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अदालत की अवमानना में फंसने जा रही है उत्तराखंड सरकार

seema
Published on: 15 Dec 2017 4:31 PM IST
अदालत की अवमानना में फंसने जा रही है उत्तराखंड सरकार
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आलोक अवस्थी का विश्लेषण

देहरादून। उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति जल्द होगी, जुलाई 2017 में यह बात उत्तराखंड सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में कही थी। सरकार द्वारा कहा गया था कि लोकायुक्त बिल को लेकर कुछ संशोधन किए हैं और यह बिल अगले विधानसभा सत्र के दौरान पेश किया जाएगा और उस सत्र में बिल को पास करा के लोकायुक्त की नियुक्ति कर दी जाएगी, लेकिन अभी इसमें छह महीने का वक्त लगेगा क्योंकि अगला विधानसभा सत्र छह महीने के बाद होगा। भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार की इस बात को रिकार्ड कर सुप्रीम कोर्ट ने मोहलत दे दी थी। सर्वोच्च अदालत लोकायुक्त की नियुक्ति करने का निर्देश देने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

इससे पहले की सुनवाई में कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से लोकायुक्त नियुक्त करने संबंधी अधिनियम की प्रति पेश करने के लिए कहा था। याचिका में कहा गया था कि लोकायुक्त को लेकर उत्तराखंड का अधिनियम बेहद अच्छा है और वर्ष 2011 में विधानसभा में सर्वसम्मति से इससे संबंधित विधेयक पारित हुआ था लेकिन कांग्रेस सरकार ने आते ही इस विधेयक को रद कर दिया। बाद में भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के महज दस दिन के अंदर यह विधेयक पेश कर वाह वाही लूटी। लेकिन अब संख्या बल होने के बावजूद वह हाथ पीछे खींच रही है ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सरकार की किरकिरी होनी तय है।

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उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम में क्या है

लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्री और सरकारी नौकर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री, विधायक और सेवानिवृत्त सरकारी नौकर भी इसके दायरे में हैं। इसके तहत दोषियों को उम्रकैद की सजा और संपत्ति जब्त करने का प्रावधान है। कहा जा रहा है कि लोकायुक्त विधेयक के मौजूदा स्वरूप से सत्ता पक्ष के विधायक और मंत्री डरे हुए हैं। लोकायुक्त विधेयक को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार और भाजपा संगठन दोनो असमंजस में हैं और अनिर्णय के शिकार है। अब लोकायुक्त विधेयक की बात करें तो इस मसले पर भी मौजूदा त्रिवेंद्र रावत सरकार विपक्ष के ही नहीं उसके ही पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा गढ़वाल सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी के निशाने पर रही है। विपक्षी कांग्रेस इस विधेयक के बहाने सरकार के भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस के नारे पर सवाल उठाती रही है। लेकिन हाल ही में संपन्न हुए विस सत्र के दौरान ऐसा लगता है कि कांग्रेसियों की बुिद्ध को भी पाला मार गया तभी वह ढेर सारे मौके होते हुए भी जड़वत व्यवहार कर लौट आयी।

हाल ही में संपन्न विधानसभा के गैरसैण सत्र में यह विधेयक पेश नही हो पाया। जबकि सरकार ने आते ही दस दिन के भीतर विधेयक को विधानसभा में पेश किया था तब संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने कहा था कि सरकार भ्रष्टाचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए वचनबद्ध है। उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक 2017 उतना ही मजबूत बनाया गया है जितना कि 2011 में खंडूरी सरकार द्वारा लाया गया विधेयक था। जिसे कांग्रेस सरकार ने रद कर दिया था। अभी हाल में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी दोहराया कि जनभावनाओं के अनुरूप भाजपा शासन में भ्रष्टाचार को स्थान नहीं मिलेगा। इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि हम प्रिवेंशन पर यकीन करते हैं। हमारी कोशिश है कि ऐसे काम हों जिससे लोकायुक्त की जरूरत ही ना पड़े।

