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दावोस में मोदी के भाषण को मिली प्रशंसा, विदेशी निवेश लाने की चुनौती

raghvendra
Published on: 27 Jan 2018 10:07 AM GMT
दावोस में मोदी के भाषण को मिली प्रशंसा, विदेशी निवेश लाने की चुनौती
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अंशुमान तिवारी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़े मौकों को भुनाने की कला में पारंगत हैं और दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन में जोरदार भाषण देकर उन्होंने एक बार फिर अपनी इस प्रतिभा का लोहा मनवाया है। करीब 130 सदस्यीय भारी भरकम दल के साथ दावोस पहुंचे मोदी ने विश्व के सामने मौजूद तीन चुनौतियों आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और संरक्षणवाद का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी दूरियों ने इन चुनौतियों को और कठिन बना दिया है।

इस सम्मेलन में दुनिया के कई प्रमुख नेता और टॉप सीईओ मौजूद थे और सभी मोदी के भाषण के कायल हो गए। यहां तक कि भारत के साथ विवाद में उलझे चीन ने भी मोदी के भाषण की सराहना की है। वैश्विक कंपनियों को देश में निवेश के लिए तैयार करना मौजूदा समय में काफी चुनौती भरा काम है और मोदी इस चुनौती से जूझने की कोशिश में लगे हैं।

मोदी की कामयाबी तभी मानी जाएगी जब देश में विदेशी निवेश में तेजी आने के साथ ही दूसरे देशों के बाजारों में भारत की मजबूत मौजूदगी दिखे तथा आर्थिक विकास की रफ्तार में और तेजी आए। दुनिया आज भारत व मोदी की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। देश व मोदी के लिए यह अवसर के साथ ही असली चुनौती भी है।

२१ साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने दावोस के मंच से वैश्विक कंपनियों से भारत में निवेश करने का आह्वïन किया है। विदेशी निवेश इस समय देश की की बड़ी जरूरत भी है। पिछले ढाई साल के दौरान निवेश में ठहराव आया है और यह बड़ी चुनौती है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 की पहली तिमाही में मौजूदा मूल्य निवेश अनुपात 30.4 फीसदी था जो 2017-18 की दूसरी तिमाही में घटकर 26.4 फीसदी पर आ गया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनॉमी के आंकड़े इस बात की तसदीक करते हैं कि नई परियोजनाओं का हाल अच्छा नहीं है।

ऐसी स्थिति में निवेशक नई परियोजनाओं से दूरी बना रहे हैं। पहले से लटकी परियोजनाओं का क्या होगा, कोई नहीं जानता। ऐसे में किसी विदेशी कंपनी को निवेश के लिए तैयार करना चुनौती भरा काम है। मोदी इसी कोशिश में लगे हैं कि विदेशी निवेशकों को यह बात समझाई जाए कि भारत में पैसा लगाने पर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। वैसे आईएमएफ का अनुमान भी विदेशी निवेशकों के मन का भ्रम तोडऩे में मददगार है। आईएमएफ का कहना है कि भारत आज दुनिया की तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। इसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को कितनी तेजी से बढ़ाता है।

  • तीन चुनौतियों का किया जिक्र

मोदी ने दावोस में पहली चुनौती के रूप में जलवायु परिवर्तन का जिक्र करते हुए कहा कि आज ग्लेशियर्स पिघलते जा रहे हैं। आर्कटिक की बर्फ पिघलती जा रही है। इसी का नतीजा है कि बहुत से द्वीप डूब रहे हैं और बहुत से डूबने वाले हैं। आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए मोदी ने कहा कि इससे आज पूरी मानवता को खतरा है और पूरी दुनिया की सरकारें इस खतरे से वाकिफ हैं। आतंकवाद जितना खतरनाक है उससे कहीं ज्यादा खतरनाक गुड व बैड टेरेरिज्म को लेकर बनाया गया भेद है। इस चुनौती से निपटने के लिए पूरी दुनिया को एकजुट होना होगा।

चिंता की बात तो यह है कि ग्लोब्लाइजेशन अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता चला जा रहा है। समाज और देश ज्यादा से ज्यादा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। इस प्रकार की मनोवृत्तियां और गलत प्राथमिकताओं के दुष्परिणाम को जलवायु परिवर्तन या आतंकवाद के खतरे से कम नहीं आंका जा सकता।

