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देहरादून में एक और हड़ताल की तैयारी, काम न करने का अच्छा बहाना 

raghvendra
Published on: 12 Jan 2018 7:40 AM GMT
देहरादून में एक और हड़ताल की तैयारी, काम न करने का अच्छा बहाना 
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देहरादून: उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से लगातार यहां के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आए दिन हड़ताल पर रहते हैं, जिसके चलते ये पर्वतीय राज्य हड़ताली प्रदेश बन गया है। प्रदेश की छवि सुधारने की कोशिश में जुटे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी हड़तालों से आजिज आ चुके हैं। प्रदेश में हड़ताल काम न करने का एक बहाना बन गई है। हड़ताली प्रदेश की छवि बन जाने से कर्मचारियों की जायज मांगों पर भी कार्रवाई नहीं हो पा रही है क्योंकि कह दिया जाता है कि यहां के कर्मचारी तो आए दिन हड़ताल ही किया करते हैं। सरकार ने भी कह दिया है कि अगर इसी तरह कर्मचारी हड़ताल करते रहे तो सूबे के विकास के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे जा सकते हैं। कर्मचारी भी यह जान चुके हैं कि यहां के मुख्यमंत्री कुर्सी बचाने में ही इतना उलझे रहते हैं कि कोई कड़ी कार्रवाई वह करेंगे ही नहीं। कहते भले रहें कि सरकार हड़ताली कर्मचारियों के दबाव में हरगिज नहीं आएगी।

ताजा मामला उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लि. (उपनल) विभाग का है। समान कार्य के लिए समान वेतन एवं वेतन वृद्धि सहित विभिन्न मांगों को लेकर उपनल कर्मचारी महासंघ दो दिन की हड़ताल पर चला गया। 24 हजार उपनल कर्मचारियों की हड़ताल से पूरा सरकारी सिस्टम गड़बड़ा गया। इससे एक तरफ जहां अस्पतालों में सबसे अधिक काम प्रभावित हुआ, वहीं कार्यालयों में सन्नाटा पसरा रहा।

राज्य में उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) के तहत करीब 24 हजार कर्मचारी आउट सोर्सिग व्यवस्था के तहत विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं। सभी उपनलकर्मी दो दिन की हड़ताल पर रहे। सभी उपनलकर्मियों ने धरना-प्रदर्शन किया। उपनलकर्मियों की इस हड़ताल का व्यापक असर दिखाई दिया। हड़ताल के चलते जहां अस्पतालों में मरीजों को मुश्किल झेलनी पड़ी, तो दूसरी ओर सचिवालय में अधिकारियों की कारें भी खड़ी रही।

मरीज हुए परेशान

उपनल कर्मियों की हड़ताल के चलते राजकीय अस्पतालों में मरीजों को काफी परेशानी हुई। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों को कई स्तर पर परेशानी झेलनी पड़ी। मरीजों को कई घंटे लाइन में भी लगना पड़ा। अस्पताल में बिलिंग काउंटर भी पूरी तरह से बंद रहे। सिर्फ अस्पताल में भर्ती और इमरजेंसी मामलों के लिए एक कर्मचारी को वहां बैठाया गया। ऐसे में ओपीडी मरीज बिलिंग न होने से जांच तक नहीं करा पाए। यही स्थिति एमएसबीवाई काउंटर की भी रही है। यहां आमतौर पर तीन उपनल कर्मी तैनात रहते हैं, लेकिन वह भी हड़ताल पर थे। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने एक स्थाई कर्मचारी को यहां बैठाया था लेकिन उसे भी काम का अनुभव नहीं था। ऐसे में एमएसबीवाई के नए मरीज भर्ती न हो सके।

उपनल कर्मियों की मांगें

समान कार्य के लिए समान वेतन तथा न्यूनतम वेतन प्रतिमाह 21 हजार रपए किया जाए। राजकीय विभागों में असृजित पदों पर कार्यरत उपनल कर्मियों को इन पदों पर सृजित किया जाए तथा चतुर्थ श्रेणी के मृत पद जिन पर उपनल कर्मी कार्यरत हैं, उन पदों को पुनर्जीवित किया जाए। प्रदेश में कार्यरत उपनल कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य के लिए नियमावली बनाई जाए। जब तक नियमावली नहीं बनाई जाती है, तब तक किसी भी कर्मचारी को न हटाने का शासनादेश निर्गत किया जाए।

उक्रांद का समर्थन

उत्तराखंड क्रांति दल ने आंदोलित उपनल कर्मचारियों के समर्थन में जिला मुख्यालय में धरना प्रदर्शन किया। उक्रांद का कहना है कि उपनल कर्मचारी अपने भविष्य की सुरक्षा तथा समान कार्य समान वेतन की मांग को लेकर कई सालों से आंदोलनरत है लेकिन राष्ट्रीय दल केवल विपक्ष में रहने के दौरान उपनल कर्मचारियों को गुमराह करके उनके वोटों का दोहन मात्र कर रहे हैं। सत्ता पाते ही राष्ट्रीय दलों के नेता उपनल कर्मचारियों के सारे दुख दर्द भूल जाते हैं। साथ ही अक्सर विपक्ष में बैठने के दौरान राष्ट्रीय दलों के नेतागण सत्तापक्ष पर उपनल कर्मचारियों के बहाने उपनल कर्मचारियों के मंच पर दहाड़ते नजर आते हैं।

उत्तराखंड क्रांति दल का साफ मानना है कि उपनल कर्मचारी कम वेतन पर भी काम करके पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने में सहायक साबित हुए हैं लेकिन सरकार द्वारा लगातार पलायन रोकने के झूठे दावे किए जाने के बावजूद उपनल कर्मचारियों को पारितोषिक देने के बजाय उनका उत्पीडऩ किया जा रहा है। उन्होंने कहा उक्रांद प्रदेश सरकार को यह चेतावनी देता है कि राज्य में उपनल कर्मचारियों के रूप में कार्य कर रहे युवाओं के रोजगार पर यदि शीघ्र उचित फैसला नहीं लिया गया, तो उत्तराखंड क्रांति दल पूरी शिद्दत के साथ उपनल कर्मचारियों की लड़ाई लड़ेगा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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