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मेडिकल विशेज्ञता ही नहीं साफ-सफाई के मामले में दिल्ली एम्स सबसे साफ

raghvendra
Published on: 29 Aug 2023 11:00 PM IST
मेडिकल विशेज्ञता ही नहीं साफ-सफाई के मामले में दिल्ली एम्स सबसे साफ
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नई दिल्ली: ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज या एम्स ने न सिर्फ मेडिकल विशेज्ञता में बल्कि साफ-सफाई के मामले में भी नाम कमाया है। दिल्ली एम्स को वर्ष २०१८-१९ के ‘कायाकल्प’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। प्रथम पुरस्कार के तहत एम्स को तीन करोड़ रुपए दिये गये हैं। सरकार ने कायाकल्प पुरस्कार अपने स्वच्छ भारत अभियान के तहत १५ मई २०१५ को शुरू किये थे। कायाकल्प पुरस्कार का मकसद ऐसे सार्वजनिक यानी सरकारी अस्पतालों को सम्मानित करना था जो अपने यहां सफाई, हाईजीन, संक्रमण कंट्रोल का उच्च स्तर रखते हैं।

कायाकल्प पुरस्कार में केंद्र सरकार के अस्पतालों की कैटेगरी में दिल्ली एम्स के बाद जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन (जेआईपीएमईआर), पुडुचेरी, को रनर अप घोषित किया गया और डेढ़ करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि दी गई है। चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च और दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल को ५०-५० लाख रुपए तथा प्रशस्ति पत्र दिया गया है।

ग्रुप बी कैटेगरी में श्री विनोबा भावे सिविल अस्पताल, सिलवासा को दो करोड़ रुपए का प्रथम पुरस्कार और एम्स भुवनेश्वर को १ करोड़ रुपए का रनर अप पुरस्कार दिया गया है। शिलांग स्थित नॉर्थ ईस्टर्न इंदिरा गांधी रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ हंड मेडिकल साइंसेज, तेजपुर स्थित लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ और एम्स भोपाल को ५०-५० लाख रुपए व प्रशस्ति पत्र दिये गये हैं।

इन पुरस्कारों के अलावा २९ जिला अस्पतालों, प्राइमरी हेल्थ सेंटरों और कम्यूनिटी हेल्थ सेंटरों को प्रथम पुरस्कार, १४ को द्वितीय तथा २ को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इस वर्ष कायाकल्प स्कीम में निजी क्षेत्र के अस्पतालों को भी शामिल किया गया है और इस कैटेगरी में ११ निजी अस्पतालों को पुरस्कार दिये गये।

कायाकल्प स्कीम में इस बार विभिन्न वर्गों में कुल ४८२० >ïअसपतालों को सम्मानित किया गया है। २०१६-१७ में इनकी संख्या २९६२ थी।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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