उन्होंने कहा कि मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हमने उत्तराखंड में बड़े बड़े करप्शन खत्म किए हैं। भले ही अभी छोटे छोटे स्तर पर करप्शन हो रहा हो पर हमने बड़े स्तर पर नकेल कसी है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने करप्शन को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है। पहले ट्रांसफर पोस्टिंग, खनन, ठेके देने में पारदर्शिता का अभाव था और अनियमितताओं की शिकायत थी लेकिन हमने यह सब ठीक किया है। कई घोटालों की जांच की गई है।

लोकायुक्त बिल पारित न होने से गढ़वाल सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी भी आहत हैं। कई मौकों पर उनकी पीड़ा निकली भी है। उन्होंने कहा है कि विधानसभा में हमारे 57 विधायक हैं। किसी भी दिन और किसी भी समय बिल पास कराया जा सकता है। उत्तराखंड की जनता के अपार समर्थन से सरकार बनी है। अब विकास कार्यों में कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी। सरकार को काम करके दिखाना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत कष्ट है कि अभी तक बिल पास नहीं हुआ है। इस बिल को राष्ट्रपति भी स्वीकृति दे चुके हैं। यदि बिल पास हो जाता है तो विधायक व मुख्यमंत्री भी इस लोकायुक्त के दायरे में आएंगे। कहा कि उन्होंने (कांग्रेस ने) भी अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में इस बिल को लटकाए रखा, लेकिन वर्तमान सरकार के पास प्रचंड बहुमत है तब भी बिल पारित नहीं हो

रहा है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो गैरसैंण और लोकायुक्त सरकार के गले की फांस हैं। बिना राजधानी के तो पहाड़ के लोग फिलहाल गुजारा कर लेंगे लेकिन लोकायुक्त के मुद्दे पर तो सुप्रीम कोर्ट का डंडा तैयार है सरकार ने चूक की और डंडा पड़ा। और लगता है अब सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलेगा तभी सरकार की बुद्धि पर जमी बर्फ पिघलेगी क्योंकि अब सरकार को मोहलत मिलने की भी कोई संभावना नहीं दिख रही है।

गैरसैंण पर भी असमंजस की भंवर कब टूटेगी

गैरसैंण को राजधानी बनाने को लेकर असमंजस बरकरार है। मजे की बात यह है कि न तो भाजपा, न ही उसकी सरकार दोनो ही गैरसैंण संकट से उबरने का रास्ता नहीं निकाल सके हैं। गैरसैंण में सत्र आहूत कर ठिठुरते हुए दो दिन में ही सरकार को वहां से भागने पर मजबूर होना पड़ा।

गैरसैंण का मुद्दा जहां का तहां रहा। इस सत्र की उपलब्धि के नाम पर तबादला नीति में संशोधन और परिसीमन पर अपना ही फैसला पलटने का निर्णय हासिल हुआ है। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारे हों लेकिन गैरसैंण जैसी मछली वह हर सरकार के गले की फांस बना गए हैं। जबकि पहाड़ के लोग भी गैरसैंण को बतौर राजधानी स्वीकारने को तैयार नहीं हैं और राजधानी चयन के लिए बनी दीक्षित आयोग की रिपोर्ट भी उसे राजधानी के रूप में चुने जाने की संभावना खारिज कर चुकी है। फिर ऐसा क्या है जिसके चलते हर पार्टी गैरसैंण का राग आलापने को मजबूर है...जानकार इसके पीछे दोनो पार्टियों के बड़े नेताओं के स्वार्थ की मजबूरी बताते हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समेत कई पार्टियों के बड़े नेताओं ने गैरसैंण में कौडिय़ों के मोल हजारों एकड़ जमीन खरीद रखी है अब किसी को मंजूर हो या न हो। सरकार की मजबूरी है गैरसैंण का राग।

