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कब अंदरूनी संकट से बाहर निकलेगी बिहार कांग्रेस?

raghvendra
Published on: 8 Feb 2019 8:41 AM GMT
कब अंदरूनी संकट से बाहर निकलेगी बिहार कांग्रेस?
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: महागठबंधन की एकता के भले जो दावे किए जा रहे हों, मगर हकीकत यही है कि बिहार में कांग्रेस के अंदर ही अब तक मजबूत एका की स्थिति बनती नहीं दिख रही है। गांधी मैदान में महागठबंधन के नेताओं की उपस्थिति के बीच मूलत: कांग्रेस की रैली को लेकर जो तैयारियां थीं और जो भीड़ जुटी, उससे यही सामने आया। रैली में जुटी भीड़ को लेकर बिहार कांग्रेस के अंदर लगाता मंथन चल रहा है। मंथन की वजह यह भी है कि गांधी मैदान में सिर्फ एक नेता की सक्रियता झलक रही थी और उनकी बुलाई भीड़ ही सामने दिख रही थी।

सदाकत आश्रम ही नहीं, बिहार कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं के घरों में भी फिलहाल इसी रैली और इसमें जुटी भीड़ को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। कांग्रेस के एक बड़े और पुराने नेता का कहना है कि रैली के दौरान ऐसा लग रहा था कि यह किसी व्यक्ति विशेष की ओर से बुलाई रैली है न कि कांग्रेस के अह्वान पर पूरे बिहार के लोगों का जुटान।

बिहार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) ने तो गांधी मैदान की भीड़ को बहुत कम आंका ही, खुद कांग्रेस भी यह स्वीकार नहीं कर पा रही की बिहार में उसके जनाधार की तस्वीर यह भीड़ दिखा सकी। भीड़ के गणित पर ही अब कांग्रेस के अंदर अलग-अलग गुट की बात तेजी से उभर रही है। दरअसल, कांग्रेस के कोटे से राज्यसभा तक पहुंचे अखिलेश सिंह को लेकर यह सारा बवाल है। कहा जा रहा है कि रैली का पूरा सिस्टम बिहार कांग्रेस के नहीं, बल्कि अखिलेश सिंह के हाथ में था। अखिलेश ने राष्ट्रीय जनता दल के फार्मूले के तहत यह भीड़ जुटाई थी।

अखिलेश ने ही बाहुबली विधायक अनंत सिंह को मुंगेर से कांग्रेस का टिकट देने की पहल की थी। कहा यह भी जा रहा है कि अखिलेश के आश्वासन के कारण ही महागठबंधन के प्रमुख दल राजद के नहीं चाहते हुए भी बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने रैली में लंबी-चौड़ी व्यवस्था की थी। अनंत सिंह रैली के मंच पर तो नहीं आए, लेकिन पर्दे के पीछे से उन्होंने कई तरह का सपोर्ट किया। रैली में आए लोगों के खाने-पीने की व्यवस्था उनकी ओर से की गई थी। भीड़ दिखाने के लिए अनंत सिंह के इशारे पर ढेरों गाडिय़ां आईं। यह अलग बात है कि कांग्रेस और राजद ने इस रैली में अनंत सिंह के क्षेत्र से बहुत भीड़ नहीं आने का दावा करते हुए यह साबित करने का प्रयास जारी रखा है कि रैली में अनंत का कोई रोल नहीं था।

अनंत सिंह को लेकर कांग्रेस में अखिलेश सिंह को भी भला बुरा करने वाले कम नहीं हैं। खुद बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा अनंत सिंह के दावे को लेकर साफ कर चुके हैं कि कांग्रेस ने अभी टिकट का निर्णय नहीं लिया है तो उम्मीदवार होने का दावा अपने आप में बेकार है। लंबे अरसे तक राजद के नेता रहे अखिलेश सिंह के कांग्रेस में जाने के बाद से यह बात लगातार कही जाती रही है कि बिहार कांग्रेस में राजद की ‘बी’ टीम ज्यादा प्रभावी है। पुराने कांग्रेसी यह मान रहे हैं कि पार्टी में अखिलेश की ज्यादा चल रही है।

अखिलेश समर्थक नेता कहते हैं कि उनके नेता को कमजोर करने के लिए पुराने कांग्रेसियों ने भीड़ जुटाने में उत्साह नहीं दिखाया। इन नेताओं का मानना है कि कांग्रेस आलाकमान को पता था कि रैली अखिलेश सिंह के समन्वय से हो रही थी। अगर रैली में भारी भीड़ उमड़ती तो अखिलेश का कद बढ़ जाता। कांग्रेस के नेताओं ने पटना समेत पूरे बिहार में जिस तरह से होर्डिंग, बोर्ड और बैनर लगाए थे, उससे ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस अपने पुराने दौर को वापस लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। हकीकत यह है कि पार्टी के स्तर पर और कैडर तक यह संदेश साफ था कि रैली मूलत: अखिलेश सिंह के प्रयासों को दिखाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं जता रहा कि कांग्रेस की यह रैली बिहार में उसके जनाधार को दिखाने में नाकाम रही।

अब बिहार कांग्रेस के तमाम बड़े नेता आलाकमान से इस बात को शेयर करना चाहते हैं कि महागठबंधन की एकता से पहले बिहार में पार्टी के अंदरूनी संकट को खत्म करने के होमवर्क पर सही तरीके से काम किया जाए। रैली के पहले और बाद में भी कांग्रेस के मुख्य कार्यक्रमों में अखिलेश संजय की सक्रियता किसी अन्य नेता से कमतर नहीं है। पिछले दिनों बिहार में आम आदमी पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को कांग्रेस पार्टी में शामिल करने के दौरान भी अखिलेश सिंह की तस्वीर ज्यादा उभरकर दिखी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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