TRENDING TAGS :
अखिलेश के बाद केजरीवाल भी देंगे कांग्रेस को बड़ा झटका, दिल्ली में अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी
दिल्ली में आम आदमी पार्टी खुद को अकेले भाजपा से लड़ाई लड़ने में सक्षम बताती रही है। आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने हाल ही में दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी। दरअसल आप भी दिल्ली में कांग्रेस की ताकत को बखूबी जानती है।
New Delhi: आम आदमी पार्टी ने महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव न लड़कर दिल्ली पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। इससे पहले हरियाणा के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं हो सका था। आम आदमी पार्टी ने अपने दम पर हरियाणा में चुनाव लड़ा था मगर पार्टी को करारा झटका लगा था। पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
इसका मतलब साफ है कि दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन के मूड में नहीं है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को करारा झटका दिया था। प्रदेश के सभी नौ सीटों पर सपा अकेले चुनाव लड़ रही है और पार्टी ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी है।
हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस से बढ़ी आप की दूरी
दरअसल इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बावजूद आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दूरियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। हरियाणा के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और आप के बीच सीट बंटवारे के लिए कई दौर की बातचीत हुई थी मगर राहुल गांधी की इच्छा के बावजूद दोनों दलों में गठबंधन नहीं हो सका था। दरअसल हरियाणा की कांग्रेस इकाई के नेता इस गठबंधन के पूरी तरह खिलाफ थे।
अब अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस के साथ हरियाणा जैसा बर्ताव करते हुए हुए दिख रहे हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने चुनाव प्रचार करने की बात जरूर कही है मगर वे कांग्रेस से इतर पार्टियों का ही चुनाव प्रचार करने के लिए जाएंगे। केजरीवाल के इस कदम से कांग्रेस से उनकी बढ़ती हुई दूरियों को आसानी से समझा जा सकता है।
अपनी छवि बनाने में जुटे हैं केजरीवाल
जानकारों का कहना है कि केजरीवाल अपनी छवि एक ऐसे नेता के रूप में बनाना चाहते हैं जिसके पहचान पैन इंडिया के लीडर के रूप में हो। इसलिए अपनी पार्टी के चुनाव न लड़ने पर भी उन्होंने झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार करने का फैसला किया है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सपा मुखिया अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं का सियासी कद भी काफी बड़ा है मगर वे अपने राज्यों के विधानसभा उपचुनाव में ही फंसे हुए हैं। ऐसे में केजरीवाल के पास अपनी छवि को निखारने का बड़ा मौका है और वे इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते।
दिल्ली में कांग्रेस के साथ नहीं होगा गठबंधन
अब बात यदि अगले कुछ समय में होने वाले दिल्ली के विधानसभा चुनाव की की जाए तो दिल्ली में कांग्रेस के साथ आप का गठबंधन होता हुआ नहीं दिख रहा है। माना जा रहा है कि केजरीवाल की ओर से जल्द ही दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का ऐलान किया जा सकता है। कांग्रेस की ओर से भले ही कोई भी दावा किया जाए मगर सच्चाई यह है कि दिल्ली में कांग्रेस का संगठन काफी लचर स्थिति में है।
पिछले 10 वर्षों के दौरान कांग्रेस दिल्ली विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत सकी है। यदि कांग्रेस की ओर से दोस्ती की पहल की भी जाती है तो पार्टी को केजरीवाल की और से कांग्रेस के साथ वही कदम उठाया जा सकता है जो कांग्रेस ने हरियाणा चुनाव के दौरान आप के साथ उठाया था। कांग्रेस को कुछ महत्वहीन मानी जाने वाली सीटों का ऑफर किया जा सकता है जिसे स्वीकार करना कांग्रेस के लिए भी काफी मुश्किल होगा।
कांग्रेस को किनारे करने में जुटे हैं क्षेत्रीय दल
वैसे क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व वाले राज्यों में कांग्रेस को हाशिए पर धकेलने का काम पहले भी होता रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में टीएमसी और उत्तर प्रदेश उपचुनाव के दौरान सपा ने कांग्रेस के साथ जैसा सलूक किया है,वह किसी के साथ छिपा नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं थीं जबकि उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कांग्रेस के सामने सिर्फ दो सीटों का ही प्रस्ताव रखा था।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पांच सीटों की डिमांड कर रही थी और आखिरकार पार्टी ने यूपी में उपचुनाव न लड़ने का बड़ा फैसला कर डाला। इसे लेकर कांग्रेस के कई नेता भी भीतर ही भीतर नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि पार्टी हाईकमान का फैसला होने के कारण कोई भी खुलकर कोई बयान देने से परहेज कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में भी बड़ा भाई मानने को तैयार नहीं
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने नेशनल कान्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया था मगर गठबंधन की जीत के बाद कांग्रेस का तजुर्बा अच्छा नहीं रहा है। शायद इसीलिए पार्टी ने मंत्रिमंडल में शामिल होना उचित नहीं समझा। महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटों पर जीत हासिल की थी मगर इसके बावजूद शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) ने कांग्रेस के साथ सख्त सौदेबाजी की है।
सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान दोनों दलों के रुख से साफ हो गया कि वे कांग्रेस को बड़ा भाई मानने के लिए तैयार नहीं है। इससे कांग्रेस के प्रति सहयोगी दलों के नजरिए का स्पष्ट संकेत मिलता है। सहयोगी दलों की ओर से कांग्रेस को पहले से ही बड़ा भाई बनने की चाहत न रखने की नसीहत दी जाती रही है।
हरियाणा चुनाव से आप को मिला बड़ा मौका
दिल्ली में आम आदमी पार्टी खुद को अकेले भाजपा से लड़ाई लड़ने में सक्षम बताती रही है। आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने हाल ही में दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी। दरअसल आप भी दिल्ली में कांग्रेस की ताकत को बखूबी जानती है। लोकसभा चुनाव के दौरान तो आप ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करते हुए तीन सीटें दे दी थीं मगर विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी कांग्रेस के साथ सीटों का बंटवारा करने की इच्छुक नहीं दिख रही है।
कांग्रेस की ओर से हरियाणा विधानसभा चुनाव में सहयोगियों की अनदेखी से सहयोगी दलों को भी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने का मौका मिल गया है। ऐसे में अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस को किनारे लगाने की तैयारी दिखने लगी है। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद इस बाबत स्पष्ट ऐलान किए जाने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए दिल्ली में मुश्किल स्थिति पैदा होने वाली है।