Delhi Liquor Scam: आखिर क्या है दिल्ली शराब नीति घोटाला, कब क्या हुआ?

Delhi Liquor Policy Scam: केजरीवाल की सरकार ने 2020 में एक नई नीति का प्रस्ताव रखा और नवंबर 2021 में इसे लागू कर दिया। नई नीति में सरकार को शराब के बिजनेस से अलग कर दिया गया था।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 22 March 2024 6:57 AM GMT
Manish Sisodia and Arvind Kejriwal
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Manish Sisodia and Arvind Kejriwal  (photo: social media )

Delhi Liquor Policy Scam: दिल्ली शराब घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मंत्री सत्येंद्रजैन गिरफ्तार हैं। इस घोटाले की परतें खुलती ही जा रही हैं। लेकिन ये मामला, ये घोटाला है क्या, किसने किसको और कैसे गलत तरीके से फायदा पहुंचाया, ये समझना जरूरी है। जानते हैं इस मामले के बारे में।

पहले क्या था

नवम्बर 2021 से पहले दिल्ली में शराब बिक्री की सरकारी व्यवस्था थी। सरकार का डिपार्टमेंट निर्माताओं से शराब खरीदता था और सरकार द्वारा संचालित दुकानों से शराब की बिक्री होती थी। यानी पूरा सरकारी कंट्रोल था। इस बिजनेस में कोई निजी खिलाड़ी नहीं था।

नई नीति आई

केजरीवाल की सरकार ने 2020 में एक नई नीति का प्रस्ताव रखा और नवंबर 2021 में इसे लागू कर दिया। नई नीति में सरकार को शराब के बिजनेस से अलग कर दिया गया था। नई नीति एक्साइज कमिश्नर की अध्यक्षता में बनी एक एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बनाई गई थी।

सरकारी कंट्रोल खत्म

नई नीति लागू होने के बाद दिल्ली सरकार शराब व्यापार से पूरी तरह बाहर हो गई, सभी सरकारी संचालित दुकानें बंद कर दीं और शराब की बिक्री विशेष रूप से निजी खिलाड़ियों को सौंप दी गई।

क्या तर्क दिया?

दिल्ली सरकार ने कहा था कि नई नीति शराब माफिया को खत्म करेगी, सरकार के लिए राजस्व बढ़ाएगी और उपभोक्ता आराम को बढ़ाएगी।

क्या बदलाव हुआ?

- पहले दिल्ली की कुल 864 शराब दुकानों में से 475 को चार सरकारी निगम चलाते थे। नई नीति के तहत 849 शराब की दुकानें खुली बोली के जरिए निजी कंपनियों को दे दी गईं।

- दिल्ली को 32 ज़ोन में विभाजित किया गया था और प्रत्येक ज़ोन में कुल 27 निजी विक्रेताओं को शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी गई थी। इसका मतलब था कि प्रत्येक नगरपालिका वार्ड में 2-3 शराब विक्रेता कार्यरत थे।

- उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए निजी शराब की दुकानों को अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर छूट देने की अनुमति दी गई। उन्हें घर पर शराब पहुंचाने और यहां तक कि अपनी दुकानें सुबह 3 बजे तक खुली रखने की अनुमति दी गई।

- सरकार ने शराब की दुकानों की शक्ल-सूरत को लेकर भी गाइडलाइन जारी की थी।

क्या नतीजा हुआ?

शराब नीति परिवर्तन के चलते सरकारी राजस्व में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 8,900 करोड़ रुपये हो गया और दिल्ली सरकार शराब व्यवसाय से पूरी तरह बाहर हो गई। नई नीति से सबसे बड़ा फायदा खुदरा विक्रेताओं को हुआ क्योंकि वहां जबर्दस्त मार्जिन मिलने लगा था।

किसने की शिकायत

- 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी ने नई नीति के क्रियान्वयन में गंभीर गड़बड़ी और शराब लाइसेंसधारकों को अनुचित लाभ पहुंचाये जाने की शिकायत की।

- 22 जुलाई 2022 को लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना ने एक्साइज नीति के क्रियान्वयन में गड़बड़ी और नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी।

- 28 जुलाई 2022 को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने नई नीति को स्थगित करते हुए 6 महीने तक पुरानी व्यवस्था में लौटने का आदेश दिया। तर्क था कि 6 महीने में गड़बड़ी सुधार दी जाएगी।

- 19 अगस्त 2022 को सीबीआई ने सिसोदिया और आप के तीन और सदस्यों के यहां छापे मारे।

क्या क्या लगे आरोप

8 जुलाई, 2022 को दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने नई शराब नीति में अनियमितताएं और प्रक्रियात्मक खामियां पाईं और उपराज्यपाल वीके सक्सेना को एक रिपोर्ट भेजी।

- रिपोर्ट में मनीष सिसोदिया पर शराब लाइसेंस रखने वालों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया गया।

-आरोप लगाया कि पंजाब विधानसभा चुनाव में आप द्वारा इस्तेमाल किए गए पैसे के बदले में लाभ दिया गया।

- रिपोर्ट में 1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1993 के व्यापार नियम (टीओबीआर), 2009 के दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम और 2010 के दिल्ली उत्पाद शुल्क नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।

- इसमें दावा किया गया है कि शराब माफिया को 144 करोड़ रुपये का फायदा भी पहुंचाया गया।

- रिपोर्ट के अनुसार, उत्पाद शुल्क विभाग के प्रभारी मंत्री मनीष सिसौदिया ने वैधानिक प्रावधानों और अधिसूचित उत्पाद शुल्क नीति के उल्लंघन में बड़े फैसले लिए, कार्रवाई की और उन्हें क्रियान्वित कराया।

- रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मनीष सिसोदिया ने कथित तौर पर महामारी के बहाने निजी शराब विक्रेताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली लाइसेंस फीस पर 144.36 करोड़ रुपये माफ कर दिए।

- रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सिसोदिया ने उत्पाद शुल्क विभाग को भी नुकसान पहुंचाया और 50 रुपये प्रति बीयर केस के आयात पास शुल्क को माफ करके शराब लाइसेंसधारियों को लाभ पहुंचाया।

- बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब यह देखा गया कि खुदरा शराब की दुकानें शहर के गैर-अनुमोदित बाजारों जैसे गैर-अनुरूप क्षेत्रों में खुल रही थीं, जहां नई नीति में ऐसी गतिविधियों की अनुमति नहीं थी।

- आरोप है कि दक्षिण भारत के "गिरोह" ने शराब बिक्री को कंट्रोल करने के लिए कार्टेल बनाये, मंत्रियों को घूस दी और खुदरा बिक्री बिजनेस पर कब्जा करके लाभ कमाया।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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