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Anganwadi Good News: कोर्ट ने की लाखों आंगनबाड़ियों व सहायिकाओं के मन की बात, अब क्या करेंगी सरकारें
Anganwadi Good News: आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां लंबे समय से स्थाई कर्मचारी बनाने की मांग कर रही हैं इस सम्बंध में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग कर चुकी हैं।
Anganwadi Good News: गुजरात हाई कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार से आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं को स्थाई सरकारी के रूप में मान्यता देने को कहा गया है। इस फैसले का देश भर में काम कर रही लाखों आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के हितों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं के साथ भेदभावपूर्ण विसंगति की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्हें सरकारी कर्मचारी की भांति सम्मान देने को कहा है। वर्तमान समय में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और सहायिकाओं की स्थिति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी बदतर है। गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस निखिल एस करील की पीठ ने राज्य और केंद्र सरकारों को एक नीति तैयार कर आंगनबाड़ी और सहायिकाओं के पदों के समायोजन करने और नियमितीकरण का लाभ देने को कहा है।
प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां लंबे समय से स्थाई कर्मचारी बनाने की मांग कर रही हैं इस सम्बंध में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग कर चुकी हैं। जिसमें आंगनवाड़ी को पेंशन दिलाये जाने की मांग भी शामिल है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी आंगनबाड़ी केंद्रों के सुदृढ़ीकरण के लिए लगातार काम कर रही हैं। गुजरात उच्च न्यायालय ने 1983 और 2010 के बीच केंद्र की एकीकृत बाल विकास सेवा (आइसीडीएस) योजना के तहत नियुक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व आंगनबाड़ी सहायिकाओं द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना ये बड़ा फैसला सुनाया है। आइडीसीएस योजना में छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए आंगनबाड़ी केंद्र बनाने की परिकल्पना की गई थी।
दिन में छह घंटे से अधिक काम
लम्बे समय से दिन में छह घंटे से अधिक काम करने के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं को क्रमशः 10 हजार रुपये और पांच हजार रुपये के मासिक मानदेय के रूप में मामूली राशि मिलती है। उन्होंने अपने वाजिब अधिकार के लिए अदालत से निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें एक नियमित प्रक्रिया के माध्यम से भर्ती किया गया था, लेकिन उन्हें एक योजना के तहत काम करने वाला माना गया, न कि सरकारी कर्मचारी। अदालत ने मासिक मानदेय की समीक्षा के आधार पर माना कि राज्य सरकार सिविल पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों की तुलना में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं से भेदभाव कर रही है।
इतनी मिलती है सैलरी
अगर विभिन्न राज्यों में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं की स्थिति का अवलोकन करें तो उड़ीसा में 12 हजार रुपये प्रति माह, हरियाणा में 10 साल तक के अनुभव वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मिनी-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 14,750 रुपये प्रति महीना मिलता है. वहीं, आंगनबाड़ी सहायिकाओं को 7,900 रुपये प्रति महीना मिलता है। मध्य प्रदेश में 14 हजार रुपये मानदेय मिलता है। छत्तीसगढ़ में दस हजार रुपये. महाराष्ट्र में दस हजार एक सौ रुपये, अंडमान में 12 हजार रुपये मानदेय, पांडिचेरी में 19 हजार रुपये व सहायिकाओं को 13 हजार रुपये मानदेय, उत्तर प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को छह हजार से आठ हजार रुपये मिलता है।
स्थिति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी खराब
हिमाचल प्रदेश में 9500 रुपये। बिहार में आंगनबाड़ी सेविका को 7,000 रुपये प्रति महीना और आंगनबाड़ी सहायिका को 4,000 रुपये प्रति महीना मिलता है। तेलंगाना में 13650 मानदेय, आंध्र प्रदेश 11500 रुपये मानदेय, तमिलनाडु 13 हजार रुपये मानदेय, केरल में 14 हजार रुपये मानदेय, राजस्थान में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 7,000 रुपये प्रति महीना, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 5,300 रुपये प्रति महीना, और आंगनबाड़ी सहायिकाओं को 4,000 रुपये प्रति महीना मिलता है। इससे यह साफ होता है कि राज्यों में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं की स्थिति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी खराब है। ऐसे में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अगर केंद्र व राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती हैं तो आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के दिन बहुर सकते हैं।