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गुस्ताखी माफ! लेकिन आतंकियों से अधिक बेरहम हत्यारे हैं CPI(M) वाले
नई दिल्ली : देश का सबसे साक्षर राज्य केरल बीते कुछ वर्षो में गुस्से में उबल रहा है और इसकी वजह है दो विपरीत विचारधारा वाले दलों के बीच खूनी खेल। केरल की राजनीति के विश्लेषक एवं सामाजिक कार्यकर्ता पी.के.डी. नांबियार का मानना है कि केरल में हो रही हिंसा कोई नई नहीं है। राज्य में हिंसा का यह सिलसिला 60 वर्ष पुराना है और हर बार हिंसा के केंद्र में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ही होती है।
वह कहते हैं कि माकपा की शुरुआत से ही यह नीति रही है कि उसकी जहां-जहां सरकार रही है, उसने पार्टी से अलग विचारधारा की पार्टी को बर्दाश्त नहीं किया है। यही वजह है कि राज्य में बीते कई दशकों से माकपा की भाजपा-आरएसएस या कांग्रेस के साथ हिंसक वारदातें बढ़ी हैं।
केरल की राजनीति की रूह को सही से समझने वाले नांबियार ने कहा, "माकपा की इस हिंसक नीति की दो सबसे अहम बात है कि वह इस वर्चस्व की लड़ाई में बड़ी निर्दयता के साथ हत्या करने से गुरेज नहीं करती। यहां कश्मीर में आतंकवादियों की हिंसक वारदातों से कहीं अधिक निर्मम हत्याएं होती हैं, जो उनकी बदला लेने की मानसिकता दर्शाती है।"
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केरल में बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में वाममोर्चे के तहत माकपा की सरकार बनने के बाद स्थिति में क्या बदलाव आया है? यह पूछे जाने पर वह कहते हैं, "बीते कुछ सालों में हिंसा कम हुई थी, लेकिन माकपा सरकार के राज्य में सत्ता में लौटने के बाद हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। बीते डेढ़ वर्षो में 20 से 25 लोग मारे गए हैं, जिनमें से ज्यादातर भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ता हैं। कुछ संख्या कांग्रेसियों की भी है और ऐसा नहीं है कि माकपा के कार्यकर्ता नहीं मारे जाते, कुछ संख्या उनकी भी है।"
वह आगे कहते हैं, "सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य में माकपा के इन तथाकथित गुंडों को पूरी सुरक्षा भी दी जाती है। पार्टी इन अपराधियों की पूरी देखरेख करती है। इन्हें जेल में भी ऐशोआराम के बीच रखा जाता है और कुछ दिन बाद छोड़ दिया जाता है।"
वह कहते हैं कि इन सबके बीच अच्छी बात यह है कि इस हिंसा एवं राजनीतिक संकट को राष्ट्रीय मीडिया ने कवर करना शुरू कर दिया है, जो पहले कभी देखने को नहीं मिला था। माकपा के लोग अपनी विचारधारा से अलग लोगों को अपना कट्टर दुश्मन मानते हैं। उन्हें खत्म करना ही उनका सिद्धांत है।
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नांबियार कहते हैं कि पहले ये हिंसा केरल के कन्नूर तक ही सीमित थी, लेकिन अब तिरुवनंतपुरम तक फैल गई है, यहां भाजपा के कार्यालय पर हमला हुआ। आज वहां धारा 144 लागू है। वह सवालिया लहजे में कहते हैं कि यह देश के सबसे साक्षर राज्य का हाल है।
यह पूछने पर कि क्या केरल के मुस्लिम युवाओं में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) को लेकर बढ़ रहा रुझान भी इसकी एक वजह हो सकता है? इसके जवाब में वह कहते हैं, "यह बिल्कुल अलग मुद्दा है। जो आईएस से प्रभावित हैं, वे जा भी रहे हैं और गए भी हैं, लेकिन यह मुद्दा पूरी तरह से राजनीति से जुड़ा हुआ है।"
केरल के स्थानीय लोगों में इन हिंसक झड़पों के बारे में बनी राय के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, राज्य के लोग भी डरे हुए हैं। कोई इस हिंसा के खिलाफ कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, क्योंकि उन्हें पता है कि इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी। केरल के कन्नूर में पार्टी विलेज होते हैं। यानी एक गांव में एक ही तरह की विचारधारा वाले लोग रहते हैं, किसी अन्य विचारधारा के लोग वहां रहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
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वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि केरल की सार्वजनिक कानून-व्यवस्था दुरुस्त नहीं है, बिल्कुल दुरुस्त है लेकिन हिंसापूर्ण संघर्ष दो पार्टियों के बीच है। एक वामपंथी तो दूसरे दक्षिणपंथी। वामपंथियों के लिए जहां धर्म कोई मायने नहीं रखता, वहीं दक्षिणपंथियों के लिए धर्म ही सबकुछ है। उन्हें लगता है कि धर्म को पकड़े रहने से सत्ता की चाबी भी मिल जाएगी। इसलिए दो विपरीत विचारधाराओं के बीच टकराहट तो होना ही है।
नांबियार कहते हैं कि इन हत्याओं में बड़े नेता भी शामिल हैं। इन अपराधों में शामिल लोग जब जेल से बाहर आते हैं तो उनका हीरो की तरह स्वागत-सत्कार होता है। उहें अच्छी नौकरियां तक दी जाती हैं।
यह पूछने पर कि क्या वाकई केरल में भाजपा की स्थिति मजबूत हो रही है, जिस वजह से माकपा बौखलाई हुई है? इसके जवाब में वह कहते हैं, भाजपा केरल में मजबूत है और यह केवल अभी से नहीं है, बल्कि वह 50 साल पहले भी मजबूत रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत 16 फीसदी रहा है। केरल में माकपा का वोट बैंक इरवा नामक ओबीसी जाति रही है। यह केरल में हिंदुओं का सबसे बड़ा समुदाय है, जिसका रुझान तेजी से भाजपा की ओर बढ़ा है और यह बात माकपा को हजम नहीं हो रही है।
इस समस्या के समाधान के बारे में पूछने पर नांबियार कहते हैं, इसका समाधान यही है कि जब तक माकपा खुद इस खून-खराबे को बंद करना नहीं चाहेगी, कुछ नहीं होगा। उम्मीद है कि मीडिया इस मुद्दे को उछालता रहेगा।