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SC ने देशद्रोह की परिभाषा बताई, कहा- सरकार की आलोचना करना गुनाह नहीं
नई दिल्लीः साल 1962 में देशद्रोह की व्याख्या करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फिर इसकी परिभाषा बताई। अदालत ने कहा कि सरकार की आलोचना करना कोई गुनाह नहीं है। ऐसा करने वाले पर देशद्रोह या मानहानि का मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जा सकता। इस बारे में एक याचिका एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से दाखिल की गई थी।
याचिका में क्या कहा गया था?
कॉमन कॉज ने अपनी याचिका में कहा था कि देशद्रोह एक गंभीर अपराध होता है। विरोध का गला घोंटने के लिए इस कानून का लगातार और खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है। एनजीओ ने याचिका में मांग की थी कि सभी राज्यों के डीजीपी को निर्देश दिया जाए कि देशद्रोह का केस दर्ज करने से पहले रिपोर्ट में वे बताएं कि इससे हिंसा हुई या आरोपी का गड़बड़ी फैलाने का इरादा था। ऐसा न होने पर केस वापस लेने का निर्देश दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने कहा कि आईपीसी की धारा 124 (ए) की हमें व्याख्या नहीं करनी है। साल 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार के मामले में संविधान पीठ ने इस बारे में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने एनजीओ से ये भी कहा कि देशद्रोह कानून का किसी मामले में दुरुपयोग हुआ है तो उसका उल्लेख कर वह अलग अर्जी दे सकता है। फिलहाल अदालत इस बारे में किसी को कोई आदेश नहीं देगी।