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दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण का समाधान: वैदिक यज्ञ, जानें कैसे?

इन दिनों दिल्लीवासी प्रदुषण की मार झेल रहे है। इस दौरान दिल्ली में स्कूल बंद कर दिए गए है व लोगों को आगाह किया जा रहा है कि वह आ

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Published on: 12 Nov 2017 11:50 AM IST
दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण का समाधान: वैदिक यज्ञ, जानें कैसे?
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पं. योगेश शर्मा

दिल्ली: इन दिनों दिल्लीवासी प्रदुषण की मार झेल रहे है। इस दौरान दिल्ली में स्कूल बंद कर दिए गए है व लोगों को आगाह किया जा रहा है कि वह आवश्यकतानुसार ही घर से बाहर। इस पर्यावरण प्रदुषण के कारण अस्थमा के मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या का अचूक समाधान हमारे भारत वर्ष में प्राचीन काल से माना जाता है और वह समाधान है “वैदिक यज्ञ”।

भारतीय सनातन संस्कृति में यज्ञ का बहुत बड़ा अध्यात्मिक महत्व है लेकिन क्या आप जानते है यज्ञ से हमारा प्रदूषित पर्यावरण भी स्वच्छ होता है दिल्ली में आम आदमी पार्टी की वर्तमान सरकार को यह लेख ज़रूर पढ़ना चाहिये ताकि दिल्ली का पर्यावरण शुद्ध हो सके। जानिये विश्व के विभिन्न वैज्ञानिकों का यज्ञ पर विश्लेषण एवं जानिये कि यज्ञ से कैसे पर्यावरण शुद्ध होता है और क्या है यज्ञ का वैज्ञानिक महत्व।

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यज्ञ के लाभ

- नवरात्र हो या दीपावली हर पूजा के बाद यज्ञ करने का नियम है। इसके पीछे आमतौर पर धार्मिक कारण माना जाता है ज‌ब‌कि इसका एक बड़ा वैज्ञानिक कारण भी है। यज्ञ के समय जलाई जाने वाली सामग्री रोग उपचार के काम भी आती है। सामान्य तौर पर जलाई गई अग्नि के अपने परिणाम हैं, उससे वस्तु, व्यक्ति और उपकरणों को गरम कर सकता है, लेकिन यज्ञ अग्निहोत्र में जगाई गई आंच व्यक्ति कई रोगों से भी मुक्त बनाती या उसके लिए रक्षा कवच का काम करती ।

यज्ञ के चिकत्सीय पहलू

प्राचीन समय से आयुर्वेदिक पौधों के धुएँ का प्रयोग मनुष्य विभिन्न प्रकार की बीमारियों से निदान पाने के लिए करते आ रहे हैं। यज्ञ से उत्पन्न धुएँ को खाँसी, जुकाम, जलन, सूजन आदि बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मध्यकालीन युग में प्लेग जैसी घातक बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए धूप, जड़ी-बूटी तथा सुगन्धित पदार्थों का धूम्रीकरण किया जाता था। यज्ञ द्वारा प्राप्त हुई रोगनाशक उत्तम औषधियों की सुगन्ध प्राणवायु द्वारा सीधे हमारे रक्त को प्रभावित कर शरीर के समस्त रोगों को नष्ट कर देती है तथा हमें स्वस्थ और सबल बनाती । तपेदिक का रोगी भी यदि यक्ष्मानाशक औषधियों से प्रतिदिन यज्ञ करे तो औषधि सेवन की अपेक्षा बहुत जल्दी ठीक हो सकता है।

वेदों में कहा गया है- हे मनुष्य। मैं तेरे जीवन को स्वस्थ, निरोग तथा सुखमय बनाने के लिए तेरे शरीर में जो गुप्त रूप से छिपे रोग है, उनसे और राजयक्ष्मा (तपेदिक) जैसे असाध्य रोग से भी यज्ञ की हवियों से छुड़ाता हूँ। विभिन्न रोगों की औषधियों द्वारा किया हुआ यज्ञ जहाँ उन औषधियों की रोग नाशक सुगन्ध नासिका तथ रोम कूपों द्वारा सारे शरीर में पहुँचाता है, वहाँ यही यज्ञ, यज्ञ के पश्चात् यज्ञशेष को प्रसाद रूप में खिलाकर औषध सेवन का भी काम करता है। इससे रोग के कीटाणु बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं।

