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आई बड़ी अड़चनः महामारी से लड़ना ही होगा हमें, वैक्सीन तो अभी भूल जाएं

टीके के विकास में आमतौर पर जानवरों पर परीक्षण सहित कई चरण होते हैं इसके बाद चरण 1, चरण 2 और मनुष्यों में चरण 3 का अध्ययन किया जाता है। इनमें से किसी भी चरण को छोड़ देने या छोटा करने से संभावित अप्रभावी या खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं।

Newstrack
Published on: 6 July 2020 6:55 PM IST
आई बड़ी अड़चनः महामारी से लड़ना ही होगा हमें, वैक्सीन तो अभी भूल जाएं
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नई दिल्ली। 15 अगस्त को भारत की पूर्णतः स्वदेशी वैक्सीन प्रयोग के लिए लांच करने के एलान पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कहा है कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन किया जाएगा। संस्थान ने अब 15 अगस्त की समय सीमा का कोई जिक्र नहीं किया है।

दरअसल पिछले हफ्ते, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक पत्र में दावा किया गया था कि भारत में 15 अगस्त तक सार्वजनिक उपयोग के लिए COVID-19 वैक्सीन तैयार हो जाएगी। पत्र, ICMR के महानिदेशक बलराम भार्गव ने 12 अस्पतालों को लिखा था।

इतना ही नहीं भार्गव ने अस्पतालों को 7 जुलाई तक वैक्सीन के मानव परीक्षणों के लिए प्रतिभागियों की भर्ती शुरू करने को कहा था। इस पर वैक्सीन के परीक्षणों से जुड़े विशेषज्ञों ने एतराज जताया था।

उनका कहना था कि 7 जुलाई और 15 अगस्त दोनों समय सीमा हास्यास्पद थीं। क्योंकि वैक्सीन का केवल जानवरों पर परीक्षण किया गया था। अधिकांश विशेषज्ञ टीका विकास कार्यक्रम में तेजी लाने की जरूरत पर सहमत हैं। वे कहते हैं कि समस्या शॉर्टकट को लेकर है।

ये हैं दिक्कतें

ICMR की 15 अगस्त की लॉन्च तिथि और पत्र के संबंध में उनका कहना था कि इससे लगता है कि एजेंसी केवल विकास के चरणों को तेजी से आगे बढ़ाना नहीं चाहती है, इससे वैक्सीन के डेवलपमेंट के महत्वपूर्ण स्टेजेज को छोड़ने का का संकेत भी मिलता है।

वैज्ञानिकों को इस पर एतराज है उनका कहना है “पत्र का यह शब्दांकन बिलकुल गलत है। यह उन सिस्टम्स को ब्रेक करेगा जिन्हें आपने बनाने में बहुत मेहनत की है। आपको तेजी लाने की आवश्यकता है, लेकिन आप निश्चित रूप से लोगों पर परीक्षण करने से रोक नहीं सकते हैं।

भारत के पहले स्वदेशी रोटावायरस वैक्सीन को विकसित करने में शामिल वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक चिकित्सा के प्रोफेसर जैकब जॉन का भी कहना है कि टीके के विकास में आमतौर पर जानवरों पर परीक्षण सहित कई चरण होते हैं।

इसके बाद चरण 1, चरण 2 और मनुष्यों में चरण 3 का अध्ययन किया जाता है। इनमें से किसी भी चरण को छोड़ देने या छोटा करने से संभावित अप्रभावी या खतरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं।



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