India's Deadliest Incident: सब मिथ्या है, सब माया है

India's Deadliest Incident: हमें किसी चीज पर न क्रोध आता है, न आश्चर्य होता है। हम सांसारिक चीजों से बहुत ऊपर उठ चुके हैं। क्योंकि हमें पता है : जो आया है उसे तो जाना ही होगा।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 9 July 2024 9:46 AM GMT (Updated on: 9 July 2024 1:41 PM GMT)
Indias Deadliest Incident
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India's Deadliest Incident

India's Deadliest Incident: बिहार में पुल ढहने का रिकॉर्ड बन रहा है। बाकी राज्य भी रेस में शामिल होने को आतुर हैं। पुल न सही एयरपोर्ट ही सही। कुछ नहीं तो सड़कें ढहा कर गिनती दर्ज करा लेंगे। बस नाम होना चाहिए। अभी तो बरसात और बाढ़ का मौसम शबाब पर आना बाकी है। उत्तराखंड ने पुल बहने का फीता काट दिया है, हिमाचल लम्बी रेस लगाने को तैयार बैठा है।

पुल ही क्यों? अभी तो इमारतें भी भरभराना है। इसका सिलसिला शुरू ही कहां हुआ है? अभी तो सिर्फ सूरत शहर ने आमद दर्ज कराई है।हम धीरज रखे हैं। सब कुछ होगा। हम जानते हैं कि इस चराचर जगत में सब मिथ्या है, भ्रम है, नश्वर है। कुछ भी मोह करने लायक नहीं है, जो आया है वह जाएगा। जो पुल बने हैं, जो चमचमाती सड़कें बनीं हैं, जो बिल्डिंग खड़ी की गईं हैं, उन्हें तो एक न एक दिन जाना ही है। वो कोई सूरज चांद थोड़े ही हैं जो हमेशा बने रहेंगे। वैसे अब तो उनका भी भरोसा नहीं कि कब उनका भी बल्ब फ्यूज हो जाये!बहरहाल, हम इसी चराचर फलसफे पर यकीन करने वाले लोग हैं। हमें किसी चीज पर न क्रोध आता है, न आश्चर्य होता है। हम सांसारिक चीजों से बहुत ऊपर उठ चुके हैं। कुछ भी टूटता रहे, ढहता रहे हम उदासीन भाव से देखते हैं। क्योंकि हमें पता है : जो आया है उसे तो जाना ही होगा।


महान रचनाकार अज्ञेय लिख गए हैं :

"जो पुल बनाएंगे, वे अनिवार्यत: पीछे रह जाएंगे।

जो निर्माता रहे, इतिहास में बन्दर कहलाएंगे।"

अज्ञेय का संदर्भ चाहे जो रहा हो। लेकिन हम पुल ही क्या, कुछ भी बनाने वालों को पीछे छोड़ देते हैं। हम उनका नाम तक नहीं पूछते, याद करना तो दूर की बात है।बिहार में दर्जन भर पुल इतने ही दिनों में खत्म हो गए, क्या हमने बनाने वाले का नाम पूछा? नहीं। वो तो बन्दर थे। अब कहीं और उछल कूद कर रहे होंगे। हमने क्या दिल्ली, राजकोट, जबलपुर, लखनऊ हवाई अड्डे बनाने वालों का नाम पूछा? नहीं जी, न हमने पूछा न किसी ने बताया।एयरपोर्ट की छत ढहे या बरसात में पानी नीचे आने दे, हम फोटो वीडियो देख कर फारवर्ड कर देते हैं। बनाने वाले ठेकेदार या कंपनी से हमें क्या। हमें तो बता दिया गया है कि जांच बैठा दी गई है। कुछ इंजीनियर सस्पेंड कर दिए गए हैं। इतना बता दिया, अब चुप बैठो।गुजरात के मोरबी में दो साल पहले पुल टूटा था। जो 132 लोग मारे गए उनके घरवालों को छोड़ कर किसी और को याद है उसकी? याद हो भी तो कर क्या लोगे? जिसने पुल बनाया था हो सकता है वो कम्पनी या ठेकेदार अब आपके आसपास पुल बना रहा हो।


