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पुण्यतिथि स्पेशल: इंदिरा गांधी के वो तीन फैसले, जिसने बदल कर रख दिया पूरे देश को

Aditya Mishra
Published on: 31 Oct 2018 9:22 AM IST
पुण्यतिथि स्पेशल: इंदिरा गांधी के वो तीन फैसले, जिसने बदल कर रख दिया पूरे देश को
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नई दिल्ली: आज देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। इंदिरा गांधी को भारतीय राजनीति के इतिहास में विशेष योगदान के लिए जाना जाता है। उनकी गिनती देश के एक तेज तर्रार और तुरंत फैसले लेने वाले नेता के तौर पर भी होती है।

उनके कड़े फैसले लेने के लिए अंदाज ने उन्हें देश और दुनिया की सबसे ताकतवर नेताओं में लाकर खड़ा कर दिया। इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बड़े फैसले लिए लेकिन उनके तीन फैसले ऐसे थे। जिसका असर आज भी देखने को मिलता है। आइए जानते है इन कामों के बारे में।

बैंकों का राष्ट्रीयकरण : इंदिरा गांधी ने पीएम बनने के कुछ समय बाद देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे।

वे इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी। देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की शाखाएं खुल गईं।

राजा-महाराजओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति: 23 जून 1967 को ऑल इंडिया कांग्रेस ने प्रिवीपर्स की समाप्ति का प्रस्ताव पारित कर दिया। 1970 में संविधान में चौबीसवां संशोधन किया गया और लोकसभा में 332-154 वोट से पारित करवा लिया।

मान्यता समाप्ति के इस अध्यादेश को ननीभाई पालखीवाला ने सुप्रीमकोर्ट में सफलतापूर्वक चुनौती भी दी गई। इस बीच 1971 के चुनाव हो गए और इंदिरा गांधी को बड़ी कामयाबी हासिल हुई। उन्होंने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स को खत्म कर दिया।

पाकिस्तान सेना को करना पड़ा था आत्मसमर्पण: आजादी के पहले अंग्रेज बंगाल का धार्मिक विभाजन कर गए थे। हिंदू बंगालियों के लिए पश्चिम बंगाल और मुस्लिम बंगालियों के लिए पूर्वी पाकिस्तान बना दिए गए थे।

भारतीय सेना द्वारा बांगलादेश में कार्रवाई करने से पहले पाकिस्तान की हवाई सेना ने भारतीय एयर बेस पर हमले शुरू कर दिए। भारत की सेना को हमलों की भनक लग चुकी थी। हमले भारतीय वायुसेना ने निष्फल कर दिए। इसी के साथ 1971 का दूसरा भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया।

पाकिस्तान कमजोर पड़ने लगा तो संयुक्त राष्ट्रसंघ में पहुंच गया और युद्ध विराम के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की।उधर 16 दिसंबर को भारतीय सेना ढाका पहुंच गई। पाकिस्तान की फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

आपातकाल ने किया बदलाव: 1975 में रायबरेली के चुनाव में गड़बड़ी के आरोप और जेपी की ओर से संपूर्ण क्रांति के नारे के अंतर्गत समूचे विपक्ष ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इस पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया।

आपातकाल में नागरिक अधिकार रद्द हो गए और प्रेस और मीडिया पर सेंसरशिप लागू हो गई। कई विपक्षी नेता जेल भेज दिए गए। संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया।

इसका जनता ने माकूल जवाब दिया। 1977 में इमरजेंसी हटा ली गई और आम चुनाव हुए जिसमें इंदिरा गांधी की अभूतपूर्व हार हुई।

चरणसिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। चरणसिंह भी सदन में विश्वास मत हासिल करते इसके पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति से नए चुनाव करने का अनुरोध किया । 1980 के चुनावों में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत हासिल हुई और कांग्रेस सत्ता में लौटी।

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