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद किसी भी तरह से धार्मिक मामलों और इबादत से समझौता नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा, हम सड़कों पर विरोध नहीं करेंगे, लेकिन कानून के दायरे में हर संभव कदम उठाएंगे।

जमीयत ने कहा कि बहुमत को गुमराह करने के लिए एक विशेष संप्रदाय को ध्यान में रखकर इस मसले का इस्तेमाल किया जा रहा है। जमीयत ने कहा है कि "ऐसा कहा जा रहा है कि यह संविधान में लिखा है, हालांकि आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने खुद कहा था कि समान नागरिक संहिता भारत के लिए अप्राकृतिक और इसकी विविधता के खिलाफ है। इसके अलावा, नीति निर्देशक सिद्धांतों में उल्लिखित, संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है।"

जमीयत ने आरोप लगाया कि नागरिकों के मूल अधिकारों का अक्सर हनन हो रहा है और इसे लेकर कोई विरोध नहीं हो रहा है। जमीयत ने तर्क दिया कि देश में शराब बंदी भी निर्देशक सिद्धांतों के तहत आती है, इसने एक उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि न तो संसद और न ही सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान के अध्याय 3 के तहत सूचीबद्ध बुनियादी प्रावधानों को बदलने का अधिकार है।

Neel Mani Lal

Neel Mani Lal

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