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चीन को दलाई लामा का जवाब, कहा- कोई मुझे राक्षस मानता है तो मानता रहे
नई दिल्ली: दलाई लामा के मुद्दे पर चीन और भारत में तनातनी बरकरार है। एक तरफ जहां भारत ने बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे को राजनीतिक रंग न देने दिए जाने की बात कही है, वहीं चीन ने भारत पर जमकर निशाना साधा है। लेकिन इस सबके बीच दलाई लामा ने कहा, कि 'अगर चीन उन्हें 'राक्षस' समझता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।'
अरुणाचल के बोमडिला में दलाई लामा ने बुधवार (5 अप्रैल) को पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने भारत सरकार को शुक्रिया कहा। साथ ही उन्होंने कहा, कि 'चीन में कई लोग भारत को प्रेम करते हैं लेकिन कई राजनीतिज्ञ संकीर्ण सोच के हैं। वे मुझे दुष्ट के रूप में पेश करने की हरसंभव कोशिश करते हैं।' बौद्ध धर्मगुरु ने खुद को भारत सरकार का सबसे पुराना अतिथि करार दिया।
चीन क्यों कर रहा है विरोध?
गौरतलब है कि तिब्बत से निर्वासित बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा बीते चार दशकों से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं। वहीं, चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग को अपना हिस्सा बताता रहा है। इस मुद्दे पर भारत के साथ लंबे समय से चीन का तनाव चल रहा है। इसीलिए चीन दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा का लगातार विरोध करता आ रहा है।
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चीन की टिप्पणी पर ये प्रतिक्रिया दी दलाई लामा ने
मीडिया से बात करते हुए दलाई लामा ने पुरानी यादें ताजा की। बताया, कि काफी सालों पहले वह इटली दौरे पर गए थे। वहां कुछ मीडियाकर्मियों ने उन्हें बताया कि कुछ चीनी अफसरों ने उन्हें राक्षस कहा है। दलाई लामा ने बताया कि जब उनसे प्रतिक्रिया मांगी गई थी तो उन्होंने यही कहा था कि वह एक ऐसे राक्षस हैं, जिसकी सींग भी है।
चीन बौद्ध अनुयायियों का देश है
चीन को संदेश देने पर बौद्ध धर्मगुरु ने बताया कि 'चीन ऐतिहासिक तौर पर बौद्ध देश रहा है। वहां एक बहुत बड़ी आबादी बौद्ध धर्म के अनुयायियों की है।' दलाई ने साफ किया कि वह चीन से आजादी नहीं मांग रहे, बल्कि चीन सरकार से अर्थपूर्ण भूमिका चाहते हैं। दलाई लामा ने यह भी कहा कि भारत ने कभी भी उनका इस्तेमाल नहीं किया।
भारत, चीन को परेशान करना चाहता है
इससे पहले चीन की सरकारी मीडिया ने भारत पर उसे परेशान करने के आरोप लगाए थे। चीनी मीडिया ने कहा था कि भारत, बीजिंग को परेशान करने के लिए दलाई लामा के तवांग दौरे का इस्तेमाल कर रहा है। नई दिल्ली को तिब्बत से संबंधित अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का पालन करना चाहिए।