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कोरोनाः लाइफ स्टाइल में चेंज की चुनौती की दस्तक, अनसुनी न करें
फिलहाल फास्ट टेस्टिंग पर भी काम चल रहा है। हाल ही में, एफडीए ने एक को मंजूरी दी जो पांच मिनट में परिणाम दे सकती है। लेकिन हमें अन्य प्रकार के परीक्षण की भी आवश्यकता है, जैसे कि सीरोलॉजी - लोगों के रक्त का परीक्षण।
विशेष प्रतिनिधि
लखनऊ। कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए दुनिया भर में हर संभव उपाए किए जा रहे हैं। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग जारी है। इस वायरस की संक्रामक शक्ति की नई जानकारी के चलते अब प्रत्येक व्यक्ति को मास्क पहनने के लिए कहा जा रहा है।
ये समय धैर्य रखने का है। लेकिन धीरज आखिर कब तक? सवाल बड़ा है और जवाब दुनिया में किसी के पास नहीं, कम से कम तब तक नहीं जब तक कि कोरोना वायरस से बचाव का टीका न आ जाये। और वह समय अभी दूर है।
क्या करें सबकी है अपनी अपनी राय
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेन्सिंग हमेशा रह भी नहीं सकती सो सही समय क्या होगा और कैसे हालात से निपटा जाएगा, इस पर वैज्ञानिक, डाक्टर और एक्स्पर्ट्स की राय तरह तरह की हैं।
- - जब तक एक भी संक्रमण बचा है तब तक लॉकडाउन रखा जाए। लेकिन इसके लिए व्यापक टेस्टिंग करनी होगी।
- - संक्रमित हो कर जो लोग ठीक हो चुके हैं उनको ‘आज़ाद’ कर दिया जाए क्योंकि उनमें इम्यूनिटी बन चुकी होगी।
- - जिन इलाकों में कोई संक्रमित नहीं हैं उनकी घेराबंदी करके वहाँ सामान्य स्थिति बहाल कर दी जाये।
- - लॉकडाउन हटा कर सोशल डिस्टेनिंग, मास्किंग, और ‘आरोग्य सेतु’ जैसे एप में ग्रीन कोड सबके लिए अनिवार्य कर दिया जाये। चीन में यही किया जा रहा है।
लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग के बीच का रास्ता
दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग के प्रभाव दिखने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं। अभी, जहां लोगों के बीच संक्रमण हैं, उनके बीज सोशल डिस्टेन्सिंग के आदेशों के प्रभावी होने से बहुत पहले बो दिए गए थे। इसके अलावा जब कोई व्यक्ति संक्रमित होता है और जब उसमें लक्षण दिखते हैं, तो इसमें 10 दिन या उससे अधिक समय लग सकता है। इस अवधि के दौरान वे वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं।
सोशल डिस्टेन्सिंग और लॉकडाउन पूर्णतया एयरटाइट भी नहीं हो सकते। इसलिए ये संक्रमण अभी भी कुछ अन्य लोगों को अवश्य प्रभावित करेगा। इसके अलावा अभी जो मामले सामने आए हैं, उनमें अस्पतालों पर बोझ बढ़ना लाजिमी है। सोशल डिस्टेन्सिंग जैसे सामाजिक प्रतिबंधों को उठाने लायक सुरक्षित वातावरण बनने में महीनों तक का समय लग सकता है। और प्रतिबंध उठना इस बात पर भी निर्भर करेगा की जहां आप रहते हैं वहाँ वायरस का प्रसार कितना है।
सोशल डिस्टेन्सिंग इसलिए जरूरी है इससे बीमारी का प्रसार मैनेजेबल स्तर तक रहता है। जब ऐसा होता है तो एक अधिक स्थायी रणनीति के लिए आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन इस दौरान सावधान रहने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर हांगकांग को देखें जहां एक महीने के सख्त कंट्रोल के बाद संक्रमण के केस फिर से बढ़ रहे हैं। ऐसा शायद विदेश से लौटने वाले निवासियों के कारण हो रहा है।