मौजूदा सरकार के सामने भी यही मजबूरी है। बहाना है कि हरीश रावत जाते जाते गैरसैंण में विधानसभा सत्र कराने का संकल्प पारित करा गए थे जिसका पालन करना प्रदेश सरकार की मजबूरी था। दूसरे भराड़ीसैंण में करोड़ों की लागत से विधान भवन और अन्य इमारतों के निर्माण की अनदेखी पर उठने वाले सवालों को लेकर भी दहशत है। सरकार की मंशा मुद्दे पर मिट्टी डालो वाली नीति की है। भाजपा के दृष्टिपत्र में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात है पर प्रदेश भाजपा सरकार इसे लेकर उधेड़बुन में है। भले ही गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वादा भाजपा ने अपने विधानसभा चुनाव के दृष्टि पत्र में किया हो लेकिन वह अब भी राजधानी को लेकर क्या करे इसे लेकर फैसलाकुन नहीं हो पाई है।

सूत्रों की मानें तो यह राजधानी का मुद्दा गैरसैंण में हुई प्रदेश कैबिनेट की बैठक में भी उठा था और भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में भी मगर इसे लेकर मंत्रियों व विधायकों की कोई स्पष्ट राय सामने नहीं आई यही वजह रही कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी बयान दिया कि राजधानी के मुद्दे पर अभी थोड़ा इंतजार कीजिए। अब माना जा रहा है कि भाजपा पहले इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर ही सहमति बनाने की कोशिश में है ताकि कोई फैसला लेकर मजबूती से आगे बढ़ा जा सके। यह बात और है कि इस बार गैरसैंण विधानसभा सत्र में विधान सभा के बाहर कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय खुलकर गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के पक्ष में बोले। अरविंद पांडेय प्रदेश के मैदानी विधानसभा क्षेत्र रुद्रपुर के विधायक हैं। अब तक माना जाता रहा है कि कांग्रेस हो या भाजपा मैदानी विधायक गैरसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी बनाने के विरोध मे रहे हैं।

भ्रष्टाचार बर्दाश्त न करने का सरकार का दावा मुखौटा: हरीश रावत

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने के उत्तराखंड की भाजपा सरकार के दावे को एक मुखौटा करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि त्रिवेन्द्र सिंह सरकार राज्य में लोकायुक्त के गठन को केन्द्र के इशारे पर जानबूझकर टाल रही है। उन्होंने एक बातचीत में कहा, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कई मंत्रियों के परिजनों के खिलाफ भूमि खरीद में भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं। किन्तु इन मामलों में वह कुछ भी कार्रवाई करते नहीं दिख रहे हैं।

रावत ने कहा कि उत्तराखंड में एनएच घोटाला सामने आया था। भाजपा सरकार ने बड़े जोरशोर से दावा किया कि इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जाएगी। कांग्रेस ने एसआईटी गठित करने की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया, राज्य सरकार ने अब एसआईटी के हाथ भी बांध दिये कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी। इससे लगता है कि भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नही करने का इनका जो दावा है वह बिल्कुल मुखौटा है। उत्तराखंड में लोकायुक्त गठन के मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ही यहां केन्द्र में लोकपाल नहीं लाने दे रहे..जब वह मुख्यमंत्री थे तो वह लोकायुक्त नहीं लाये और अब लोकपाल नहीं आ रहा। त्रिवेन्द्र सिंह जी उनसे भिन्न क्या होंगे।

उन्होंने बताया कि जब राज्य सरकार लोकायुक्त से संबंधित विधेयक विधानसभा में लायी तो विपक्ष ने उसे पूरा समर्थन दिया। किन्तु सरकार की तरफ से ही उसे प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। उन्होंने कहा कि हमने प्रवर समिति में भी पूरा सहयोग दिया। किंतु अभी तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ। रावत ने आरोप लगाया कि उत्तराखंड में लोकायुक्त बनने में जो विलंब हो रहा है वह दिल्लीवालों केन्द्र सरकार के कारण हीं है। दिल्लीवाले कह रहे हैं जब अभी हमने लोकपाल नहीं बनाया तो तुम राज्य सरकार क्यों उछल-कूद रहे हो।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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