मोदी ने कहा कि गांधी जी ने कहा था कि मेरे घर की खिड़कियां बंद नहीं होनी चाहिए। आज का भारत इसी विचार के साथ आगे बढ़ रहा है। समावेशी दर्शन भारत सरकार की हर योजना का आधार है। हम जिस प्रकार से भारत की अर्थव्यवस्था को सुगम बना रहे हैं उसका कोई सानी नहीं है।

इसी का उदाहरण है कि भारत से सभी तरह के काम करना बहुत आसान हो गया है। भारत में किसी एक वर्ग के विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा बल्कि हमारा मकसद सबका साथ,सबका विकास है। मोदी ने कहा कि भारतीय चिंतकों ने कहा है कि वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरी दुनिया ही परिवार है। हम सबको साझा सूत्र में जोडऩा चाहते हैं। वसुधैव कुटुंबकम की यह धारा निश्चित तौर पर दरारों और दूरियों को मिटाने के लिए और भी ज्यादा सार्थक है।

  • टॉप सीईओ के साथ बैठक

पीएम मोदी ने इस दौरान दुनिया की टॉप बिजनेस कंपनियों के चीफ एग्जिक्युटिव ऑफिसर्स (सीईओ) की राउंड टेबल मीटिंग की मेजबानी की। जिसमें 40 सीईओ और भारत के 20 सीईओ शामिल हुये। मोदी ने कहा कि भारत विकास की उस राह पर है जहां दुनिया के किसी भी देश को उसके साथ व्यापार करने में कम से कम दिक्कतें आएंगी। भारत में वैश्विक व्यापार के अवसर पेश करते हुए कहा कि भारत में वो सबकुछ मौजूद है जो उन्हें अपने व्यापार को बढ़ाने में

मददगार होगा।

  • मोदी पर राहुल का हमला

मोदी के दावोस संबोधन पर तंज कसते हुए राहुल ने कहा कि मोदी को यह भी बताना चाहिए कि देश की 73 फीसदी दौलत एक फीसद लोगों के पास ही है। मोदी के संबोधन के तत्काल बाद राहुल ने ट्वीट में कहा कि प्रिय प्रधानमंत्री, कृपया दावोस में यह बताइए कि क्यों भारत की एक फीसदी आबादी के पास ही देश की 73 फीसद दौलत है। राहुल ने ट्वीट में आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर आई एक वैश्विक संगठन की ताजा रिपोर्ट से संबंधित लेख को यह कहते हुए टैग किया है कि वे इसे पीएम के फौरी निगाह के लिए भेज रहे हैं।

  • भाजपा ने गर्व बताया

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी के भाषण को सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय करार दिया। शाह ने कई ट्वीट करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने दावोस में भारत की ताकत और उम्मीदों को दुनिया के समक्ष बिल्कुल सही तरीके से पेश किया है। उन्होंने इस बात को भी शानदार तरीके से रखा कि कैसे भारतीय संस्कृति लोगों को जोडऩे में विश्वास रखती है न कि लोगों को विभाजित करने में।

जलवायु परिवर्तन पर मोदी की टिप्पणी का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा कि यह बहुत बड़ी वैश्विक चुनौती है। मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस संबंध में न सिर्फ महत्वाकंाक्षी लक्ष्य तय किया है बल्कि उसे हासिल करने के लिए अभूतपूर्व कदम भी उठा रहा है।

  • दावोस गया था बड़ा दल

दावोस बैठक में हिस्सा लेने के लिए मोदी के साथ 130 सदस्यीय भारतीय दल में छह केंद्रीय मंत्रियों अरुण जेटली, सुरेश प्रभु, पीयूष गोयल, धमेंद्र प्रधान, एम जे अकबर और जितेंद्र सिंह के अलावा प्रमुख भारतीय कंपनियों के सीईओ भी शामिल थे। इनमें मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, राहुल बजाज, ए.चंद्रशेखरन, चंदा कोचर, उदय कोटक शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल के लिए 32 शेफ मुख्य रूप से भारतीय व्यंजन तैयार करने दावोस पहुंचे थे। शेफ अपने साथ 1,000 किलो मसाले दावोस ले गए थे।

उद्योगपति राहुल बजाज ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शानदार वक्ता हैं उनके यहां आने से हम लोग बहुत उत्साहित हैं। बजाज ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा पर निशाना साधते हुए कहा कि 21 साल पहले देवगौड़ा इस महत्वपूर्ण दौरे पर परिवार के साथ पिकनिक मनाने आए थे। ऐसा करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण फोरम होता है।