वेदों में कहा गया है कि- हे मनुष्य। यह यज्ञ में प्रदान की हुई रोगनाशक हवि तेरे रोगोत्पादक कीटाणुओं को तेरे शरीर में से सदा के लिए बाहर निकाल दे अर्थात् यज्ञ की रोगनाशक गन्ध शरीर में प्रविष्ट होकर रोग के कीटाणुओं के विरुद्ध अपना कार्य कर उन्हें नष्ट कर देती है। अग्निहोत्र से पौधों को पोषण मिलता है, जिससे उनकी आयु में वृद्धि होती है। अग्निहोत्र जल के स्रोतों को भी शुद्ध करता है।

यज्ञ के उपरान्त वायु में धूम्रीकरण के प्रभाव को वैज्ञानिक रूप से सत्यापित करने के लिए डॉ. सी. एस. नौटियाल, निदेशक, सी.आई.आर.-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान, लखनऊ व अन्य शोधकर्ताओं ने वायु प्रतिचयन यन्त्र का प्रयोग किया। उन्होंने यज्ञ से पूर्व वायु का नमूना लिया तथा यज्ञ के उपरान्त एक निश्चित अन्तराल में २४ घण्टे तक वायु का नमूना लिया और पाया कि यज्ञ के उपरान्त वायु में उपस्थित वायुजनित जीवाणुओं की संख्या कम थी।

कुछ आँकड़ों के अनुसार, औषधीय धुएँ से 60 मिनट में 94 प्रतिशत वायु में उपस्थित जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। सुगन्धित और औषधीय धुएँ से अनेक पौधों के रोग जनक जीवाणु, जैसे बरखोलडेरिया ग्लूमी जो चावल में सीडलींग रॉट (Seedling rot of rice), कटोबैक्टीरियम लैक्युमफेशियन्स जो फलियों में विल्टिंग (Wilting in beans), स्यूडोमोनास सीरिन्जी जो आडू में नैक्रोसिस (Necrosis of peach tree tissue), जैन्थोमोनास कम्पैस्ट्रिस जो क्रूसीफर्स में लैक रॉट (Black rot in crueifers) करते हैं, आदि को नष्ट किया जा सकता है। वायुजनित प्रसारण रोग के संक्रमण का एक मुख्य मार्ग है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O. 2004) के अनुसार, विश्व में ५७ लाख मृत्यु में से 15 लाख वायुजनित संक्रमित रोगों के कारण होती है। औषधीय धुएँ से मनुष्य में रोग फैलाने वाले रोगजनक जीवाणुओं जैसे-कॉर्नीबैक्टीरियम यूरीलाइटिकम जो यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन, कॉकूरिया रोजिया जो कैथेटर रिलेटिड बैक्टीरीमिया, स्टेफाइलोकोकस लैन्टस जो स्प्लीनिक ऐ सेस स्टेफाइलोकोकस जाइलोसस जो एक्यूट पॉलीनैफ्रिइटिस ऐन्टेरोबैक्टर ऐयरोजन्स जो नोजोकॉमियल संक्रमण करते हैं आदि को नष्ट किया जा सकता। सुगन्धित तथा औषधीय धुएँ का प्रयोग त्वचा सम्बन्धी तथा मूत्र-तन्त्र सम्बन्धी विकारों को दूर करने में भी किया जाता है। धुएँ के प्रश्वसन से (Inhalation) फुफ्फुसीय और तन्त्रिका सम्बन्धी विकार दूर हो जाते हैं।

शोधकर्ता ने क्षय, श्वास और फेफड़े की कुछ बीमारियों को अग्निहोत्र से ठीक करने में खासी कामयाबी हासिल की । आहुतियों में वनौषधियों के प्रयोग के प्रभाव का उल्लेख करते हुए ओहिजनबर्ग यूनिवर्सिटी (म्यूनिच) के शोध अनुसंधान में लगे प्रो.अर्नाल्ड रदरशेड ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में एक नई विधा जुड़ सकती है जिसे ′यज्ञोपैथी′ नाम दिया जा सकता है।