चमचमाती वंदे भारत ट्रेन के एक कोच में छत से पानी की धार बहने का वीडियो आया। मीम बने। सरकार ने बता दिया कि कुछ खास बात नहीं,थोड़ी टपकन हो गई थी। चलिए अच्छा हुआ इतना बता दिया। बहती धार को अब हम भी टपकन कहेंगे। ये नया स्टैण्डर्ड है।50 डिग्री गर्मी झेल चुके लोग अब पानी देख कर परेशान हैं। अयोध्या में रेलवे स्टेशन के बाहर घुटनों तक भरे पानी, चंद महीनों पहले बनी सड़क में जगह जगह हो गए गड्ढे। मुंबई के शानदार अटल सेतु में दरारें और गड्ढे। दिल्ली व मुंबई में सड़कों पर झीलें।क्या क्या गिनाएं। कुछ पूछने से पहले ही हाकिमों ने तमाम फोटुओं को फेक करार दे दिया है। बचे खुचे वाकयों के बारे में जांच बिठा दी गई है। तसल्ली दे दी है कि कोई बख्शा नहीं जाएगा। हालांकि वो भी जानते हैं कि बख़्श देंगे तो हम उखाड़ भी क्या लेंगे।


टूटते पुलों, दरकती दीवारों, ढहती छतों से अवध के नामचीन नवाब आसफ़ुद्दौला से जुड़ी एक कहानी याद आती है। उस समय एक भयंकर अकाल पड़ा। लोगों को काम देने के लिए नवाब साहब ने इमामबाड़े का निर्माण शुरू कराया। दिन में मजदूर ईंटें जोड़ते थे जबकि बड़े लोग रात के अंधेरे में उसे तोड़ने का काम करते थे, ताकि उनकी इज्जत पर कोई आंच न आए। मजदूरी दोनों तरह के लोगों को मिलती थी।सवाल वाजिब है कि कहीं नवाब सरीखे हमारे मॉडर्न हाकिम उसी फार्मूले का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे? जब सब लोहा-लाट बन जाएगा तो इकॉनमी का पहिया घूमेगा कैसे? अंग्रेज़ बेवकूफ थे, जो सैकड़ों साल पहले लोहा लाट बिल्डिंग, पुल वगैरह बनाते थे। तभी तो उनका साम्राज्य ढह गया।


बिहार गरीब राज्य है। बेचारा कब से स्पेशल दर्जा, स्पेशल पैकेज मांग रहा है। गरीब गुरबे से क्या लोहे की उम्मीद करना? वो तो तिनका जोड़ जोड़ कर पुल बना दे वही गनीमत है। नीतीश कुमार खुद इंजीनियर हैं। वो सब जानते हैं। यही उनका सुशासन है। उनके राज का पुल भी पलटी मार रहा तो हैरत क्या है?ये तो भगवान का बहुत शुक्र है कि हमारे बड़े शहर जलजले से अभी तक मुहाफ़िज़ हैं। लखनऊ से लेकर हैदराबाद और मुंबई से लेकर दिल्ली नोएडा तक जितनी अट्टालिकाएं हैं उनके बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या ये किसी बड़े भूकम्प को झेल पाएंगी?


भूकम्प से इमारतें बची रहें इसके लिए कंस्ट्रक्शन के नियम कानून तो बहुत हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह पुलों और सड़कों के निर्माण के लिए हैं। यही नहीं, बरसात के पानी को जमा न होने देने के लिए जो बड़े बड़े पाइप जमीन के अंदर डाले गए थे उनके लिए भी ढेरों मानक होंगे। लेकिन क्या कहीं इन मानकों को आपने परीक्षा में पास होते देखा है? नाली से लेकर सड़क और पुल से ले कर एयरपोर्ट और नए नए रेलवे स्टेशन बनाने वाली कम्पनियों और ठेकेदारों और उनके काम को क्लीन चिट देने वाले हाकिमों तक में से कितनों को आपने जेल जाते, जुर्माना भरते देखा-सुना है?


अंग्रेजों और उनके भी पहले के राजाओं-नवाबों के ज़माने में भी अपने देश में यही मिट्टी थी। यही पत्थर थे। यही नदियां थीं। ऐसे ही इंसान थे। लेकिन तबकी बनाई गई चीजें और आज की चीजें? फर्क आया ही क्यों? कहाँ मिलावट हो गई। कैसे इंजीनियरिंग फेल हो गई।क्या हम इतने मूर्ख हैं कि ये भी नहीं जानते कि हर निर्माण में हमारा ही पैसा लगा है। उसके लिए अलग से नोट नहीं छापे जाते। सुबह से शाम तक जो टैक्स हम हर चीज पर भरते हैं उसी पैसे से सब बनता है। आपके हजार रुपए खो जाएं तो रातों की नींद हराम हो जाती है। यहां हजारों करोड़ रुपये पानी में बहे जा रहे हैं और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।सही कहा है, सब मिथ्या है माया है। इस चराचर जगत में।

Shalini Rai

Shalini Rai

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