  • ग्लोबल कारोबार का अड्डा है दावोस

47 साल पहले अर्थशास्त्री क्लॉस श्वाप ने जिस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत की थी उसकी अहमियत सिर्फ स्टार पावर की वजह से नहीं है। दुनिया भर के फाइनेंसरों की आदतों का ब्यौरा देने वाली किताब ‘सुपरहब्स’ की लेखक सैंड्रा नविदी कहती हैं कि वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम शायद हमारे दौर का सबसे प्रभावी और शक्तिशाली नेटवर्क प्लेटफॉर्म है। यह फोरम राष्ट्र प्रमुखों, नीति निर्धारकों और बिजनेस प्रमुखों को लोगों की नजरों में आने के डर के बिना रूबरू मुलाकात का मौका मुहैया कराता है।

ऐसी मुलाकातों में से खास मुलाकातों को दावोस की भाषा में ‘इनफॉर्मल गैदरिंग ऑफ वल्र्ड इकॉनॉमिक लीडर्स’ कहा जाता है जिनमें सिर्फ प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर शरीक होते हैं। दूसरी मीटिंगों में ‘रिश्ते बनाने’ की कोशिश होती है। ऐसे रिश्ते जो वक्त के साथ परस्पर हित साधने वाले हों और आने वाले बरसों में इनके जरिए विलय और अधिग्रहण सौदों की नींव तैयार हो।

दावोस प्राटिगाउ जिले में वासर नदी के तट पर, स्विस आल्प्स पर्वत की प्लेसूर शृंखला और अल्बूला शृंखला के बीच मौजूद है। समंदर से 5120 फुट पर स्थित दावोस यूरोप का सबसे ऊंचा शहर कहा जाता है। ये पूर्व अल्पाइन रिजॉर्ट दो हिस्सों से मिलकर बना है-दावोस डॉर्फ (गांव) और दावोस प्लाट्ज। इसके अलावा यह स्विट्जरलैंड का सबसे बड़ा स्की रिजॉर्ट भी है। हर साल के अंत में यहां सालाना स्पेंगलर कप आइस हॉकी टूर्नामेंट आयोजन होता है। दावोस की जनसंख्या सिर्फ 11 है। हालांकि ट्रेवल डेस्टिनेशन होने की वजह से यहां 28 हजार गेस्ट बेड हैं, क्योंकि यहां अधिक मात्रा में लोग घूमने आते हैं।

दावोस यूं तो बेहद ख़ूबसूरत है,लेकिन उसे दुनिया के नक्शे पर पहचान मिली है वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम की वजह से। प्रोफेसर क्लॉज श्वॉब ने जब वल्र्ड इकॉनमिक फोरम की नींव रखी थी तो इसे यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम कहा जाता था। यह फोरम स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर का गैर-लाभकारी फाउंडेशन हुआ करता था।

हर साल जनवरी में इसकी सालाना बैठक होती थी और दुनिया भर के जाने-माने लोग यहां पहुंचते थे। शुरुआत में प्रोफेसर श्वाब इन बैठकों में इस बात पर चर्चा करते थे किस तरह यूरोपीय कंपनियां, अमेरिकी मैनेजमेंट कंपनियों की कार्यप्रणाली को टक्कर दे सकती हैं। प्रोफेसर श्वाब का विजन ‘मील के पत्थर’ तक पहुंचने के साथ-साथ बड़ा होता गया और बाद में जाकर वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम में बदल गया।

जनवरी 1974 में पहली बार इस बैठक में राजनीतिक नेता शामिल हुए थे और इसके दो साल बाद फोरम ने दुनिया की 1000 प्रमुख कंपनियों के लिए सदस्यता देने का सिस्टम शुरू किया। यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम पहला गैर-सरकारी संस्थान है जिसने चीन के इकॉनॉमिक डेवलपमेंट कमिशन के साथ साझेदारी की पहल की।

ये वही साल था जब क्षेत्रीय बैठकों को भी जगह दी गई और साल 1979 में ‘ग्लोबल कम्पीटीटिव रिपोर्ट’ छपने के साथ ही ये नॉलेज हब भी बन गया। साल 1987 में यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम वल्र्ड इकॉनॉमिक फोरम बना और विजन को बढ़ाते हुए विमर्श के मंच में तब्दील हुआ।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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