संसद हमले की 17 वीं बरसी आज, जब खून और मांस के लोथड़े पोर्च की दीवारों से चिपक गए थे

13 दिसंबर 2001 को 5 आतंकियों ने संसद भवन के बाहर 45 मिनट तक ताबड़तोड़ फायरिंग करके पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस दिन हुए आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे।

Aditya Mishra
Published on: 13 Dec 2018 4:49 AM GMT
संसद हमले की 17 वीं बरसी आज, जब खून और मांस के लोथड़े पोर्च की दीवारों से चिपक गए थे
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नई दिल्ली: आज संसद भवन पर आतंकी हमले की 17 वी वरसी है। 13 दिसंबर 2001 को 5 आतंकियों ने संसद भवन के बाहर 45 मिनट तक ताबड़तोड़ फायरिंग करके पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस दिन हुए आतंकी हमले में संसद भवन के गार्ड, दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे। हम आपको बताने जा रहे हैं संसद पर हमले की पूरी कहानी मिनट दर मिनट:

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सुबह 11 बजकर 28 मिनट : संसद भवन परिसर में सामने से एक सफेद रंग की एम्बेसडर तेजी के साथ प्रवेश करती है। कोई कुछ समझ पाता कि तभी गाड़ी के चारों दरवाजे तेजी के साथ खुलते हैं और गाड़ी में बैठे पांच आतंकी चंद सेकेण्ड में ही गाड़ी से नीचे उतरते है और फायरिंग करने लगते है।

उन्होंने अपने हाथों में एके-47 ले रखी थी। पांचों के पीठ और कंधे पर बैग टंगे हुए थे। आतंकियों ने सबसे पहला निशाना चार सुरक्षा गार्डों को बनाया। जिन्होंने उन्हें संसद परिसर में दाखिल होने से रोकने की कोशिश की थी। उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

उस वक्त तक संसद भवन के अंदर बैठे लोगों को बाहर क्या हो रहा है इसके बारें में तनिक भी अंदाजा नहीं था। वे गोलियों की आवाज को पटाखों का शोर समझ रहे थे। तभी गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच एक धमाके की आवाज आती है। उसके बाद संसद के अंदर मौजूद लोगों को आतंकी हमले का आभास हो पाया था।

उन्होंने अपनी आखों के सामने सुरक्षाकर्मियों की खून से सनी लाश देखी थी। पल भर में तस्वीर साफ हो चुकी थी। और अब संसद भवन के अंदर चारों तरफ अफरा-तफरी और दहशत का माहौल था। जिसे जिधर जो कोना दिखाई दे रहा था वो उधर ही भाग रहा था।

उस दिन संसद का शीतकालीन सत्र था। विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित की जा चुकी थी। सदन स्थगित होते ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकल चुके थे। कई सांसद भी वहां से जा चुके थे। जबकि लालकृष्ण आडवाणी समेत 200 सांसद लोकसभा के अंदर ही मौजूद थे।

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समय- सुबह 11 बजकर 29 मिनट : उपराष्ट्रपति कृष्णकांत शर्मा के कार के काफिले में तैनात सुरक्षार्मी अब सदन से उनके बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे। और ठीक उसी पल, एक सफेद एंबेस्डर कार तेज़ी से उप राष्ट्रपति के काफिले की तरफ बढ़ती है। संसद भवन के अंदर आने वाली गाड़ियों की तय रफ्तार से इसकी रफ्तार कहीं ज्यादा तेज थी।

कोई कुछ समझ ही पाता कि कार के पीछे लोकसभा के सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव भागते नजर आए। वो लगातार कार को रुकने का इशारा कर रहे थे। जगदीश यादव को यूं बेतहाशा भागते देख उपराष्ट्रपति के सुरक्षाकर्मी एएसआई जीत राम, एएसआई नानक चंद और एएसआई श्याम सिंह भी अंबेस्डर कार को रोकने की कोशिश में उसकी तरफ झपटते हैं।

सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आता देख एंबेस्डर कार का ड्राइवर अपनी गाड़ी को गेट नंबर एक की तरफ मोड़ देता है। गेट नंबर एक के नजदीक ही उप-राष्ट्रपति की कार खड़ी थी। तेज रफ्तार और मोड़ की वजह से कार का ड्राइवर नियंत्रण खो देता है और गाड़ी सीधे उपराष्ट्रपति की कार से जा टकराती है।

अब भी गोलियों की आवाज सबसे ज्यादा गेट नंबर 11 की तरफ से ही आ रही थी। पांचों आतंकवादी अब भी एंबेसडर कार के ही आस-पास से गोलियां और ग्रेनेड बरसा रहे थे। तभी आतंकवादियों को गेट नंबर 11 की तरफ जमा देख संसद भवन के सुरक्षा कर्मी दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों के साथ गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ते हैं। अब दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो चुकी थी।