हवन की राख खा रहे है अमेरिकी

भारत को थोड़ी देरी में समझ आयेगा यह सब लेकिन तब तक शायद देर न हो जाए, एक और हमारी युवा पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में अंधी होकर अपनी श्रेष्ठ संस्कृति को भुला कर पश्चिमी सभ्यता का अनुशरण करने में मशगूल है वहीँ वो लोग यज्ञ की राख को खा रहे है -पानी के साथ, शहद के साथ या vegetarian कैप्सूल बनाकर। यज्ञ में देशी गाय के घी और गोबर से हवन करने पर सब रोग मुक्त, देसी गाय के घी और गोबर से यज्ञ करने पर अमेरिका, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया के लोगो ने पाया है की उनको सभी रोग खत्म हो रहे है। जापान ने ये भी पाया है की यज्ञ करने से नुक्सान करने वाली रिएक्टर की न्युक्लीअर रेडिएशन भी खत्म हो जातीहै ।

भारत में भी भोपाल गैस काण्ड में दो परिवार - कुशवाहा परिवार और प्रजापति परिवार ऐसे थे जिनको कुछ नहीं हुआ और वो गैस लीक वाली जगह के निकट ही थे, तब वैज्ञानिको ने अनुसंधान किया तो पता लगा की की उन्होंने अपना घर देसी गाय के गोबर से लीप रखा था और वो रोज देसी गाय के घी और गोबर से यज्ञ करते थे जिससे गैस का प्रभाव खत्म हो गया।

यज्ञ के विषय में कतिपय वैज्ञानिकों के निष्कर्ष

डॉ. एम. ट्रेल्ट ने मुनक्का, किशमिश आदि फलों को जलाकर देखा तब उन्हें ज्ञात हुआ कि इनके धुंएं से टाइफाइड के रोग कीट 30 मिनट में और दूसरे रोगों के कीट घण्टे दो घण्टे में नष्ट हो जाते है।

फ्रांस के डॉ. हैफकिन का कहना है कि यज्ञ में घी के जलाने से रोग कीट मर जाते हैं। यज्ञ प्रकृति के बायोरिद्म पर अधारित है अमेरिकी मनोवैज्ञानिक श्री बेरी रैथनर जो पूणे विश्वविद्यालय में अग्निहोत्र पर शोध कर चुके हैं का कहना है कि – अग्निहोत्र वायुमण्डल में एक विशिष्ट ढंग का प्रभाव उत्पन्न करता है और उसका मानव मन पर चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है। उस चिकित्सकीय प्रभाव की आयुर्वेद में स्पष्ट चर्चा मिलती है।

7 मई 1999 के हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुए एक समाचार में कहा गया है कि लखनउ के राहुल कर्मकर ने सिद्ध किया है कि भारतीय यज्ञ परम्परा जो दार्शनिक शक्ति पर आधारित है मात्र कुछ यौगिक पदार्थों का जलाना मात्र नहीं हैं ये हवा में घुले सल्फरडाईऑक्साइड तथा नाइट्रोसऑक्साइड को नष्ट करते हैं साथ ही जल के विषाणुओं को भी नष्ट करते है, इसीलिए हमें रोज़ यज्ञ करना ।

यज्ञ का धुआं हानिकारक जीवाणु नष्ट करता है: नौटियाल

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक चन्द्रशेखर नौटियाल ने बताया कि लकड़ी और औषधीय जडी बूटियां जिनको आम भाषा में हवन सामग्री कहा जाता है को साथ मिलाकर जलाने से वातावरण मे जहां शुद्धता आ जाती है वहीं हानिकारक जीवाणु 94 प्रतिशत तक नष्ट हो जाते । डा नौटियाल द्वारा किया गया इस आशय का शोध कार्य सन डायरेक्ट अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने प्रकाशित किया ।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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