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Delhi Service Bill: जानें दिल्ली सेवा बिल के बारे में, संसद से आज हुआ पास
Delhi Service Bill: इन दिनों संसद में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का एक बड़ा कारण दिल्ली अध्यादेश बिल भी है। जिसे इसी साल मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए लाया था।
Delhi Service Bill: इन दिनों संसद में सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का एक बड़ा कारण दिल्ली अध्यादेश बिल भी है। जिसे इसी साल मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए लाया था। मंगलवार 1 अगस्त को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने इस बिल को जिसे दिल्ली सेवा बिल भी कहा जाता है, उसे भारी हंगामे के बीच संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया। जिसका कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों ने पुरजोर विरोध किया।
दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े इस विधेयक को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संविधान का उल्लंघन करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने की कोशिश कर रही है। इस पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संविधान संसद को दिल्ली पर कानून बनाने की अनुमति देता है। बिल के विरूद्ध जो बयान दिए जा रहे हैं, वो केवल राजनीतिक हैं। उनका कोई आधार नहीं है।
दिल्ली सेवा बिल में क्या है ?
इस बिल में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया है। जो दिल्ली सरकार में सेवारत दिल्ली व अंडमान व निकोबार आइलैंड सिविल सर्विसेज के सभी ग्रुप-ए अधिकारियों (आईएएस) के ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिश करेगा। दिल्ली सीएम इस प्राधिकरण के पदेन अध्यक्ष होंगे। मुख्यमंत्री के अलावा दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान गृह सचिव भी इसमें बतौर सदस्य शामिल होंगे।
अधिकारियों के तबादले से जुड़े सारे फैसले प्राधिकरण में बहुमत के आधार पर लिए जाएंगे। दिल्ली के उपराज्यपाल प्राधिकरण के सुझावों के मुताबिक ही निर्णय लेंगे। हालांकि, प्राधिकरण से मिले सुझावों के बावजूद एलजी (उपराज्यपाल) संबंधित अधिकारियों से जुड़े दस्तावेज मंगा सकते हैं और अगर किसी प्रकार का मतभेद होता है तो उपराज्यपाल का निर्णय ही अंतिम माना जाएगा।
राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण दिल्ली के उपराज्यपाल को ट्रांसफर-पोस्टिंग और विजिलेंस जैसे मामलों पर सलाह देगी। प्राधिकरण ही उस प्रक्रिया को भी तय करेगी, जिसमें किसी अधिकारी को दंडित करने, सस्पेंड करने या उनके खिलाफ विभागीय जांच बिठाई जानी हो। दंड का निर्धारण के लिए भी प्राधिकरण रिकमंडेशन देगी। ऐसी कोई भी रिकमंडेशन मिलने पर एलजी ही उचित आदेश पारित करेंगे।
AAP क्यों है इसे लेकर परेशान
दिल्ली में सालों से सरकार चला रही आम आदमी पार्टी संसद में पेश इस दिल्ली सेवा बिल से खासी परेशान है। क्योंकि इस बिल के आने से दिल्ली के मुख्यमंत्री और दिल्ली सरकार की शक्तियां काफी कम हो जाएंगी। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल का उनके क्षेत्र में काम कर रहे अधिकारियों के ऊपर से नियंत्रण हट जाएगा। ये शक्तियां उपराज्यपाल की मदद से केंद्र के पास चली जाएंगी। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी इस बिल को किसी भी सूरत में संसद से पारित नहीं होने देना चाहती है। वह इसे दिल्ली की जनता का अपमान बता रही है।
क्यों संसद से पास होना था जरूरी ?
दिल्ली में अधिकारियों पर किसकी चलेगी, इसको लेकर लड़ाई केंद्र और राज्य सरकार के बीच 2015 से चली आ रही है। इस साल 11 मई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था। इसके अलावा प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े मामलों में भी दिल्ली सरकार को शक्तियां सौंपी थीं। मगर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई। इस अध्यादेश ने सुप्रीम कोर्ट से मिली शक्तियों को एकबार फिर दिल्ली सरकार से छीन लिया।
नियम के मुताबिक, किसी भी अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों से छह महीने के भीतर पारित करवाना जरूरी होता है। अन्यथा वह निष्प्रभावी हो जाता है। यही वजह है कि केंद्र सरकार मानसूत्र में ही इसे हर हाल में संसद के दोनों सदनों से पारित करवा लेना चाहती है। सरकार के पास लोकसभा में बहुमत का जरा भी टेंशन नहीं है। वहीं, बीजद और वाईएसआर कांग्रेस द्वारा अध्यादेश का समर्थन करने के ऐलान के बाद राज्यसभा में भी बहुमत का जुगाड़ हो गया है। अब दिल्ली सेवा बिल का संसद से पारित होना लगभग तय है।