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सपा के सिंबल पर अटकी कांग्रेस की स्ट्रैटजी, अखिलेश-राहुल की मुलाकात पर टिकी निगाहें
यूपी में सपा के कब्जे की दावेदारी के हंगामे की वजह से देश के इस सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस की समूची चुनावी रणनीति दांव पर लगी है। कांग्रेस ने यह तो तय कर लिया है कि उसका सपा के साथ गठबंधन हर हालत में होगा, लेकिन चुनाव आयोग में सपा के चुनाव चिन्ह विवाद का निपटारा होने तक कांग्रेस के रणनीतिकारों को इंतजार करना पड़ेगा।
नई दिल्ली: यूपी में सपा के कब्जे की दावेदारी के हंगामे की वजह से देश के इस सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस की समूची चुनावी रणनीति दांव पर लगी है। कांग्रेस ने यह तो तय कर लिया है कि उसका सपा के साथ गठबंधन हर हालत में होगा, लेकिन चुनाव आयोग में सपा के चुनाव चिन्ह विवाद का निपटारा होने तक कांग्रेस के रणनीतिकारों को इंतजार करना पड़ेगा।
इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सोमवार (9 जनवरी) को दो सप्ताह की विदेश यात्रा से लौटते ही उनकी यूपी के सीएम अखिलेश यादव के साथ मुलाकात पर सारी निगाहें टिकी हैं। ऐसे संकेत हैं कि इसी सप्ताह अखिलेश यादव के दिल्ली आने पर उनकी राहुल से विस्तार से बातचीत के बाद सपा-कांग्रेस गठजोड़ बनाने पर मुहर लग जाएगी।
टीम राहुल के करीबी सूत्रों का मानना है कि राज्य में 17 फीसदी अल्पसंख्यक वोटों को लामबंद करने के लिए अखिलेश यादव और कांग्रेस का समीकरण जमीनी स्तर पर मजबूती से काम करेगा, लेकिन सपा का साइकिल सिंबल अगर फ्रीज होता है तो ऐसी सूरत में अखिलेश गुट को कुछ झटका लगेगा क्योंकि इससे ऐन चुनाव के वक्त नया सिंबल आबंटित होने से उसे जनता के बीच प्रचारित करने में बहुत वक्त लग सकता है।
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सपा के दोनों खेमे भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि सिंबल विवाद से दो बड़े नुकसान होने तय हैं। एक तो ग्रामीण और कम पढ़े-लिखे मतदाताओं को मतदान बूथ में नया सिंबल याद रखना मुश्किल होगा तो दूसरी ओर सपा के दोनों गुट अगर एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे तो इससे बीजेपी और बसपा दोनों को ही सीधा लाभ होगा।
बता दें, कि कांग्रेस और अखिलेश गुट मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की खातिर ही हाथ मिलाने की आतुरता दिखा रहे हैं। टीम राहुल ने भी पूरे प्रदेश की उन सीटों का डाटा बैंक तैयार किया है जहां कांग्रेस को सपा से तालमेल की सूरत में लाभ होने की उम्मीद है। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि अखिलेश यादव के साथ सीटों के तालमेल के प्रति झुकाव का सबसे बड़ा कारण यही है कि पूरे प्रदेश के मुस्लिम समुदाय की राय यही थी कि कांग्रेस अपनी सीटों का ग्राफ बढ़ाते हुए बिहार की तर्ज पर तभी पछाड़ सकती है जब बीजेपी विरोधी वोटों को बंटने से रोका जाएगा।
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हालांकि बसपा यूपी में मजबूती से चुनाव लड़ रही है, लेकिन सपा का पारिवारिक विवाद सड़क पर आने की वजह से यूपी में बसपा ने मुस्लिम वोट बैंक पर सेंध लगाने की बड़ी रणनीति पर पिछले दो महीने से तेजी से काम करते हुए करीब एक चौथाई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
निष्पक्ष रणनीतिकारों का मानना है कि अखिलेश और राहुल गांधी के एक साथ चुनाव मैदान में उतरने और साझा चुनावी रैलियां करने से मायावती की रणनीति धाराशायी हो जाएगी क्योंकि इस गठबंधन की हवा बन गई तो फिर थोक मुस्लिम वोट बसपा की ओर जाने के बजाए अखिलेश और कांग्रेस की ओर रुख कर देंगे।
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अखिलेश ने राहुल गांधी को इस बात को भरोसे के साथ कहा है कि कांग्रेस को कम से कम सौ सीटें मिलेंगी। हालांकि कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि एक दूसरी सूची भी तैयार की गई है जिसमें 140 सीटों का खाका तैयार किया गया है। हालांकि कांग्रेस की ओर से ऐेसी करीब 50 सीटों को प्राथमिकता पर ए श्रेणी में रखा गया है। जहां उसके उम्मीदवार अखिलेश के साथ मिलकर पक्के तौर पर चुनाव जीतने की सूरत में हैं। बता दें, कि 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अपने बूते पर मैदान में उतर कर मात्र 28 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।