चूंकि मुमकिन भी नहीं, हमेशा की बंदी
स्थाई सोशल डिस्टेंसिंग इस प्रकोप को खत्म करने का एकमात्र तरीका नहीं है। बस एक बैलेंस पाया जा सकता है जिसमें सोशल डिस्टेन्सिंग को एक व्यापक और दीर्घकालीन योजना से रिप्लेस करना होगा।
महामारी एक्स्पर्ट्स का कहना है कि सोशल डिस्टेन्सिंग को सुरक्षित ढंग से खत्म करना और कोविड-19 के प्रसार से लड़ाई जारी रखान आसान नहीं है। इसके लिए जबर्दस्त, समन्वय और अधिक बलिदान की भारी आवश्यकता होगी। यह एक प्रकार का जुआ होगा। लेकिन इसके लिए अपनाई जाने वाली रणनीति कोई नई नहीं बल्कि महामारी विज्ञान की किताबों में बताई गई बातें हैं। उन्हें बस एक अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
अगर सोशल डिस्टेन्सिंग काम करती है तो नए संक्रमणों की संख्या घट सकती है। अभी योजनाओं को तैयार करने का समय है, ताकि जब विराम आए तो हम चीजों को दुरुस्त कर सकें।
जॉन्स हॉपकिंस सेंटर फ़ॉर हेल्थ सिक्योरिटी के प्रोफेसर केटलीन रिवर कहते हैं, "अगर हम सब पुराने ढर्रे पर वापस चले गए तो ट्रांसमिशन फिर उसी तीव्रता के साथ शुरू हो जाएगा।" इतने सारे प्रतिबंधों और बहुत सारी कठिनाइयों का अनुभव करना कठिन काम है। ऐसा लग सकता है ये सब उपाय काम नहीं कर रहे हैं लेकिन हमें यह पहचानने की जरूरत है कि हम सही चीजें कर रहे हैं। बस थोड़ा सा धैर्य रखना होगा।
नरमी से सख्ती तक
यह याद रखने योग्य है कि हम इस स्थिति में क्यों हैं। येल इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के निदेशक साद ओमर कहते हैं कि तथ्य यह है कि हमने परीक्षण में देरी करके बहुत समय बर्बाद किया है। परीक्षण से दो फायदे होते हैं - एक उन लोगों की पहचान जो बीमार हैं। दूसरा, निगरानी, ये देखने के लिए कि वायरस कहाँ छिपा हो सकता है। इन दोनों चीजों में तमाम देश मात खा रहे हैं। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के जेरमी कोंडाइंड कहते हैं कि बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए समाज को बंद करना कोई उपाय नहीं है। उपाय है, व्यापक परीक्षण और संपर्क ट्रेसिंग।
मिनटों में टेस्टिंग रिज़ल्ट जरूरी
महामारी विज्ञानी सस्किया पोपेस्कु कहते हैं कि सिर्फ टेस्टिंग ही नहीं बल्कि मिनटों में रिज़ल्ट बताने वाली टेस्टिंग चाहिए। यदि हम तेजी से निदान करते हैं तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि संक्रमित लोग घर जाएं और खुद को अलग कर लें। फिलहाल फास्ट टेस्टिंग पर भी काम चल रहा है। हाल ही में, एफडीए ने एक को मंजूरी दी जो पांच मिनट में परिणाम दे सकती है। लेकिन हमें अन्य प्रकार के परीक्षण की भी आवश्यकता है, जैसे कि सीरोलॉजी - लोगों के रक्त का परीक्षण।
इस तरह यह पता लगा सकते हैं कि किसको पहले बीमारी हो चुकी है और उसमें इम्यूनिटी बन गई है। ऐसे लोग समाज में वापस आ सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों को अभी यह पता नहीं है किसी भी व्यक्ति में इम्यूनिटी किस तरह देखी जा सकती है। वैसे, खसरे जैसी अत्यधिक संक्रामक बीमारी को इसी अप्रोच से कंट्रोल किया गया था। दक्षिण कोरिया में ट्रेसिंग का काम प्रौद्योगिकी द्वारा किया गया था। यही काम अब भारत में आरोग्य सेतु से करने की कोशिश है।