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Imran Pratapgarhi: कैद नहीं कर सकते शब्द! इमरान प्रतापगढ़ी की FIR पर SC की तल्ख टिप्पणी

Imran Pratapgarhi: सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है।

Newstrack          -         Network
Published on: 28 March 2025 11:39 AM IST (Updated on: 28 March 2025 12:07 PM IST)
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Imran Pratapgarhi: सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई के दौरान कांग्रेस सांसद के ऊपर दर्ज एफआईआर रद्द कर दी गई है। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर कहा कि कविता, कला और व्यंग जीवन को सार्थक बनाता है। अदालत ने यह भी कहा कि कला के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है। लोगों के विचारों का सम्मान होना चाहिए। कांग्रेस सांसद के इस मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने की।

जानकारी के लिए बता दें कि गुजरात पुलिस ने इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। यह मामला सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में हुई थी। जिसके लिए कांग्रेस सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी एफआईआर रद्द कराने को लेकर।

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

कांग्रेस संसद इमरान प्रतापगढ़ी के मामले में सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन उचित प्रतिबंध नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए अनुचित और काल्पनिक नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि कविता, नाटक, संगीत, व्यंग्य सहित कला के विभिन्न रूप मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं। लोगों को कला के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

जस्टिस एएस ओका और उज्ज्वल भुइयां ने क्या कहा

जस्टिस एएस ओका ने कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ। जब आरोप लिखित रूप में हो तो पुलिस को इसे पढ़ना चाहिए, और जब अपराध बोले गए शब्दों के आधार पर हो, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना ऐसा करना असंभव है। उन्होंने कहा कि भले ही बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करें, इसे संरक्षित करना जरूरी है और जजों को इसे सम्मानित करना चाहिए। न्यायालयों को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे रहना चाहिए।

जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा कि पुलिस अधिकारी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि अपराधों का आकलन साहसी दिमाग से किया जाना चाहिए, न कि उन लोगों के मानकों से जो हर आलोचना को व्यक्तिगत हमला मानते हैं। उन्होंने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए धारा 173(3) का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

Sonali kesarwani

Sonali kesarwani

Content Writer

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