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Abdul Kalam Ka Yogdan: कलाम साहब की तकनीकी क्रांति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारत को दिलाया नया आयाम

Abdul Kalam Ka Vigyan Mein Yogdan: भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर,1931को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गाँव में हुआ था।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 25 Dec 2024 3:47 PM IST
Contributions of Dr. APJ Abdul Kalam
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Contributions of Dr. APJ Abdul Kalam 

Abdul Kalam Ka Yogdan: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, जिन्हें अक्सर ‘मिसाइल मैन’सके नाम से जाना जाता है, वे भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक के रूप में देश के अंतरिक्ष और रक्षा कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, एक शिक्षक, लेखक और दूरदर्शी राष्ट्रपति के रूप में उनकी स्थायी विरासत ने राष्ट्र के विकास में विशेष योगदान दिया है। वे न केवल भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में प्रसिद्ध हैं, बल्कि उन्होंने वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के लिए अपने अद्वितीय योगदान से देश को गौरवान्वित भी किया। और वो आज भी हमारे जीवन में अपने योगदान से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है |

भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर,1931को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गाँव में हुआ था। अब्दुल कलाम का जन्म एक संयुक्त मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। जिसमें 5 भाई और 5 बहनें थी। कलाम का बचपन आर्थिक अभावों में बिता। उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे ।उनके पिता जैनुलाब्दीन पढ़े - लिखे नहीं थे । लेकिन उच्च विचार वाले व्यक्ति थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसी कारण डॉ. कलाम ने पढाई के साथ - साथ परिवार की आर्थिक मदत करना शुरू कर था।


कलाम ने रामेश्वरम प्राथमिक विद्यालय और श्वार्ट्ज हायर सेकंडरी से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। जिसके बाद ने 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा साल 1955 में स्नातक होने के बाद, उन्होंने भौतिकी और वैमानिकी इंजीनियरिंग का अध्ययन किया।

डॉ. कलाम का भारतीय विज्ञानं , चिकित्सा तथा औद्योगिक क्षेत्र में योगदान-

डॉ. कलाम पायलट बनाना चाहते थे। लेकिन किन्ही कारणों की वजह से वह पायलट नहीं बन पाए। इसके बावजूद उनके वो डगमगाए नहीं और जीवन में कुछ ऊँचा करने के अपने प्रयासों को निरंतर जारी रखा। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। और अपने करियर की शुरुआत भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) से की। जहाँ उन्होंने एक छोटा होवरक्राफ्ट भी डिज़ाइन किया था । भारतीय सेना के लिए एक छोटा हेलीकॉप्टर तैयार करने के उनके प्रयास उनके तकनीकी कौशल और नवाचार के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं। उन्होंने देश की अंतरिक्ष तकनीक को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तथा ISRO में भी अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में प्रभावशाली भूमिका निभाई।


डॉ. कलाम ने भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान, एसएलवी-3 (Satellite Launch Vehicle-3) के निर्माण का नेतृत्व किया। परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने टीम का कुशलतापूर्वक मार्गदर्शन किया। यह परियोजना भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुई, क्योंकि इसके माध्यम से जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया।

इसके अतिरिक्त, डॉ. कलाम ने अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी प्राप्त किया। वर्ष 1963-1964 में उन्होंने नासा (NASA) के विभिन्न केंद्रों का दौरा किया, जिसमें गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (ग्रीनबेल्ट, मैरीलैंड), वालप्स फ्लाइट फैसिलिटी (वर्जीनिया का पूर्वी तट), लैंगली रिसर्च सेंटर (हैम्पटन, वर्जीनिया) शामिल हैं।

इन यात्राओं ने उनकी तकनीकी समझ को और गहराई दी और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। आगे चलकर, वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) से जुड़े और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में अहम भूमिका निभाई।


यह सफलता न केवल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, बल्कि भारत को स्वदेशी तकनीक विकसित करने में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर किया। डॉ. कलाम की इस उपलब्धि ने भारत को वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सम्मानित स्थान दिलाया।

डॉ. कलाम द्वारा किये गए महत्वपूर्ण कार्य

भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) को विकसित करने के लिए परियोजना का निर्देशन :- 1980 के दशक में, जब भारत ने स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) बनाने का सपना देखा था, उस समय डॉ अब्दुल कलाम ने ISRO में स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के विकास के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में 10 साल की कड़ी मेहनत की थी।


SLV-III ने जुलाई 1980 में पृथ्वी की कक्षा के निकट में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक इंजेक्ट किया, जिसके बाद भारत स्पेस क्लब का विशेष सदस्य बना।

बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास-

डॉ. कलाम ने एक और उपलब्धि तब हासिल की , जब उन्होंने देविला और वैलिएंट के निर्देशन की स्थिति का नेतृत्व किया। इसका उद्देश्य एसएलवी कार्यक्रम की सफल तकनीक के आधार पर बैलिस्टिक मिसाइलों का उत्पादन करना था।


यह तभी हुआ जब कई शक्तिशाली मिसाइलों के साथ AGNI- (मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल) और पृथ्वी (सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल) जैसी मिसाइलों का निर्माण किया गया और इसीलिए डॉ कलाम ने भारत के मिसाइल मैन का खिताब अर्जित किया।

पोखरण परमाणु परीक्षण-

यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, जब डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में भारत ने 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षण किए। उस समय वे डीआरडीओ के सीईओ थे और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्यरत थे।


इन परीक्षणों के परिणामस्वरूप भारत परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र बन गया, जो उसकी रक्षा और तकनीकी ताकत को दुनिया के सामने लाया। डॉ. कलाम के समर्पण और प्रयासों से भारत अब वैश्विक स्तर पर एक मजबूत परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित हो गया।

चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल में डॉ कलाम का योगदान-

यदि आप सोचते हैं कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का योगदान केवल इंजीनियरिंग और वैमानिकी तक सीमित था, तो यह गलत है। उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. कलाम ने हृदय रोग विशेषज्ञ सोमा राजू के साथ मिलकर बजट के अनुकूल कोरोनरी स्टेंट (जिसे कलाम-राजू स्टेंट कहा जाता है) विकसित किया। इसके अलावा, 2012 में, दोनों ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए एक टैबलेट कंप्यूटर डिजाइन किया, जिसे कलाम-राजू टैबलेट कहा जाता है। इन प्रयासों ने स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई।

हल्के लड़ाकू विमान परियोजना :- डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के पहले व्यक्ति बने जिन्होंने लड़ाकू विमान उड़ाने वाले नेतृत्व की भूमिका निभाई। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से वैमानिकी इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद, उन्होंने भारत के हल्के लड़ाकू विमान (LCA) परियोजना में गहरी भागीदारी निभाई। इस परियोजना ने भारत को स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता दिलाई। डॉ. कलाम की नेतृत्व क्षमता और तकनीकी कौशल ने इस क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाया।

डॉ. कलाम ने कड़ी मेहनत और लगन से अपने जीवन में कई उपलब्धिया हासिल की , उन्होंने न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अहम योगदान दिया बल्कि आंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को एक अलग स्थान दिलाया। और उनकी इसी योगदान के कारण आज उन्हें पुरे दुनिया में भारत के ‘ मिसाइल मैन’ के नाम से जाना जाता है।



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