गोलीबारी से महज कुछ सौ मीटर की दूरी पर मौजूद गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भी तब तक हमले की खबर मिल चुकी थी। लिहाजा लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज समेत तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर ले जाया गया।

इसके साथ ही सदन के अंदर जाने वाले तमाम दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं और वहां सुरक्षाकर्मी अपनी-अपनी पोजीशन ले लेते हैं। उधर दूसरी तरफ सुरक्षा कर्मियों को गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ते देख पांचों आतंकवादी भी अपनी पोजीशन बदलने लगते हैं। पांच में से एक आतंवादी गोलियां चलाता हुआ अब गेट नंबर 1 की तरफ भागता है। जबकि बाकी चार गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ने की कोशिश करते हैं।

आतंकवादियों की कोशिश किसी तरह सदन के दरवाजे तक पहुंचने की थी ताकि वो सदन के अंदर घुस सकें। मगर सुरक्षा कर्मियों ने पहले ही तमाम दरवाजों के इर्द-गिर्द अपनी पोजीशन ले रखी थी। इसके अलावा आतंकवादी जिस तरह गोलियां बरसाते हुए इधऱ-उधऱ भाग रहे थे उससे साफ लग रहा था कि वे अंदर तो घुस आए हैं पर उन्हें ये पता नहीं है कि सदन के अंदर दाखिल होने के लिए दरवाजे किस तरफ हैं?

इसी अफरा-तफरी के बीच एक आतंकवादी जो गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ा था वहीं से गोलियां बरसाता हुआ सदन के अंदर जाने के लिए संसद भवन के गलियारे से होते हुए एक दरवाजे की तरफ बढ़ता है। लेकिन इससे पहले कि वो अपनी कोशिश में कामयाब होता उसे सुरक्षाबलों की गोली लग जाती है। गोली लगते ही गेट नंबर एक के करीब गलियारे में ही दरवाजे से कुछ दूर वो गिर पड़ता है।

पहला आतंकवादी गिर चुका था। पर अभी वो जिंदा था। सुरक्षाकर्मी उसे पूरी तरह से निशाने पर लेने के बावजूद उसके करीब जाने से अभी भी बच रहे थे। क्योंकि डर ये था कि कहीं वो खुद को उड़ा न ले और सुरक्षाकर्मियों का ये डर गलत भी नहीं था। क्योंकि जमीन पर गिरने के कुछ ही पल बाद जब उस आतंकवादी को लगा कि अब वो घिर चुका है तो उसने फौरन रिमोट दबा कर खुद को उड़ा लिया। उसने अपने शरीर पर बम बांध रखा था।

चार आतंकी अब भी जिंदा थे। न सिर्फ जिंदा थे बल्कि लगातार भाग-भाग कर अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। ऐसा लगता था मानो वे घंटों मुकाबला करने की तैयारी के साथ आए थे।क्योंकि उनके पास गोली, बम और ग्रेनेड का पूरा जखीरा था, जो वो अपने शरीर में छुपा कर और कंधे पर टंगे बैग में लेकर आए थे।

अब तक एनएसजी कमांडो और सेना को भी हमले की खबर दी जा चुकी थी। आतंकवादियों से निपटने में माहिर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम भी संसद भवन के लिए कूच कर चुकी थी। पर संसद भवन में लाइव ऑपरेशन अब भी जारी था।

गोलीबारी अब भी जारी थी। और फिर इसी दौरान गेट नंबर पांच से खबर आई की एक और आतंकवादी सुरक्षाकर्मी की गोलियों से ढेर हो चुका था। अब बचे तीन आतंकवादी। उन तीनों को अच्छी तरह पता था कि वो संसद भवन से ज़िंदा बच कर नहीं निकल सकते। लिहाज़ा उन्होंने भी सदन के अंदर जाने की एक आखिरी कोशिश की। वे गोलियां बरसाते हुए धीरे-धीरे गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ने लगे। मगर मुस्तैद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गेट नंबर नौ के पास ही घेर लिया।

समय- दिन के करीब 12.10 बजे : अब पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 के इर्द-गिर्द था। अभी भी फायरिंग जारी थी। अंधाधुंध गोलियां दोनों तरफ से दागी जा रही थी। आतंकवादी थोड़ी –थोड़ी देर पर सुरक्षाकर्मियों पर बम भी फेंक रहे थे। लेकिन तब तक वे चारों तरफ से घेर लिए गये थे। उनके पास भागने का कोई रास्ता नहीं बचा था। और इस तरह वे एक –एक करके सुरक्षाकर्मियों की गोलियों का निशाना बनते गये। तीनों आतंकवादी की वहां से लाशें बरामद हुई थी।

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Aditya Mishra

Aditya Mishra

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